वैसे तो आज चुनाव नतीजों की खबर सबसे महत्वपूर्ण है पर एक ऐसी खबर है जो चुनाव नतीजों से भी महत्वपूर्ण है। प्रचारकों की सरकार अपने काम पर निष्पक्ष आकलन की ऐसी खबरें सामने नहीं आने देती है जबकि ऐसी खबरें इसलिए और ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैं। कल सोशल मीडिया पर चर्चा थी कि विदेशी मिशन ने युवा कांग्रेस से सहायता मांगी और युवा कांग्रेस वालों ने दिल्ली स्थित विदेशी दूतावासों में ऑक्सीजन के सिलेंडर पहुंचाए। यह बहुत असाधारण स्थिति है कि विदेशी दूतावास किसी विपक्षी दल के युवा संगठन या गैर सरकारी संगठन से सहायता मांगे। कायदे से यह स्थिति बननी ही नहीं चाहिए थी लेकिन ऐसा कुछ हुआ तो सरकार का काम था कि वह अपनी साख बनाए रखने के लिए तुरंत स्पष्टीकरण देती। यह लीपापोती भी हो तो लोग समझ जाते कि सरकार भले सो रही थी या चुनाव लड़ रही थी, समय पर जग गई। पर राजनीतिक मोतियाबिन्द की शिकार सरकारें इतना कहां सोचती है।
दिल्ली में ऑक्सीजन का मामला बहुत गंभीर है। जैसा कि मैंने कल लिखा था, शनिवार को ऑक्सीजन की कमी से दिल्ली और आस-पास के शहरों में कम से कम 65 लोगों की मौत की खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर अलग-अलग छपी थी। लेकिन बाकी अखबारों में सिर्फ दिल्ली की खबर को महत्व मिला था। इसके अनुसार दिल्ली के एक अच्छे, बड़े पुराने, नामी और निजी बत्रा अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर अपने ही अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से मर गए थे। इसके बाद आम लोगों में डर बैठना स्वाभाविक है। आम लोग तो उसी दिन से डरे हुए हैं जब दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से इस समस्या की चर्चा की और प्रधानमंत्री ने कोई जवाब नहीं दिया। अगले दिन किसी आश्वासन या भरोसे की खबर नहीं थी। आम आदमी तो मर ही रहे थे लेकिन बत्रा अस्पताल आम आदमी से ऊपर का है। विदेशी दूतावासों के अधिकारियों के स्तर का।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि दिल्ली में तैनात किसी विदेशी दूतावास के अधिकारी को जरूरत हुई तो दिल्ली में जो दो-चार अस्पताल हैं उनमें गंगाराम (वहां पहले ही मौतें हो चुकी हैं), अपोलो, बत्रा आदि जैसे अस्पताल ही हैं। एम्स में उच्च स्तर पर सरकारी हस्तक्षेप के बिना वैसे भी दाखिला मुश्किल है इसलिए कोई विदेशी शायद ही वहां कोशिश करे। वैसे भी, उन्हें हम देशवासियों की तरह पांच लाख के बीमे में पूरे परिवार का खर्चा तो चलाना नहीं है। ऐसे में गंगाराम की मौतों के बाद बत्रा में मौतें बड़े बड़े धनपशुओं को भी हिला देने वाली थीं। इसका एक असर यह हुआ कि दूतावास ने ऑक्सीजन सिलेंडर युवक कांग्रेस से मांगा। आपको याद होगा अरविन्द केजरीवाल ने यही पूछा था कि हमें जरूरत हो तो केंद्र सरकार में किससे संपर्क करें। और उसका जवाब नहीं दिया गया। जब मुख्यमंत्री की यह हालत है तो दूतावास वालों की स्थिति आप समझ सकते हैं। इसलिए उन्होंने जो किया वह स्वाभाविक लगता है। बाकी भारत सरकार की हालत आप समझिए। उसपर विदेशी अखबारों की खबरें पढ़िए।
ऐसे में दूतावास ने क्या किया वह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह जानना है कि भारत सरकार ने क्या किया। और मैं इसीलिए आज के अखबार का इंतजार कर रहा था। द हिन्दू और द टेलीग्राफ को छोड़कर मेरे तीन अन्य अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर है। हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया में सबसे नीचे और इंडियन एक्सप्रेस में चुनाव नतीजे की खबर के साथ। दरअसल, इस सरकार ने अपने कार्यकाल में जो सब किया है उससे उसके बारे में जो राय बनी है वही चुनाव परिणाम है और विदेशी मिशनों की राय इस खबर से मालूम होती है। यह भी चुनाव नतीजा ही है। इसलिए इंडियन एक्सप्रेस ने इसे सही महत्व दिया है। तीनों अखबारों में इसका शीर्षक है,
- इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, “विदेशी दूतावासों ने युवक कांग्रेस से मदद ली, सरकार ने कहा, ‘ऑक्सीजन जमा न करें’।” सरकार को यह सुनिश्चित करना था कि यह स्थिति आए ही नहीं पर वह ऐसा नहीं कर पाई और अब जो कह रही है उसका कोई मतलब नहीं है। अगर विदेशी दूतावास पूछें कि आप पर भरोसा कैसे करें तो क्या जवाब होगा? वैसे भी, यह स्थिति तब है जब सरकार और उसके समर्थकों को ‘विदेश में’ बदनामी की चिन्ता बहुत रहती है। कहने को वह कह सकती है कि जब विपक्षी दल के युवक ऑक्सीजन पहुंचा सकते हैं तो हमारे पास कैसी-कैसी सेनाएं हैं। पर सच यही है कि सब कहीं दिख नहीं रही हैं। ना श्मशान में, ना ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ ना मंदिर में।
- हिन्दुस्तान टाइम्स का शीर्षक है, “दो विदेशी दूतावासों को ऑक्सीजन डिलीवरी पर टकराव”। अंग्रेजी में स्पैट यानी झगड़ा लिखा है। पर झगड़ा किससे? एक सरकार और दूतावास में क्या झगड़ा हो सकता है? असल में यह छवि बनाने या बचाने के लिए यूथ कांग्रेस के जरिए कांग्रेस से टकराव है। दूतावास या उसके अधिकारी तो भारत में तैनाती (या अच्छे दिन का प्रचार) भुगत रहे हैं।
- “विदेशी दूतावासों को ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर विवाद”। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर से यह किसी सामान्य विवाद की खबर लग रही है जबकि मामला सामान्य नहीं है। भारत सरकार की तरफ से विदेश मंत्री ने इसे राजनीतिक रंग देने की कोशिश की है। चूंकि वे विदेश सेवा के अधिकारी रहे हैं इसलिए यह कहने में कोई दिक्कत नहीं है कि उन्हें राजनीति नहीं आती है और ऐसा उन्होंने सरकार में अपने आकाओं के कहने पर कहा हो तो साफ है कि ‘सरकार’ के पास एंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री भले हो, राजनीति उनकी बहुत घटिया है। वह बंगाल के चुनाव से तो साबित हुआ ही है। अरविन्द केजरीवाल के गंभीर सवाल और उसे प्रसारित करने की उनकी राजनीति से मात खाने और वणक्कम करने के वीडियो से साफ है।
वैसे भी, राजनीति में लड़ाई खेल भावना से लड़ी जानी चाहिए। एनआईए, चुनाव आयोग और सीबीआई के दम पर नहीं। हार स्वीकार करना चाहिए और अनैतिक तरीके से जीतने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। हाईस्कूल और 12वीं के बच्चे परीक्षा और प्राप्त अंक को महत्व देते हैं और इसीलिए नाकाम रहने पर आत्महत्या कर लेते हैं। लेकिन मन की बात और परीक्षा पे चर्चा करने वाले नरेन्द्र मोदी राजनीतिक चालों में बुरी तरह पिट जाते हैं। यह अरविन्द केजरीवाल, ममता बनर्जी से भिड़ंत में दिखता रहा है। कांग्रेस मुक्त भारत पर राहुल गांधी के जवाब ने पहले ही चित्त कर दिया था। कांग्रेस या राहुल गांधी ऐसी राजनीति अमूमन नहीं करते लेकिन अगर ऑक्सीजन की सप्लाई के जरिए की हो (जो नहीं थी और बाकायदा मांगी गई थी) तो भी सरकार को मुंह की खानी पड़ी जो आज की खबरों से साफ है। आज पहली बार मुझे लगा कि पहले पन्ने की इन खबरों को अंदर देख लूं, होनी चाहिए।
- द हिन्दू में इस खबर का शीर्षक है, “दिल्ली में कई दूतावास कोविड-19 के हमले का सामना कर रहे है।” उपशीर्षक है, दो दूतावासों को ऑक्सीजन की आपूर्ति पर जयशंकर और जयराम के बीच तू-तू, मैं-मैं।
- द टेलीग्राफ में इसका शीर्षक है, “कांग्रेस ने ऑक्सीजन दिया जयशंकर धुंआ छोड़े।” द टेलीग्राफ का पहला पन्ना आज भी अनूठा है। शीर्षक भी सबसे अलग और रंगीन।
अभी तक मैं यही मानता था पहले पन्ने की खबर पहले पन्ने पर ही होनी चाहिए और सरकार विरोधी खबर अक्सर नहीं छपती हैं। लेकिन आज मुझे लगा कि ये खबरें अंदर जरूर होंगी और द हिन्दू तथा द टेलीग्राफ में विस्तार से मिल गईं। इससे लगता है कि सरकार अपनी चालों में चूक रही है। इस खबर पर अगर उसने प्रतिक्रिया नहीं की होती तो यह पहले पन्ने पर नहीं छपती या छपती तो लगता कि गढ़ी हुई खबर है। लेकिन इसे राजनीतिक रंग देकर भाजपा ने फिर बता दिया है कि हिन्दू-मुसलमान की राजनीति के अलावा राजनीति उसे आती ही नहीं है। आज के अखबार बंगाल चुनाव के नतीजे के साथ बता रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी या उनके नेतृत्व में भाजपा की चुनाव जीतने की रणनीति चुक गई है। द हिन्दू के लीड का शीर्षक यही कहता है, वामपंथियों ने केरल में, टीएमसी ने बंगाल में और भाजपा ने असम या पुडुचेरी में एंटी इंकमबेंसी को पीछे छोड़ा। आप जानते हैं कि एंटीइनकंबेंसी सत्तारूढ़ दलों की हार का बड़ा कारण होती है। भाजपा की राजनीति ने इसे तो बदला पर लाभ में तब भी नहीं है। बंगाल में वह पूरी ताकत लगाकर भी नहीं जीत पाई। आगे अगर वह खुद को संभाल नहीं पाई तो यहीं से भाजपा के पतन की कहानी शुरू होगी।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।