सोलहवीं लोकसभा के 2014 में हुए चुनाव में केंद्र में तब कांग्रेस के नेतृत्व वाले युनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (यूपीए) के खिलाफ तथा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) के पक्ष में जो जनादेश निकला, उसे ‘मोदी लहर’ कहा गया। मोदी लहर में देश में औसतन 66.4 प्रतिशत मतदान हुआ था, जो 1951 के प्रथम आम चुनाव से 2019 के पहले तक का रिकॉर्ड है। यह 2009 के आम चुनाव में दर्ज 58.2 प्रतिशत मतदान से करीब 8 प्रतिशत ज्यादा था। इस साल सत्रहवीं लोकसभा के हो रहे चुनाव में मतदान का नया रिकॉर्ड बनने के पूरे आसार हैं, बेशक उसमें 2014 की तरह का बड़ा उछाल ना आये।
सोचने वाली बात यह है कि जब अधिकतर चुनावी सर्वेक्षण आदि के अनुसार इस आम चुनाव में ‘मोदी लहर’ जैसी कोई बात नहीं है तो इस भारी मतदान के क्या अर्थ हैं। ख़ासकर तब जब इन सर्वेक्षणों में आम सहमति है कि किसी भी पक्ष को स्पष्ट बहुमत मिलने के आसार नहीं हैं, तो मतदान में यह तेजी कोई ‘विरोधी लहर’ तो नहीं इंगित करती है? इस ‘एंटी-वेव’ या विरोधी लहर को समझने में भाजपा महासचिव राम माधव के ताज़ा कथन से मदद मिल सकती है। उन्होंने एक विदेशी न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग के साथ भेंटवार्ता में चुनावी सर्वे को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार करते हुए कहा कि उनके खेमे को सत्ता में लौटने के लिए ‘बाहर’ से मदद लेनी पड़ सकती है।
चुनाव विशेषज्ञों की राय में मतदान में तेजी या गिरावट सत्ता परिवर्तन के संकेत देते हैं। कुछ टीकाकारों के अनुसार मौजूदा आम चुनाव में मतदान के रुख में केंद्रीय सत्ता पर काबिज भाजपा के विरोध में पूरब से लेकर पश्चिम और दक्षिण से लेकर उत्तर तक मोटे तौर पर एक ऑल इण्डिया पैटर्न नज़र आ रहा है। इसे मोदी जी के प्रति नाकारात्मक मतदान अथवा एंटी-वेव कहा जा सकता है। मतदान में बढ़ोत्तरी या कमी को दुनिया भर में सरकार के गठन में मतदाताओं की दिलचस्पी अथवा बेरुखी का संकेतक माना जाता है। मतदान में वृद्धि सत्ता-विरोधी रुझान (एंटी-इंकम्बेंसी) माना जाता है। मतदान में कमी राजनीतिक प्रक्रिया में नागरिकों के अविश्वास को दर्शाती है।
निर्वाचन आयोग के अनुसार मौजूदा आम चुनाव के लिए कुल 543 सीटों के वास्ते सात चरणों में से 6 मई तक पांच चरण के पूरे हुए मतदान में औसतन अनुमानित करीब 60 प्रतिशत वोटिंग हुई। वोटिंग के प्रथम चरण में 69.5 प्रतिशत, दूसरे चरण में 69.4 प्रतिशत, तीसरे चरण में 66 प्रतिशत, चौथे चरण में 63.2 प्रतिशत मतदान हुआ। पांचवें चरण में सोमवार 6 मई को सात राज्यों की 51 सीटों पर मतदान करीब 63 प्रतिशत रहा। इस चरण के साथ ही 424 सीटों पर मतदान संपन्न हो गए। अब शेष 118 सीटों में से सात राज्यों की 59 सीटों पर 12 मई और सातवें एवं अंतिम चरण में 19 मई को आठ राज्यों में 59 निर्वाचन क्षेत्रों में वोटिंग कराई जाएगी। आगे के मतदान के चरणों में भारी गिरावट नहीं हुई तो 2019 के आम चुनाव में मतदान का नया रिकॉर्ड बनना तय है।
जिन बड़े राज्यों में वोटिंग पूरी हो चुकी है उनमें से सिर्फ दो- ओड़िसा और तमिलनाडु- में मतदान की दर 2014 की तुलना में कुछ कम रही है। अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, सिक्किम, नगालैंड में भी 2014 की तुलना में कम मतदान हुआ है लेकिन मणिपुर, मेघालय, असम और मिजोरम में मतदान बढ़ा है। छत्तीसगढ़ में पिछले 15 वर्षों और महाराष्ट्र में पिछले 30 वर्षों में सबसे ज्यादा वोटिंग हुई। मुंबई में भी 1989 के बाद से सबसे ज्यादा 55 .1 प्रतिशत वोटिंग हुई। आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक में भी मतदान पिछली बार से अधिक हुआ है। त्रिपुरा में रिकॉर्ड 81.8 प्रतिशत मतदान हुआ।
कश्मीर क्षेत्र में मतदान कम हुआ। श्रीनगर में सिर्फ 13 प्रतिशत वोटिंग हुई और उस निर्वाचन क्षेत्र के 50 पोलिंग बूथों पर एक भी वोट नहीं डाले गए। अनंतनाग में, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती प्रत्याशी हैं, 13.6 प्रतिशत ही मतदान हुआ। उनके गृहनगर बिजबेहरा में सिर्फ 2 प्रतिशत मतदान हुआ लेकिन जम्मू क्षेत्र में मतदान 2014 की तुलना में ज्यादा रहा। जम्मू जिले में 74.4 और साम्बा जिले में सर्वाधिक 75.1 फीसद वोटिंग हुई।
सभी राज्यों में मतदान का ब्योरा अंतिम तौर पर मिलने में समय लगेगा लेकिन अब तक मिली अधिकृत जानकारी के अनुसार लगभग सभी राज्यों में पहली बार मतदान करने वालों में भारी इजाफा हुआ है। असम, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 18 से 25 वर्ष की आयु के मतदाताओं के मतदान में करीब 3.3 प्रतिशत की तेजी दिखी है। केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र में वरिष्ठ नागरिकों, ख़ासकर महिलाओं के मतदान में वृद्धि हुई है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और मीडियाविजिल पर मंगलवारी स्तंभ ‘चुनाव चर्चा’ लिखते हैं