पहला पन्ना: 15 मिनट की देरी पर भड़का राजा और IAS को ‘तड़ी पार’ करने की तैयारी!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
काॅलम Published On :


वैसे तो तड़ीपार होना सजा के लिहाज से जेल जाने से कम है पर पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अगर राज्य में कोरोना से निपटने के लिए काम कर रहे हैं और मुख्यमंत्री ने कहा था कि उन्हें उनकी जरूरत है, सेवा विस्तार दिया जाए तो मुख्यमंत्री के साथ रहने के कारण प्रधानमंत्री की बैठक में देर से आना अपराध नहीं है। वैसे भी कोरोना से प्रधानमंत्री कैसे निपट रहे हैं और -कितने कामयाब हैं यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में पश्चिम बंगाल की सरकार या वहां की मुख्यमंत्री अलग से कुछ प्रयास कर रही हैं तो वह गलत नहीं है। अपराध तो नहीं ही है। ऐसे में उनके मुख्यसचिव को दिल्ली तलब करना आपदा प्रबंध में बाधा डालना ही है और कार्यमुक्त नहीं किए जाने के कारण उनका नहीं आना किसी भी सूरत में अपराध नहीं है। इसके बावजूद केंद्र सरकार की कार्रवाई जिसकी लाठी उसकी भैंस से अलग कुछ नहीं है। ऐसे में मुझे लगता नहीं है कि कुछ होगा और अगर होगा तो वह खबर होगी अभी तो राजनीति ही है। कोरोना के बावजूद बहुत निचले स्तर की और घटिया किस्म की। अखबार इसे महत्व न दें तो शायद झगड़ा कम हो या फिर अखबारों को यह खबर वैसे ही छापना चाहिए जैसे टेलीग्राफ ने छापा है। या इंडियन एक्सप्रेस ने नहीं छापा है।          

कुल मिलाकर, पश्चिम बंगाल के मुख्यसचिव का मामला निपट नहीं रहा है। रिटायर होने के बावजूद केंद्र सरकार ने नियमों का हवाला देकर उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है और इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार केंद्रीय गृहमंत्रालय ने आपदा कानून के तहत कार्रवाई की है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने शीर्षक में ही लिखा है, “एक साल तक की जेल का सामना कर रहे हैं।”, हालांकि, इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि अगर मामला बना तो सजा दो साल तक बढ़ाई भी जा सकती है। द हिन्दू ने लिखा है कि पूर्व मुख्य सचिव को नोटिस पर तृणमूल और भाजपा भिड़े। हिन्दुस्तान टाइम्स में आज यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है जबकि द टेलीग्राफ ने “राजा और उनके बहुमूल्य 15 मिनट” पर नोटिस देने की तुलना ऋषि दुर्वाशा से की है। उनके बारे में कहा जाता है कि वे जरा सी बात पर श्राप दे देते थे। अखबार ने प्रधानमंत्री से पूछा है, क्या आपको याद है इन लोगों को 15 मिनट से बहुत ज्यादा समय तक कितनी तकलीफ हुई होगी? इसके साथ तीन तस्वीरें हैं। पहली में लोग ऑक्सीजन सिलेंडर लिए खड़े हैं। यह छह मई की फरीदाबाद की है। दूसरी नई दिल्ली के किसी श्मशान घाट की है जहां कई शव जमीन पर रखे हुए हैं। यह चार मई की है। तीसरी तस्वीर दिल्ली में लॉक डाउन के दौरान भोजन के लिए लाइन लगे लोगों की है। यह 29 मई की है। 

कहने की जरूरत नहीं है कि सीबीएसई की परीक्षा से संबंधित बैठक रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ली थी और उन दिनों केंद्रीय शिक्षा मंत्री कोरोना की दवा के प्रचार में लगे थे। कल घोषणा के दिन वे बीमार बताए गए, घोषणा प्रधानमंत्री ने की जबकि शिक्षा राज्य मंत्री से लेकर शिक्षा सचिव और सीबीएसई के निदेशक तक यह घोषणा कर सकते थे। कोरोना की इस बंदी में वैसे भी प्रचारकों के अलावा किसके पास काम है फिर भी 15 मिनट की देरी के लिए एक रिटायर अफसर के खिलाफ कार्रवाई और वह भी जेल भेजने की व्यवस्था से क्या लगता है। देरी तो परीक्षा के संबंध में भी हुई और टीके के संबंध में तो हो ही रही है। आखिर बच्चे क्या सीखेंगे-समझेंगे। 12वीं के जिन बच्चों की परीक्षा रद्द हो गई उन्हें इसी निर्णय के सहारे अपने कैरियर के संबंध में निर्णय लेना है। वे जानते हैं कि एक आईएसएस को राजनीतिक कारणों से फंसाने की कोशिश कर रहा मंत्रालय कौन चला रहा है और उनकी योग्यता क्या है या उनपर क्या आरोप हैं। ऐसे में युवा अपने कैरियर के बारे में फैसला कैसे करें, क्या करें? द टेलीग्राफ के सवाल उठाने से लग रहा है कि केंद्र सरकार गलत हो सकती है। द हिन्दू ने इसे दो राजनीतिक दलों के भिड़त के रूप में छापा है पर टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस की खबर तो किसी भी भावी आईएएस को डरा देगी।  

आज की विशेष खबरें

 

1.द हिन्दू

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अनाथ बच्चों की योजना का विवरण दीजिए, केंद्र ने पीएम केयर्स की सहायता की व्यवस्था साझा करने का वादा किया

2.टाइम्स ऑफ इंडिया 

टीके की विडंबना : गुड़गांव में खुराक बहुत कम, ग्रामीण नूंह में लेने वाले कम

3.इंडियन एक्सप्रेस 

अमरेली के लोग तूफान गुजरने के 15 दिन बाद भी  बिना बिजली के

4.हिन्दुस्तान टाइम्स 

साल के अंत तक सबको टीका लगाने के लिए भारत को क्या करना चाहिए

5.द टेलीग्राफ

राजा और उनके बहुमूल्य 15 मिनट 

 

इन खबरों में इंडियन एक्सप्रेस की खबर खास तौर से उल्लेखनीय है। अखबार ने बताया है कि देश के पश्चिमी तट पर आए समुद्री तूफान के गुजरने के बाद 15 दिन तक लोग बिना बिजली के रह रहे हैं और दूसरी तरफ प्रधानमंत्री दूसरे समुद्री तूफान से संबंधित बैठक में एक अधिकारी के 15 मिनट लेट से आने पर कार्रवाई कर रहे हैं जबकि पश्चिम वाले भूकंप में गुजरात को राहत सबसे ज्यादा दी गई थी और पूर्व वाले में बंगाल को सबसे कम (व्हाट्ऐप्प की सूचना है, गलत भी हो सकती है)। जाहिर है यह सब केंद्र सरकार की मनमानी है और मौजूदा व्यवस्था या सिस्टम में इसे देखने-बताने वाला कोई नहीं है। अखबार भी नहीं। वह इसलिए कि इंडियन एक्सप्रेस ने आज छोटी सी एक खबर छापी है कि यह कार्रवाई बेजोड़ और परेशान करने वाली है। पूर्व कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी, पूर्व डीओपीटी सचिव, सत्यानंद मिश्रा और पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने कहा कि केंद्र सरकार की कार्रवाई से गलत परंपरा पड़ी है और इससे नौकरशाह हतोत्साहित होंगे। द टेलीग्राफ ने पूर्व केंद्रीय मानव संसाधन विकास सचिव अनिल स्वरूप के हवाले से लिखा है कि यह बदले की कार्रवाई के अलावा कुछ नहीं है। पर दोनों अखबारों की प्रस्तुति से लग रहा है कि इमरजेंसी में जगह खाली छोड़ने वाला इंडियन एक्सप्रेस इन दिनों डर-डर कर खबर छाप रहा है।  

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।