कृष्णमूर्ति इस खेल को समझ गए थे और थियोसोफिकल सोसाइटी सहित इस खेल को लात मारकर इससे बाहर निकल आए। उस संस्था मे दुनिया भर के जितने भी रहस्यवादी उस समय जमा हुए थे, उनका प्रोजेक्ट भी यही था कि बुद्ध के आधुनिक अवतार के साथ एक नया वर्ल्ड ऑर्डर खड़ा किया जाए।
जन्मदिन ( 11 मई ) पर विशेष–
जिद्दू कृष्णमूर्ति के बारे में वेदांती बाबा जिस ढंग से बात करते हैं उसे ध्यान से देखिए। वे कृष्णमूर्ति के बारे में कम और अपने बारे में ज्यादा बोलते हैं। असल में वो कृष्णमूर्ति के मुंह में अपने शब्द डाल के उनसे कुछ बुलवाना चाहते हैं।
एक रजिस्टर्ड भगवान ने तो उनके चमत्कारिक जन्म और दिव्य आसमानी गुरुओं की पूरी शृंखला खोज कर सामने रख दी। वहीं आजकल के एक सद्गुरु ने कृष्णमूर्ति के अंदर गौतम बुद्ध के अवतरण के बारे में बड़े शायराना अंदाज में बात रखी है।
यह सब बातें करते हुए उन्हें गौर से सुनिए, और उससे भी ज्यादा उनके चेहरे और बॉडी लैंग्वेज को गौर से देखिए।
ये बाबा लोग कृष्णमूर्ति के बारे में बोलते हुए हमेशा उनके जीवन से जुड़े हुए चमत्कारों या फिर उनके दिव्य जन्म या बचपन मे उनके दिव्य चयन की प्रक्रिया को उजागर करते हैं। ये लोग बार-बार जोर देते हैं कि किस तरह कृष्णमूर्ति को गौतम बुद्ध के अगले अवतार के रूप में चुना गया था। फिर यह भी कहानियां सुनाई जाती हैं कि उनके साथ किस किस तरह के चमत्कार होते थे।
लेकिन इन सब के बीच यह धूर्त बाबा लोग काम की चीज नहीं बताएंगे। कृष्णमूर्ति जिस प्रज्ञा के साथ बातें किया करते थे, बड़े-बड़े प्रश्नों को कितनी आसानी से सुलझाया करते थे, आत्मा परमात्मा और पुनर्जन्म की बकवास को किस तरह हवा में उड़ा दिया करते थे – इस सब का कोई उल्लेख इन बाबाओं के “प्रवचन” मे नहीं मिलेगा।
कृष्णमूर्ति के बारे में चमत्कारों की कहानी जोड़ना भारत के बाबाओं का सबसे प्राचीन षड्यंत्र है। इसी तरह गौतम बुद्ध के साथ हजारों चमत्कारों की कहानियां जोड़कर उन्हें आम आदमी से दूर कर दिया गया है। जबकि कृष्णमूर्ति और गौतम बुद्ध दोनों ही चमत्कारों को और चमत्कार की चर्चा को बकवास बताकर हवा में उड़ा देते थे।
कृष्णमूर्ति ने कभी भी स्वीकार नहीं किया कि वे गौतम बुद्ध के अगले जन्म है। वे इन सब बातों को कल्पना और षड्यंत्र कहकर नकार दिया करते थे। वे पुनर्जन्म और आत्मा में बिल्कुल भी भरोसा ही नहीं करते थे, हालांकि ऐसा कहना भी गलत होगा, सही बात यह है कि वे जानते थे कि यह सारी चीजें नहीं होती है। दुनिया भर के हजारों लोगों ने बड़े से बड़े जटिल प्रश्न उनके सामने खड़े किए।
जिददु कृष्णमूर्ति के काम करने का ढंग कैसा था इसका एक उदाहरण देना चाहता हूं।
भारत का एक सन्यासी यूरोप में उनसे मिलने जाता है। वह सन्यासी बताता है कि किसी खास तरह के ध्यान करने के बाद उसे एक चमत्कारिक पुरुष उसके कमरे में नजर आता है। एक गहरे ध्यान के बाद उसे वह दिव्य पुरुष दर्शन देता है और साधना पर मार्गदर्शन देता है। कृष्णमूर्ति उसकी तरफ गौर से देखते हैं और उससे कुछ सवाल पूछते हैं। वे पूछते हैं कि वह दिव्य पुरुष किन प्रश्नों का किस प्रकार उत्तर देता है, वह सन्यासी बताता है कि वह दिव्य पुरुष मुझे शब्दों में बात नहीं करता बल्कि अपने दृष्टि से मेरे मन में कुछ उत्तर संप्रेषित करता है।
इस तरह बहुत सारी बातें होती हैं, कृष्णमूर्ति बहुत ध्यान से और बहुत आत्मीयता से उसे सुनते हैं और कहते हैं कि क्या वह दिव्य पुरुष कुछ ऐसी बातें भी कहता है जो तुम्हारी नैतिक धारणाओं और संस्कारों के विपरीत हो? उत्तर देते हुए सन्यासी कहता है कि नहीं वह मुझे जो भी बातें कहता है वह मेरी धारणा व संस्कारों के अनुकूल होती हैं।
यह सुनकर कृष्णमूर्ति थोड़ी देर आंख बंद करके मौन बैठ जाते हैं।
थोड़ी देर बाद बहुत प्यार से उस सन्यासी को कहते हैं कि इस बात का अर्थ आप स्वयं समझने की कोशिश कीजिए। आपके सामने जो भी आ रहा है वह कहां से आ रहा है और उसकी तरफ से जो मार्गदर्शन आ रहा है वह कहाँ से और क्यों आ रहा है?
यह सुनकर वह सन्यासी थोड़ी देर वहीं बैठ कर कृष्णमूर्ति की उपस्थिति में इस बात पर मनन करता है, थोड़ी देर में उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। उसके रुदन में धन्यवाद का गहरा भाव होता है। वह एक ईमानदार इंसान था इसलिए धन्यवाद देकर चुपचाप निकल जाता है।
इस घटना को ध्यान से समझिए, यह वही खेल है जो मुन्नाभाई एमबीबीएस में मुन्नाभाई के साथ घटित होता है। मुन्नाभाई को अपनी कल्पना में जो गांधीजी नजर आते हैं, उसे अपने साथ चलते फिरते और बात करते हुए दिखाई देने लगते हैं। कल्पना में बसे यह गांधीजी वह सारी बातें बताते हैं जो मुन्ना भाई ने लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ी थीं।
यह विशुद्ध मनो वंचना है, इसमें कहीं कोई गहरे मनोवैज्ञानिक विकास का सूत्र नहीं है। बल्कि ठीक से देखा जाए तो यह एक मानसिक विकार है, अगर यह गहरा हो जाए तो शिजोफ्रेनिया बन जाता है।
कार्ल युंग ने ऐसे कई “आध्यात्मिक अनुभवों” का अच्छा पोस्टमार्डम भी किया है। उनकी किताबें मौजूद है आसानी से मिल जाएंगी।
धर्म और अध्यात्म की साधना के नाम पर जितनी विधियां और तरीके बताए जाते हैं, ज्यादातर वे इसी खेल का विस्तार है। बाबा लोग इस खेल में बहुत माहिर होते हैं, वे बहुत ही भावुक और आत्मीय वातावरण बनाकर मनुष्य को सम्मोहित करते हैं और अपनी कल्पना उनके मन में डाल देते हैं। फिर वे किसी खास किस्म की किताबों को पढ़ने का सुझाव देते हैं। इसी के साथ उनके प्रवचन और भजन सुनने और उनकी तस्वीरों को देखने की स्पष्ट सलाह दी जाती है।
अक्सर इन विषयों में रुचि रखने वाले लोग जीवन की किसी समस्या से परेशान होता है, इसीलिए ये लोग “हाईली सजेस्टिबल” अर्थात किसी भी सुझाव के लिए अत्यंत सुभेद्य होते हैं। सरल भाषा में कहें तो वे अपनी समस्याओं के कारण सहायता या इलाज के लिए इतने अधिक खुले होते हैं कि उनके खुलेपन मे ये धूर्त बाबा लोग अपने चिलम गांजा और आत्मा परमात्मा सब कुछ इकट्ठे लेकर घुस जाते हैं।
इसके बाद असली खेल शुरू होता है।
धीरे-धीरे वह इंसान इन बाबाओं की तरकीब में गहरे उलझने लगता है। स्त्रियों का शारीरिक और मानसिक शोषण शुरू होता है। पैसे वालों के पैसे लूटे जाते हैं। बाबाजी का कारोबार धीरे-धीरे बढ़ने लगता है।
ओशो रजनीश जैसे रजिस्टर्ड भगवान और सद्गुरु लोगों की चमचमाती कारों और फाइव स्टार आश्रमों को आप देख सकते हैं। ये लोग बहुत ही भोले और मासूम लोगों के मन से खेलते हैं। अध्यात्म की साधना के नाम पर उन्हें मानसिक विकारों, कल्पना और भावुकता के दलदल मे गहरे डुबकी लगाते जाते हैं। इनके चक्कर में फंसे हुए लोग बहुत मुश्किल से कभी आजाद हो पाते हैं।
प्राचीन समय में गौतम बुद्ध ने जिस तरीके से इस पूरे खेल को नंगा किया था ठीक उसी तरीके से जिद्दू कृष्णमूर्ति ने हमारे दौर में इस खेल को फिर से बेनकाब किया है।
गौतम बुद्ध और जिददु कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं को उनके मौलिक रूप में रखने से सभी बाबा लोग डरते हैं। ये बाबा लोग उनके शिक्षाओं को चमत्कारों की धुंध में दबाकर सत्यनारायण की कथा बना डालते हैं। ये लोग पूरी कोशिश करते हैं कि बुद्धू और कृष्णमूर्ति की शिक्षाओं में कहीं से आत्मा परमात्मा या पुनर्जन्म को जोड़ दें।
आप स्वयं सोचिए जिस कृष्णमूर्ति ने खुद ही पुनर्जन्म को नकार दिया उसे ही गौतम बुध का पुनर्जन्म बताया गया है। यह खेल असल में हिंदू धर्म को जन्म देने वाली थियोसोफिकल सोसाइटी के बहुत बड़े प्रोजेक्ट का हिस्सा था।
कृष्णमूर्ति इस खेल को समझ गए थे और थियोसोफिकल सोसाइटी सहित इस खेल को लात मारकर इससे बाहर निकल आए। उस संस्था मे दुनिया भर के जितने भी रहस्यवादी उस समय जमा हुए थे, उनका प्रोजेक्ट भी यही था कि बुद्ध के आधुनिक अवतार के साथ एक नया वर्ल्ड ऑर्डर खड़ा किया जाए।
कोरोना पश्चात जगत में मानसिक समस्याओं की बाढ़ आने वाली है, ऐसे में ध्यान समाधि और साधना सिद्धि इत्यादि की बकवास आसमान छूने वाली है। ऐसे में जो लोग सबसे कमजोर और परेशान होंगे सबसे पहले इन बाबाओं के चक्कर में फसेगे। अभी यूट्यूब और सोशल मीडिया पर इन बाबाओं ने अपना कांड शुरू कर दिया है।
दुनियाभर के सद्गुरु और चमत्कारी बाबा ही नहीं बल्कि रजिस्टर्ड भगवान के छोटे भाई बहनों ने भी अपना काम शुरू कर दिया है। इनके लिए बढ़िया मार्केट तैयार हो रहा है। दुर्भाग्य से इस खेल में सबसे गरीब और सबसे कमजोर लोग पहले पकड़े जाएंगे।
इस समय मे अगर आप कृष्णमूर्ति को पढ़ते हैं और सुनते हैं तो इन धूर्त और बेईमान बाबा लोगों से आसानी से बच सकते हैं। ये दाढ़ी वाले बाबा लोग कोरोना से भी ज्यादा खतरनाक हैं, इनसे बचिए।
संजय श्रमण चर्चित चिंतक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।