न अपील, न वकील, न दलील− ये लाइनें आपने इतिहास की किताबों में रौलेट एक्ट पढ़ते समय खूब पढ़ी होंगी। कितना भयावह होता होगा किसी को भी बिना कारण बताए उठा कर जेल में डाल देना और बिना कोई कानूनी सुविधा मुहैया कराए उसे महीनों जेल में बंद रखना। क्या आपने आजाद भारत में ऐसा महसूस किया है? बनारस के लोग ऐसा ही महसूस कर रहे हैं जहां 69 लोगों को जेल में डाल दिया गया है। ये सभी लोग शांतिपूर्वक नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी का विरोध कर रहे थे। पिछले तीन दिनों से ये जेल में बंद हैं। इनमें दो महिलाएं, 20 छात्र और बनारस की सिविल सोसायटी के लोग शामिल हैं। इन्हीं लोगों में शामिल हैं शहर के एक लोकप्रिय युवा दंपत्ति रवि और एकता शेखर और रिसर्च स्कॉलर दिवाकर।
रवि और एकता पर्यावरण और वायु प्रदूषण को लेकर बहुत संवेदनशील हैं और बीते पांच साल से केयर फार एयर नामक एनजीओ के जरिये बनारस तथा देश के कई जगहों पर लोगों को साफ़ हवा मुहैया कराने के हित काम करते हैं। सवाल ये है कि ये लोग सड़क पर क्यों उतरे? अपने एक साल के बच्चे को घर में अकेला छोड़कर ये लोग सड़कों पर किसके लिए आए?
ये लोग गलत को गलत कहने के लिए सड़कों पर आए। ये लोग सिर्फ अपने लिए नहीं, आने वाली नस्लों के लिए सड़कों पर आए ताकि आने वाली नस्लें नफरत की भाषा न बोलें। आने वाली नस्लें प्रेम-मुहब्बत की भाषा बोलें। रवि-एकता ने प्रेम विवाह किया है, इसलिए वे समाज में सिर्फ प्रेम फैलाना चाहते हैं। वे समाज को प्रदूषण मुक्त और प्रेमयुक्त बनाना चाहते हैं। सिर्फ अपने बच्चे के लिए नहीं आने वाली नस्लों के लिए वातावरण को साफ़ बनाना चाहते हैं और समाज को प्रेम से भरना चाहते हैं।
दिवाकर बीएचयू आइआइटी में रिसर्च स्कॉलर हैं। इनका अभी एक महीने का बच्चा है और पत्नी अभी कुछ दिनों पहले ही अस्पताल से मौत से लगभग जंग जीतकर घर वापस आईं हैं। उनकी सेहत में सुधार हो रहा है लेकिन उन्हें अभी देखभाल की बहुत जरूरत है। दिवाकर की पत्नी पिछले छह महीने से बीमार हैं। वे अपनी पत्नी का खयाल तो रख ही रहे थे, पर देश और समाज के लिए सड़क पर भी बराबर नज़र आ रहे थे। एक आम इंसान जहां सरकार और पुलिस के पचड़े से बचना चाहता है, वहीं ये वो लोग हैं जो परिवार की नाजुक स्थितियों के बावजूद सड़क पर उतरकर गलत का विरोध कर रहे होते हैं। इनको बुनियादी बात पता है जब देश और समाज रहेगा, तभी हम रहेंगे, परिवार रहेगा।
अब आप ये सवाल करेंगे कि ये सब मैं आपको क्यों बता रहा हूं? मैं आपको ये बातें इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि मुझे आगे यह बताना है कि इनके साथ क्या हुआ है। मुझे बताना है कि इस वक्त ये कहां हैं। मैं आपको यह अहसास करवाना चाहता हूं कि रवि-एकता का साल भर का बच्चा और दिवाकर की बीमार पत्नी व महीने भर का नवजात इस वक्त क्या झेल रहे हैं। वे इनका इंतजार करते हैं, पर न तो रवि-एकता अपने बच्चे के पास पहुंच पा रहे हैं और न ही दिवाकर अपनी बीमार पत्नी और बच्चे से मिल पा रहे हैं।
बीते 19 दिसंबर की सुबह बनारस के बेनियाबाग मैदान में सीएए और एनआरसी के खिलाफ एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन का आयोजन किया गया था। पुलिस ने वहां से 69 लोगों को हिरासत में लिया। सबको लगा कि डिटेन किया है, तो शाम तक छूट जाएंगे। पुलिस इन लोगों को पुलिस लाइन ले गई। इस दौरान कुछ लोग अपने इन साथियों की रिहाई के लिए पुलिस लाइन के बाहर इंतजार कर रहे थे। शाम तक इन 69 लोगों को पता चला कि उन पर आइपीसी की कुछ संगीन धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। फिर देर रात पता चला कि इन सभी को जेल भेज दिया गया है। दिवाकर, रवि और एकता भी इनमें शामिल हैं।
इन 69 लोगों में लगभग 20 तो बीएचयू के छात्र हैं। पुलिस ये सब जानती है। इसके बावजूद 20 दिसम्बर की सुबह अखबार में एक फोटो छपती है और साथ ही में लिखा होता है कि इन लोगों को जो व्यक्ति जहां भी देखे तुरंत पुलिस को सूचित करे। सूचित करने वाले को उचित इनाम दिया जाएगा। आज 22 दिसंबर हो गया है। आज तक पुलिस ने एफआइआर की प्रति किसी को नहीं दी है। अखबार में छपी खबरों से पता चला कि पुलिस इन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगाने पर विचार कर रही है।
इन सब घटनाओं को देखते हुए बस यही सवाल उठता है कि क्या आइआइटी बीएचयू का रिसर्च स्कॉलर दिवाकर आतंकी है जो राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है? क्या पर्यावरण बचाने की लड़ाई लड़ने वाले, दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में एक बनारस को साफ़ हवा दिलवाने का अभियान चलाने वाले रवि और एकता आतंकी हैं? क्या देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्र, बनारस की सिविल सोसायटी के लोग आतंकी है?
कुछ और सवालात बार-बार जेहन में आ रहे हैं। एकता-रवि के बच्चे को कुछ हुआ तो क्या सरकार और प्रशासन इसकी जिम्मेदारी लेगा? दिवाकर की पत्नी और दुधमुंहे बच्चे को कुछ हुआ तो क्या सत्ता उसकी जिम्मेदारी लेगी? कोर्ट की जाड़े की छ़ट्टी हो चुकी है। बताया जा रहा है कि 2 जनवरी, 2020 को अदालत खुलने के बाद ही ज़मानत के लिए कुछ उपाय संभीव हो पाएगा। इस बीच अगले दस दिनों तक इन्हें ऐसे ही जेल में रखा जाएगा।
क्या हम अंग्रेजों के समय में जी रहे हैं जहाँ न अपील, न वकील और न ही दलील का राज चलता था। अगर वास्तव में ऐसा है तो देश के तमाम सत्ताधीशों को अविलम्ब यह घोषणा कर देनी चाहिए कि देश में लोकतंत्र खत्म कर दिया गया है।
आकाश पांडेय भारतीय जनसंचार संस्थान में पत्रकारिता के छात्र हैं और बीएचयू के पूर्व छात्र हैं