“कोरोना पर सरकारी बयान देश के रिसते घाव पर मिर्च लगाने जैसा !”

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लाल बहादुर सिंह

 

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मंत्रालय के Medical Emergency Management Plan के Empowered Group के अध्यक्ष डॉ0 वी के पॉल ने कहा है कि सही समय पर लॉकडाउन के कारण आज हमारे देश में कोरोना बीमारी के मामले 14 से 29 लाख कम हैं तथा 37 से 71 हज़ार मौतें बच गईं।

डॉ0 पॉल की तारीफ में इतना ही जानना पर्याप्त होगा कि अप्रैल में इन्होंने भविष्यवाणी किया था कि 15 मई को भारत में कोरोना मामले शून्य हो जाएंगे। कल उन्होंने इस पर माफी भी मांग लिया कि ऐसा तो मैंने कभी कहा ही नहीं था।

उस डॉ0 पॉल ने अब यह जो नया ज्ञान परोसा है, उसकी विश्वसनीयता कितनी है?

क्या यह उस आशंकाग्रस्त देश के लिए कोई सांत्वना है, जहां मामले चीन इटली स्पेन को पीछे छोड़ते हुए सवा लाख पंहुँच रहे हैं? क्या यह उन 3583 परिवारों के आंसू पोंछ सकेगा जिन्होंने अपने प्रियजनों को खो दिया?

आखिर अमेरिका की तरह सरकार इस पर कोई शोध/श्वेतपत्र क्यों नहीं ले आती कि 31 जनवरी को देश में पहला मामला आने के 3 सप्ताह बाद भी यदि नमस्ते ट्रम्प रदद् कर दिया जाता और प्रवासी मजदूरों व अन्य नागरिकों को पर्याप्त समय देकर घर पहुंचा कर लॉकडाउन फरवरी में लागू कर दिया जाता, तो देश में आज मामले कितने कम और मौतें नगण्य होतीं, साथ ही हमारे प्रवासी मजदूर कितनी अकथनीय यातना से बच गये होते !

यहाँ तक कि मध्यप्रदेश में तख्तापलट के द्वारा भाजपा सरकार बन जाने तक का इंतज़ार किये बिना मार्च के शुरू में लॉकडाउन हो जाता तो आज हालात बिल्कुल अलग होते।

कोलंबिया विश्वविद्यालय में अभी हुए एक शोध के अनुसार अमेरिका में एकांतवास (Physical Distancing) 1 सप्ताह पहले लागू हो जाता तो वहां 36 हजार कम लोग मरते, 2 सप्ताह पहले तो 83 % लोगों की जान बच जाती।

भारत के लिए ऐसे किसी अध्ययन के नतीजे चौंकाने वाले हो सकते हैं।

संदिग्ध विशेषज्ञता वाले नौकरशाहों को आगे करने की बजाय, अनेक दूसरे राष्ट्राध्यक्षों की तरह आखिर प्रधानमंत्री मोदी इस महासंकट की घड़ी में स्वयं मीडिया के सामने आकर देश की जनता के मन में उमड़ते-घुमड़ते सवालों का सामना क्यों नहीं करते?

पिछले दिनों जब उन्होंने राष्ट्र को एकतरफा संबोधित भी किया, तो उनको सुनते हुए लगा ही नहीं कि हम एक ऐसे देश के प्रधानमंत्री को सुन रहे हैं, जहां महामारी की चपेट में आने वालों का आंकड़ा खतरनाक ढंग से peak की ओर बढ़ रहा है, पूरा देश दहशत और असुरक्षा के माहौल में जी रहा है, जहां करोड़ों प्रवासी मजदूर देश के राजमार्गों और रेल की पटरियों पर कटते-मरते, भूखे-प्यासे घिसटते घर पहुंचाने और जिंदगी की भीख मांग रहे हैं।

न सांत्वना के दो शब्द, न कोई योजना !

देश जानना चाहता था कि भयावह रफ्तार से बढ़ती महामारी को लेकर प्रधानमंत्री का क्या assessment है, इसे contain करने का क्या Road Map है, लॉकडाउन के इतने लंबे दौर के बाद अब इस stage पर क्या कुछ नया, ठोस प्रयास, नई योजना है !

पर इस सब पर रहस्यमय चुप्पी !

यह सब बाबुओं के हवाले है, जो स्वामिभक्ति में आँकड़ों की बाजीगरी करते हुए आधे-अधूरे मन से खानापूर्ति कर रहे हैं !

देश आज जब सांस रोके तबाही के मंजर का इंतज़ार कर रहा है, तब अमित शाह के अधीनस्थ अधिकारी डॉ0 पाल का यह बयान कि लॉकडाउन  “Timely and Early” था और “पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है “, घायल देश के रिसते घाव पर मिर्च लगाने जैसा है, क्रूर मजाक है।

यह एक संवेदनहीन, अदूरदर्शी, अक्षम नेतृत्व की विराट विफलता को ढकने और damage control का desperate effort है, जो नाकाम होने के लिए अभिशप्त है।


 

 

लाल बहादुर सिंह, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के लोकप्रिय अध्यक्ष रहे हैं।

 


 


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