देश में सुख-समृद्धि की बयार बह रही है। हर इन्सान को भरपेट खाना मिल रहा है। सबको सम्मानजनक रोज़गार मिल गया है। हर बच्चे को बढ़िया से बढ़िया तालीम मिल रही है और बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसे जुटाने की चिन्ता किसी माँ-बाप को नहीं।
वैसे तो देश में लोगों की सेहत इतनी अच्छी है कि कोई शारीरिक या मानसिक बीमारी किसी को होती ही नहीं और अगर हो भी जाए तो अच्छे से अच्छा इलाज बिना किसी झंझट या खर्च के सभी को मिलता है।
भ्रष्टाचार का नामो-निशान मिट चुका है। मिलावटखोरी गुज़रे ज़माने की दास्तान बन चुकी है। नेता, अधिकारी और पुलिस लोगों की इज़्ज़त करते हैं। सबका काम समय पर बिना किसी परेशानी के हो रहा है। सरकारी तन्त्र जनता को, उसके अधिकारों को सर्वोपरि मानता है।
ऊँच-नीच का भाव खत्म हो गया है। खानदान या जाति की इज़्ज़त के नाम पर युवाओं की हत्या नहीं होती। जाति, धर्म, जेंडर, भाषा वगैरह किसी तरह का भेदभाव नहीं है। इन संकीर्णताओं से हम कहीं आगे बढ़ चुके हैं।
इन्सान तो क्या प्रकृति भी सुरक्षित है। सभी शहर साफ-सुथरे हैं। चारो तरफ हरियाली। सड़कों पर गाड़ियाँ, धूल, धुएँ का अम्बार नहीं है। जंगल फिर से बढ़ रहे हैं।
प्रदूषण और विनाश करने वाले उद्योगों की बजाय छोटे पैमाने के उद्योग-धन्धों को बढ़ावा मिल रहा है। लालच, मुनाफा और उपभोग की बजाय एक-दूसरे की मदद और सादे रहन-सहन का विचार अर्थव्यवस्था का आधार है। प्राकृतिक संसाधनों की लूट की बजाय उनको सुरक्षित रखने की चेतना जन-जन में फैल चुकी है।
अब देश में कोई समस्या नहीं है। बस एक समस्या रह गई थी पर अब उसके दिन भी पूरे होने वाले हैं क्योंकि हमारे दूरदर्शी प्रधानमंत्री की नज़र इस पर पड़ चुकी है।
'Some people are shocked on hearing Om and Cow', says Prime Minister Narendra Modihttps://t.co/RUeZDVYp33
— DNA (@dna) September 12, 2019
यह समस्या बल्कि कहें तो चुनौती उन लोगों की है, बकौल प्रधानमंत्री मोदी, जिनको ‘गाय’ और ‘ओम’ जैसे शब्द सुन कर बिजली का करंट लग जाता है। इन शब्दों को सुन कर ये लोग समझते हैं कि देश 16वीं-17वीं शताब्दी में चला गया है।
इसे कहते हैं पारखी नज़र! प्रधानमंत्री जानते हैं कि सभी समस्याओं, दुश्वारियों, चुनौतियों के खत्म हो जाने के बाद भी देश में अगर बदहाली है तो इस वजह से कि कुछ खतरनाक लोगों ने ऐसा माहौल बना दिया है मानो गाय के नाम पर यहाँ नरसंहार हो रहे हों!
गाय के नाम से जिनको करंट लगता है उनकी गुंडागर्दी इतनी बढ़ गई है कि गाय की सेवा करने वाले अपने ही देश में सहम-सहम कर जी रहे हैं। उनका अपने ही देश में रहना दूभर हो गया है।
जबकि भक्त गौ माता की सेवा में सब कुछ न्यौछावर करने को तत्पर हैं। वे सब कुछ भूल कर गायों के लिए अपना जीवन बलिदान कर रहे हैं। ज़रूरत पड़ने पर दूसरों का भी। लेकिन कुछ बदमाश लोग संविधान, मानवाधिकार, आज़ादी वगैरह के बहाने ऐसे बलिदानियों के खिलाफ़ माहौल बना रहे हैं।
धर्म के लिए हिंसा तो सनातन परम्परा का हिस्सा रही है। उसका बेसिक स्ट्रक्चर, अटूट अंग! मौलिक अधिकार संविधान के उतने अटूट अंग नहीं हैं जितना हिंसा सनातन परम्परा का। मौलिक अधिकारों पर तो फिर भी अंकुश है। एक-एक अधिकार पर ढेरों ‘रीज़नेबल रेस्ट्रिकशंस’। पर धर्म के लिए की जाने वाली हिंसा पर कोई अंकुश नहीं!
दो-चार छोटी-मोटी घटनाएँ क्या हुईं “देश को बरबाद करने वालों” ने आसमान सिर पर उठा लिया। अरे, अगर गाय की रक्षा के लिए गौ भक्तों ने दो-चार लोगों को मारा तो धर्म के लिए मारा अपने निहित स्वार्थों के लिए नहीं। इससे भक्तों को क्या मिलता है सिवाय धर्म रक्षा के संतोष के?
अर्थव्यवस्था की मलाई तो अम्बानी-अडानी खा रहे हैं। भक्त पहले भी बेरोज़गार थे, अब भी हैं। ऐसे निष्काम कर्मयोगियों की निंदा करना घोर पाप है। गनीमत है कि बदमाश लोगों ने चाहे भक्तों को चाहे कितना भी भटकाने की कोशिश की हो मगर बेरोज़गारी धर्म के रास्ते नहीं आई। नोटबन्दी, जीएसटी और अब मन्दी से चाहे कमर टूट जाए मगर धर्म नहीं टूटा!
लेकिन प्रधानमंत्री जी अब हाथ-पर-हाथ धरे नहीं रहेंगे। हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव होने वाले हैं। धर्म की, गाय की अलख जगाना ज़रूरी है।
गाय के नाम पर नफरत व हत्या की राजनीति का विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ़ कड़ा रुख अपनाना ज़रूरी है। चुनावों के मद्देनज़र यह ‘आपद् धर्म’ है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इन लोगों ने देश को बरबाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। देश को बरबाद करने वाले यानी देश के दुश्मन।
कहने का मतलब यह कि नागरिक अधिकारों और संविधान वगैरह जैसी तुच्छ चीज़ों को धर्म और गाय से ऊपर रखने वाले लोग देश के दुश्मन हैं। देशभक्त तो वे हैं जो धर्म और गाय को ऊपर रखते हैं। नीचे-नीचे चाहे देश को औने-पौने बेच दें। उससे धर्म को नुकसान नहीं होता।
गाय व उसके भक्तों का निरादर करने वाले देश के दुश्मनों की खबर लेने के लिए सरकार ने कानून मज़बूत कर दिए हैं। जो लोग देश के 16वीं या 17वीं सदी में जाने को लेकर परेशान हैं उनको अंदाजा भी नहीं कि प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में भक्त इस देश को इक्कीसवीं या बाईसवीं सदी क्या सीधे सतयुग में ले जा रहे हैं।