हमें यकीन है कि जब आप, हमारे देश के प्रधानमंत्री, अथाह जल राशि को सरदार सरोवर बांध में देख कर उसकी तस्वीरें ट्विटर पर डाल रहे थे तब आपको किसी ने भी यह नहीं बताया होगा कि इसी अथाह जलराशि से मध्य प्रदेश में 32,000 परिवार डूब के मुहाने पर आ चुके हैं।
बारिश का पानी गंदला होता है। उसमें आपको लोगों के डूबते सपने, टूटी हुई खाट के पाये, गाय–बैलों के गले की घंटियाँ, न्याय की बची-खुची आस, पुनर्वास की सरकारी व्यवस्थाओं के मास्टर प्लान, कुछ दिखाई नहीं दिये होंगे। अथाह जल राशि के शोर में आपको 35 साल से चल रहे संघर्ष के नारे, अपीलें, छोटी-छोटी जीत की खुशियाँ, हार से टूटे मन, फिर से खड़े होने का उत्साह और कभी न हार मानने की प्रेरणाओं की आवाज़, कुछ भी नहीं सुनाई दी होगी।
कोर्ट की दलीलें, ट्रिब्यूनल के फैसले, आयोगों की सिफ़ारिशें और चुनावी वादे तो इस शोर में क्या ही सुनाई पड़ी होंगी? उन्हें अनसुना करके ही तो आप यहाँ तक पहुंचे हैं।
News that will make you thrilled!
Happy to share that the water levels at the Sardar Sarovar Dam have reached a historic 134.00 m.
Sharing some pictures of the breathtaking view, with the hope that you will go visit this iconic place and see the ‘Statue of Unity.' pic.twitter.com/nfH67KcrHR
— Narendra Modi (@narendramodi) August 28, 2019
काश, आपने देश के मीडिया को इस कदर न डराया या ललचाया होता तो आज आपके पद पर ऐसा बट्टा न लगा होता। आपका पीआरओ आपको बताता कि नर्मदा घाटी से ऐसी खबरें आ रही हैं और निश्चित ही आप भले कुछ न करते पर हजारों लोगों की कीमत पर भरे हुए जलाशय की तस्वीरों को मनमोहक नहीं कहते।
आपको ही क्या जहाँपनाह, देश के बड़े हिस्से में इन परिवारों की आसन्न जलसमाधि की कोई खबर नहीं है। फिर कहूँगा कि इतना बुज़दिल मीडिया देश के लिए ठीक नहीं। अगर एक मीडिया, मीडिया के जैसा होता और प्रेस, प्रेस की तरह तो ये खबरें शायद हिंदुस्तानियों को उन परिवारों की तकलीफ़ों में साथ ला पाती। और फिर आपको एक बेजान मूर्ति को निहारने की अपील देश की जनता से नहीं करना पड़ती। जिसका नाम ‘स्टेच्यु ऑफ यूनिटी’ रखा गया है।
मूर्तियाँ यूनाइट नहीं करतीं प्रधानमंत्री जी। यूनाइट करती हैं संवेदनाएं, सहानुभूतियां, हमदर्दियां। इन अनुभूतियों से आपका नाता कभी रहा नहीं। जिस महान पुरुष की मूर्ति का नाम आपने ‘यूनिटी’ रखा उसके पीछे भी मंशा उनकी विरासत और उनके संघर्ष के साथियों को उनसे कमतर बताना था।
आपको भरे हुए बांध का दृश्य मनोरम लग सकता है। जलराशि की विशालता को देखकर आपका मन मुदित हो सकता है और चूंकि मामला आपके राज्य की समृद्धि से जुड़ा है तो आपको उस पर गर्व भी हो सकता है, पर जिसकी कीमत पर आप यह दृश्य देख पा रहे हैं उनकी पीड़ा पर भी एक ट्वीट कर देते। उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते और उन्हें इस डूब से बचाने के कुछ उपाय करते।
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मैं मध्य प्रदेश में पैदा हुआ। जब से गाँव में अखबार पहुंचना शुरू हुआ और मैंने पढ़ना शुरू किया, तबसे ही नर्मदा बचाओ आंदोलन और मेधा पाटकर मेरे चेतन का हिस्सा रही हैं। भले ही समझ में नहीं आता था पर इस आंदोलन और मेधा पाटकर से एक रिश्ता बना। उन्हें हमेशा अखबारों के पहले पन्ने पर पाया। राज्य में सरकारें ज़्यादा समय कांग्रेस की रहीं लेकिन अखबारों पर यह प्रतिबंध नहीं लगा कि मेधा पाटकर के आंदोलन, अनशन को न छापा जाए। सरकार और मुख्यमंत्री जवाबदेही देते रहे। बयानों से भी और कुछ हद तक कार्यवाहियों से भी।
बीते 15 साल आपके दल की सरकार रहीं लेकिन राहत का एक काम नहीं किया। नर्मदा घाटी में पेड़ लगाने का फर्जी विश्व रिकार्ड ज़रूर बनाया। काश, आप सबसे अच्छे पुनर्वास का रिकार्ड बनाते, फर्जी नहीं सचमुच का, तो आज जब आप गुजरात में हिलोरें लेते सरदार सरोवर की फोटो डालते तो उसमें राहत की एक पतली धारा उन विस्थापितों की भी दिखलाई पड़ती जो आज आसमान से गिरती एक-एक बूंद से खौफ खा रहे हैं।
आज मेधा पाटकर और नर्मदा बचाओ आंदोलन शायद संघर्ष के अंतिम मोर्चे पर खड़े हैं। वे ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य का निर्वहन’ कर रहे हैं। लोग आज भी उनके साथ हैं। यह जानते हुए भी कि कुछ होना नहीं है। अब भी अगर बांध के गेट खोले जाएं और पानी के भंडारण को स्थगित किया जाए तो शायद कुछ परिवार इस बारिश में उजड़ने से बच जाएं, पर ये क्या? आप बांध के बंद दरवाजों पर खुशी मना रहे हैं?
मैंने नीरो को नहीं देखा, उसके बारे में पढ़ा है। उसकी कोई तस्वीर ज़हन में नहीं है लेकिन अगर मुझे उसकी तस्वीर बनाना हो तो आज वो तस्वीर आपकी होगी। मुझे माफ करें जहाँपनाह लेकिन इंसान का दिल ऐसा नहीं होता और तब तो बिलकुल नहीं जब उसके हाथ इतने बलशाली हैं कि वो सैकड़ों परिवारों को डूबने से बचा सकते हों।
इस आंदोलन का सम्मान होना चाहिए। इसने और इसके जैसे कितने ही आंदोलनों ने देश के लोकतन्त्र को गढ़ने में और दुनिया के चुनिन्दा महान जनतंत्रों के बीच हिंदुस्तान को गौरव दिलाने में भूमिका निभाई है। आज जब पूरी दुनिया विकास की एकरेखीय परिभाषा से त्रस्त होकर वैकल्पिक दिशा में सोच रही है तब इस आंदोलन ने विकास के पूंजीवादी प्रारूप का एक ‘बर- अक्स’ रचा।
192 गाँव, एक कस्बा और लगभग 32,000 परिवार क्या कोई मायने नहीं रखते? लेकिन जब मैं यह सवाल आपसे, देश के हुक्मरानों से और हमवतनों से पूछ रहा हूं तब इनकी संख्या में मुझे कश्मीर के 80 लाख परिवार भी जोड़ लेना चाहिए जिन्हें बलात कैदी बना लिया गया है और उन्हें कोई अंदाज़ा नहीं है इस क़ैद से कब मुक्ति मिलेगी। मुझे इसमें असम के अपने उन 20 लाख परिवारों को भी जोड़ लेना चाहिये जो 31 अगस्त की डेडलाइन का इंतज़ार कर रहे हैं और उसके बाद उनकी नियति का फैसला आपके हाथों से होना है।
जहाँपनाह! यह देश नहीं है एक महादेश है। इसे उपमहाद्वीप कहा जाता है। इसकी विशालता इसके भूगोल में नहीं बल्कि यहां के आवाम के दिलों की उदारता में है। इसकी विविधता ही इसकी ताक़त है और न्याय की कोई भी परिभाषा आपसे होकर गुजरती है। इन्हें न्याय दीजिए। इस देश को विस्थापितों और निर्वासितों का देश मत बनाइए।
जयशंकर प्रसाद ने लिखा था– ‘महत्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में पलता है।‘ आपकी सारी महत्वाकांक्षाएं पूरी हुईं जहाँपनाह, अब इस निष्ठुरता के सीपी से बाहर निकल आइए और इस देश को वंचितों की न्यायस्थली बनाइए।
मेधा पाटकर को अफसोस और असफलताओं का तोहफा नहीं दीजिए बल्कि उन्हें शुक्रिया कहिए लोगों में न्याय के प्रति 35 सालों तक भरोसे को जिंदा रखने के लिए। उन्हें कृतज्ञता दीजिए कि वो लोकतन्त्र की सजग प्रहरी हैं।
देश के दानिशमंदों को सुनिए, अपने हमवतन अदीबों, शायरों और कवियों को सुनिए। उनके कहने पर कान दीजिए। यकीन मानिए आपका यश बढ़ेगा ही।
देखिए, अपने समय का एक बड़ा कवि मेधा पाटकर के बारे में क्या कह रहा था:
मेधा पाटकर
भागवत रावत
करुणा और मनुष्यता की ज़मीन के / जिस टुकड़े पर तुम आज़ भी अपने पांव जमाए / खड़ी हुई हो अविचलित
वह तो कब का डूब में आ चुका है / मेधा पाटकर
रंगे सियारों की प्रचलित पुरानी कहानी में / कभी न कभी पकड़ा जरूर जाता था / रंगा सियार
पर अब बदली हुई पटकथा में / उसी की होती है जीत / उसी का होता है जय-जयकार / मेधा पाटकर
तुम अंततः जिसे बचाना चाहती हो / जीवन दे कर भी जिसे ज़िंदा रखना चाहती हो / तुम भी तो जानती हो कि वह न्याय
कब का दोमुंही भाषा की बलि चढ़ चुका है / मेधा पाटकर
हमने देखे हैं जश्न मनाते अपराधी चेहरे / देखा है नरसंहारी चेहरों को अपनी क्रूरता पर / गर्व से खिलखिलाते
पर हार के कगार पर / एक और लड़ाई लड़ने की उम्मीद में / बुद्ध की तरह शांत भाव से मुस्कुराते हुए
सिर्फ़ तुम्हें देखा है / मेधा पाटकर
तुम्हारे तप का मज़ाक उड़ाने वाले / आदमखोर चेहरों से अश्लीलता की बू आती है
तुम देखना उन्हें तो नर्मदा भी / कभी माफ़ नहीं करेगी / मेधा पाटकर
ऐसी भी जिद क्या / अपने बारे में भी सोचो / अधेड़ हो चुकी हो बहुत धूप सही
अब जाओ किसी वातानुकूलित कमरे की / किसी ऊंची-सी कुर्सी पर बैठ कर आराम करो / मेधा पाटकर
सारी दुनिया को वैश्विक गांव बनाने की फ़िराक में / बड़ी-बड़ी कंपनियां / तुम्हें शो-केस में सजाकर रखने के लिए
कबसे मुंह बाये बैठी हैं तुम्हारे इंतज़ार में / कुछ उनकी भी सुनो / मेधा पाटकर
खोखले साबित हुए हमारे सारे शब्द / झूठी निकलीं हमारी सारी प्रतिबद्धताएं
तमाशबीनों की तरह हम दूर खड़े-खड़े / गाते रहे दुनिया बदलने के / नकली गीत
तुम्हें छोड़कर / हम सबके सिर झुके हुए हैं
मेधा पाटकर!