संघ का एकात्म मानववाद उर्फ़ सरकार का अल्पसंख्यक प्रेम वाया CAA-NRC…

लोकेश मालती प्रकाश
ब्लॉग Published On :

New Delhi: Prime Minister Narendra Modi gestures while addressing the nation during the 71st Independence Day function at the historic Red Fort in New Delhi on Tuesday. PTI Photo by Atul Yadav (PTI8_15_2017_000045B)


मोदी सरकार ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह देश के इतिहास की सबसे सहिष्णु और अल्पसंख्यक-प्रेमी सरकार है। जहां सरकार के विरोधी सरकार को अल्पसंख्यकों का दुश्मन साबित करने के लिए पूरा ज़ोर लगा रहे हैं, वहीं नागरिकता संशोधन कानून लाकर सरकार ने दिखा दिया है कि अपने अल्पसंख्यक प्रेम में वह पीछे नहीं हटने वाली। ऐसा दृढ़ निश्चय छप्पन इंच की छाती वाले ही दिखा सकते हैं।

यह अलग सवाल है कि ये अल्पसंख्यक हिंदुस्तान के हैं या पाकिस्तान के। किसी देश के तो अल्पसंख्यक हैं जिनसे इस सरकार को इतना प्रेम है। बल्कि पड़ोसी मुल्कों के अल्पसंख्यकों की जैसी चिंता मोदी सरकार ने दिखाई है उससे इसका अंतरराष्ट्रीयतावाद भी सामने आता है। इस मामले में मोदी सरकार ने कम्यूनिस्टों को भी पछाड़ दिया।

विरोधी यह इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि अल्पसंख्यकों की चिन्ता ही थी तो केवल तीन देशों के अल्पसंख्यकों की बात ही क्यों की गई। वो भी वे तीन देश जहाँ मुसलमानों की आबादी सबसे ज़्यादा है। अल्पसंख्यकों को तो श्रीलंका में भी सताया जा रहा है और चीन व म्यांमार में भी। नेपाल में भी। इनको क्यों छोड़ दिया गया? ये भी तो हमारे पड़ोसी मुल्क हैं।

इस तरह के सवाल उठाने वाले राष्ट्र-विरोधी अर्बन नक्सल हैं। कल को ये कहेंगे कि भारतवर्ष में भी अल्पसंख्यकों को धार्मिक आधार पर सताया जाता है! या दलितों को जाति के आधार पर सताया जाता है! ये लोग यह माँग भी कर सकते हैं कि चूँकि इन समुदायों को वास्तविकता में अब तक दोयम दर्जे का ही माना गया व वैसा रखा गया इसलिए नए कानून में इनको सही मायने में पूर्ण नागरिकता दिया जाए जो पिछले सत्तर सालों में मिलना बाकी है।

वैसे इस तरह के दुष्प्रचार के जवाब में असल राष्ट्रभक्त ‘भारतमाता की जै’ बोल कर मामला निपटा सकते हैं। किसी में दम नहीं होगा कि पलट कर और सवाल पूछे। वह तो इस सरकार की उदारता है जो वह अपनी बात प्यार से समझा रही है लेकिन कोई समझने को तैयार नहीं।

राष्ट्रभक्त सरकार को पिछले पाँच साल से लगातार बदनाम करने वाले यह नहीं देखते कि यह सरकार अल्पसंख्यकों के दर्द को समझ रही है। उसे मालूम है कि धार्मिक प्रताड़ना का दर्द कैसा होता है। और मालूम कैसे न हो भला?

लिबरलों व वामियों की तरह यह महज़ किताबी ज्ञान नहीं है। ठोस अनुभव, प्रयोग व परीक्षण से निकला वैज्ञानिक ज्ञान है।

सरकार का आका संघ परिवार पिछले सौ साल से धार्मिक प्रताड़ना के विषय पर शोध कर रहा है। और सिर्फ सौ साल ही क्यों? भारतवर्ष में लोगों को प्रताड़ित करने का लम्बा इतिहास है। चाहे धर्म के आधार पर हो या जाति या लिंग के आधार पर – लोगों को प्रताड़ित करने की इस प्राचीन विरासत का असली वारिस संघ परिवार ही है।

इस एंगल से देखें तो लोगों को प्रताड़ित करना इस सरकार के डीएनए में है। उससे ज़्यादा गहराई से इस विषय को और कोई नहीं समझ सकता।

कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि सरकार इन तीन देशों के भी कुछ खास धर्मों को मानने वाले लोगों को ही नागरिकता देने का प्रावधान क्यों कर रही है? बाकियों को क्यों छोड़ रही है जबकि धार्मिक प्रताड़ना के शिकार वे भी हैं जो बहुसंख्यक धर्म के ही किसी अलग पन्थ को मानते हैं।

जवाब वही है। सरकार दिखाना चाहती है कि उसे अल्पसंख्यक समुदाय से कितना प्रेम है। उसकी कितनी चिन्ता है। एकात्म मानववाद मानने वाली सरकार अल्पसंख्यकों में भेदभाव नहीं करती। पहले पड़ोसी मुल्कों के अल्पसंख्यकों का मसला निपटाएगी उसके बाद इस देश के अल्पसंख्यकों का। एक-एक कर सबका नम्बर आएगा।

जहाँ तक बहुसंख्यक धर्म के प्रताड़ित तबकों का सवाल है वो इन देशों के बहुसंख्यकों की आपसी लड़ाई है। उनका ‘इंटरनल मैटर’ है। आन्तरिक मामला। इसमें दखल देना उचित नहीं। वर्ना कल को इस देश के बहुसंख्यकों के इंटरनल मामलों में बाहरी दखल होने लगेगा। उससे सबको परेशानी होगी। यह सरकार राष्ट्र के सनातन हितों को पल भर भी नज़र से ओझल नहीं होने देती।

और फिर देश के गृह मंत्री ने खुद कहा है कि देश के अल्पसंख्यकों को डरने की ज़रूरत नहीं। लोगों को डर न लगे इसलिए पूरे देश में धारा 144 लगा दी गयी। जगह-जगह मोबाइल इंटरनेट बन्द कर दिया गया। बाकी किसी को डर न लगे इसलिए जनता को उसकी औकात में रखना ज़रूरी होता है। यह काम पुलिस पूरी मुस्तैदी से कर ही रही है।

इधर विरोधियों ने झूठ का बाज़ार गर्म कर रखा है। इतना ज़्यादा कि खुद सरकार भी रह-रह कर कनफ़्यूज़ हो जाती है। गृहमंत्री संसद में और संसद के बाहर दसियों बार कह चुके हैं कि ‘कैब’ के बाद ‘एनआरसी’ आएगा। मगर प्रधानमंत्री ने दिल्ली की रैली में कह दिया कि देशभर में एनआरसी लाने पर कोई चर्चा ही नहीं हुई है अब तक।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि डिटेंशन सेंटर की बातें भी अफ़वाह हैं। उधर उनकी सरकार के मंत्री संसद में बता चुके हैं कि असम के डिटेंशन सेंटर में 28 लोगों की जान जा चुकी है।

इस तरह की बातों से लोग प्रधानमंत्री पर झूठा होने का बेबुनियाद इल्ज़ाम लगाते हैं। यह ठीक नहीं है। यह झूठ नहीं एक ही शाश्वत सच के अलग-अलग रूप हैं। वह शाश्वत सच क्या है इस पर लोकतंत्र में चर्चा नहीं मन की बात होती है। समय आने पर होगी।

कुछ शातिर विरोधी हंगामा कर रहे हैं कि नागरिकता के नए तकाज़ों पर जो खर्च आएगा उसका हिसाब-किताब किया जाए। इन तत्वों ने सरकार पर इल्ज़ाम लगाया है कि इसके पास लोगों को बेहतर तालीम व स्वास्थ्य देने के लिए पैसा नहीं है मगर एनआरसी के लिए है जिस पर अकेले असम में लगभग 1500 करोड़ रुपए सरकारी खज़ाने से खर्च हुए। लोगों का कितना खर्च हुआ इसका तो कोई हिसाब ही नहीं।

इस तरह के तर्क भी राष्ट्र के लिए खतरा हैं। अरे, राष्ट्र की सुरक्षा के लिए चाहे जितना खर्च हो राष्ट्र करेगा। राष्ट्र से बड़ा कुछ भी नहीं है। राष्ट्र के बच्चे जाहिल और कुपढ़ बनें तो बनें। भूख व बीमारियों से मरें तो मरें। मगर एक भी घुसपैठिया राष्ट्र में नहीं रहना चाहिए। घुसपैठियों के कारण हम विश्व गुरू बनने से रह-रह कर चूक जाते हैं।

घुसपैठिये न होते तो हम अमरीका जापान को कब का पछाड़ चुके होते। घुसपैठियों के कारण चन्द्रयान रास्ता भटक गया। घुसपैठियों के कारण देश में बेरोज़गारी है। अर्थव्यवस्था स्लो-डाउन यानी सुस्ती की शिकार है। घुसपैठिये देश का सारा माल खा जा रहे हैं जिससे इतनी मँहगाई हो गई है। और उन्हीं के कारण देश की वित्तमंत्री प्याज़ नहीं खाती हैं। ऐसे में पैसे का हिसाब-किताब करना देश के साथ धोखा है।

यही वजह है कि राष्ट्रभक्त टैक्सपेयरों ने अब तक इस मामले पर कोई आपत्ति नहीं दर्ज की है। वही टैक्सपेयर जो किसी आंदोलन में सार्वजनिक सम्पत्ति के नुकसान होने पर आंदोलनकारियों को कच्चा चबा जाने को तत्पर रहते हैं। ऐसे टैक्सपेयर चुप हैं क्योंकि राष्ट्रहित का मामला है, किसी की शिक्षा, नौकरी, विस्थापन, आरक्षण वगैरह जैसी मामूली बातों का नहीं जिसके नाम पर अर्बन नक्सल आसमान सर पर उठाए रहते हैं।

दरअसल सरकार के विरोधी समझ ही नहीं पा रहे कि राष्ट्र क्या चीज़ है। किसी ज़माने में पड़ोसी मुल्क के ऐसे ही राष्ट्रभक्त प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने कहा था कि चाहे घास खानी पड़े मगर हम परमाणु बम बनाएँगे! भुट्टो ने क्या खाया पता नहीं, पर वहाँ की जनता घास के लिए भी मोहताज होने की स्थिति में रही है। राष्ट्र के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते हैं। ऐसी राष्ट्रभक्त अवाम से इस देश के लोगों को भी सबक लेना चाहिए और सरकार का खुले दिल से समर्थन करना चाहिए। बाकी मोदी सरकार देश में घास की कमी नहीं होने देगी इतना तो हमें यकीन है। लेकिन उसके लिए घुसपैठियों को भगाना होगा नहीं तो देश की सारी घास भी वही खा जाएँगे।