कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते महाराष्ट्र में काम कर रहे दिहाड़ी के मजदूर की छुट्टी के बाद उनका महाराष्ट्र/राजस्थान जैसे प्रदेशों में बेतहाशा रेलवे स्टेशन पर जमा होना और फिर स्पेशल ट्रेन/बस चलने पर उनका ठूँस ठूँस कर वापस लौटने की जल्दी की तस्वीरें कल “जनता कर्फ्यू” के बीच तैरती रहीं, जो एक बड़ा मज़ाक और प्रशासन की असफलता पर मुंह चिढ़ाता हुआ सा प्रतीत हुआ. वही लोग जो कर्फ्यू की वकालत करते और “थाली /शंखनाद की ध्वनि” को सेलिब्रेट करते दिखे, सोशल मीडिया पर लिखकर और वीडियो डालकर चिंतित होते भी दिखे.
वैसे अगर ये दिहाड़ी मजदूर घरों को न भागते तो रहते कहां? इनके सोने की जगह तो फुटपाथ थी और दिन में रहने/काम करने की जगह एक ही थी जहां वो कमा कर अपना पेट भरते थे और परिवार के लिए पैसे घर भेजते. प्रशासन द्वारा उनके रुकने की कोई व्यवस्था की नहीं गई थी. न्यूज में भीड़ भरी तस्वीर आने के बाद प्रधानमन्त्री ने ट्वीट करके चिंता जरूर जतायी.
पहले से लोग प्रधानमन्त्री जी के आठ बजे संबोधन के ट्वीट के बाद पैनिक होने लगे थे. उसके बाद से लोगों ने घरों में सामान भरना शुरू कर दिया था. उन्हें डर था कि कहीं नोटबंदी की तरह अचानक देशबंदी न हो जाए. देखकर यही लगता है कि लोगों को अब सरकार पर भरोसा नहीं रहा. उस पर पहले से संबोधन की ट्वीट और स्थिति खराब कर देती है. प्रधानमंत्री को पूरी जिम्मेदारी के साथ बिना किसी तैयारी/ट्वीट के सीधे टीवी/रेडियो के माध्यम से संबोधन करना चाहिए था, हालांकि ये लिखने और कहने में थोड़ा ज्यादा अजीब है कि हम प्रधानमंत्री को उनको जिम्मेदारी बता रहे हैं क्योंकि प्रधानमंत्री पद ही देश का पहला सबसे जिम्मेदार पद और व्यक्ति हैं.
हर बात इवेंट न बना कर हमें चीन से ही सबक लेना चाहिए था जिसने महामारी को उचित व्यवस्था से लगभग खत्म कर दिया है और इसी के साथ बाकी देशों में संक्रमण के चलते और संक्रमण के डर के चलते स्थिति विकराल बनती दिख रही है. वैसे तो अब जनता कर्फ्यू और लॉकडाउन ही एक उपाय है क्योंकि हम तीसरे चरण में आ चुके हैं जहां संक्रमण समुदाय में फैलने लगता है.
अभी तक डॉक्टर्स के पास प्रोटेक्टिव सूट तक नहीं है. केवल कुछ बड़ों अस्पताल को छोड़कर हर जगह जांच और इलाज़ की भी व्यवस्था नहीं है. ऐसी स्थिति में वो मरीजों को देखने से भी परहेज कर रहे हैं. कल ही एक व्यक्ति जो अन्य शहर से वापस आया था, एहतियात दिखाते हुए सरकारी अस्पताल गया तो सुनते ही डॉक्टर ये कहते हुए हट गए कि “हमारा भी परिवार है”। ये मामला साड़ी गाँव खुर्द, कुशीनगर उत्तर प्रदेश का है.
कुछ जागरूक हैं जो संक्रमण को लेकर पूछते सुनते हैं तो स्थिति सामने आ रही है मगर गाँव देहात के ज्यादा लोग तो सेलिब्रेटी कनिका कपूर की तरह छुपते फिर रहे होंगे.
“थाली/शंख ध्वनि” इवेंट के साथ अगर प्रधानमंत्री लोगों को सरकारी कोष में कुछ डोनेशन की बात और स्वेच्छा से जिसके पास अपना स्कूल/बिल्डिंग जो खाली हो देने को कहते हैं तो काफी लोग सामने आ सकते थे। और एक दिन में ही लगभग हर शहर में अस्थायी अस्पताल के लिए जगह और तुरंत प्रोटेक्टिव सूट के साथ दवाओं के लिए पैसे का इंतज़ाम हो जाता, जिसकी कमी के चलते जांच नहीं हो पा रही है..
कल जब खुद मेरी तबीयत ठीक न लगने और कोरोना जैसे लक्षण दिखने पर 1075 हेल्पलाइन नंबर पर फोन किया तो काफी देर में लगा और लगने के बाद भी रिकॉर्डेड संदेश सुनने को मिलाः “sorry for inconvenience due to lack of man power… (मैनपावर की शार्टेज?)
सभी ऑफिस बंद हो चुके हैं. कम से कम सरकारी कर्मचारी की तो ट्रेनिंग पर गाइडलाइन के साथ अस्थायी नियुक्ति की ही जा सकती थी. कुछ देर बाद बात होने पर पूछताछ करके मुझे उन्होंने कहा, “कहीं पास के प्राइवेट डॉक्टर को दिखाकर चार पांच दिन तक दवा खाकर देखें क्योंकि फ्लू के भी यही लक्षण हैं. ये पूछने पर कि मुझे सुरक्षा के लिहाज से क्या करना चाहिए, उनका कहना था कि मास्क पहने बच्चों से दूरी बनाएं और साफ सफाई रखें.
अब सवाल ये है कि कहां हैं प्राइवेट डॉक्टर? मेडिकल स्टोर पर मास्क नहीं है. 300-500 में खरीदना मेरी क्षमता के बाहर है और साथ ही किसी भी प्राइवेट डॉक्टर के पास प्रोटेक्टिव सूट नहीं है इसलिए वो देखने से परहेज कर रहे हैं. तो मुझे कितनी दूर तक बिना मास्क के घूम कर डॉक्टर ढूंढना होगा या सरकारी अस्पताल में लाइन लगानी होगी? नहीं पता.
ये बात मैं कोई पैनिक होकर नहीं कह रही हूं. बीते दिनों मैंने जिस पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल किया था उसमें ट्रैवल कर रही एक महिला ने बताया कि उसके भाई जो सऊदी से आए हैं, उनको कोरोना पाजिटिव है और उन्हें एडमिट किया गया है. नहीं पता कि वो महिला उनके संपर्क में आई थी या नहीं. थोड़ी दिक्कत होने पर केवल इसीलिए मैंने हेल्पलाइन नंबर पर बात करके सलाह मांगी.
ऐसी ही स्थिति हर व्यक्ति के साथ हो सकती है जो महाराष्ट्र/राजस्थान से भागकर यूपी/बिहार जैसी जगहों पर गया है. माहौल भी इतने दशहत का हो गया है कि लोग दिक्कत होने पर भी क्वेरेनटाइन के डर से छुप रहे हैं.
अब, जबकि युद्धस्तर पर तैयारी होनी चाहिए थी इसमें इलाज़ के साथ साथ फोन पर या घर घर जाकर counselling होती है जिससे लोगों में डर खत्म होता और वो खुद सामने आते. हम इवेंट सेलिब्रेट करके अपना ध्यान भटका रहे हैं जबकि व्यवस्था पर भी नज़र रखने पर चर्चा होनी चाहिए थी. बात तो यहां तक थी कि लोगों ने सड़क पर समूहों में आभार व्यक्त करने के लिए शंखनाद किया, जिसमें पीलीभीत के डीएम वैभव श्रीवास्तव और एसपी अभिषेक दीक्षित ने शंख बजाते हुए अगुवाई तक की.
मतलब साफ है कि कल हमने तीसरे चरण के संक्रमण के लिए सरकारी रूप से सड़कों पर ऐलान करके डाक्टरों के लिए मुसीबत बढ़ा दी है.
जहां एक ओर ईरान भयंकर चरण में आ चुका है और वो भी अपनी लापरवाही से, वैसा ही न्योता हम भी देते दिख रहे हैं. वैसे तो आज 23 मार्च से यूपी में प्रभावित 16 जिलों में 25 मार्च तक लाॅकडाउन हो चुका है और राजस्थान, दिल्ली भी 31 मार्च तक लॉकडाउन कर चुके हैं, मगर इतने से ही बात नहीं बनने वाली है. प्राइवेट अस्पताल में 4500 पर कोरोना जांच की अनुमति देने से ही संक्रमण नहीं रुकेगा. सरकार को अपने सभी विधायक/मंत्री का वेतन रोकने के और देश के उद्योगपतियों को स्पष्ट तौर पर सहयोग करने के आदेश जारी कर देने चाहिए.
इलाज के लिए सभी जरूरी दवाओं का इंतज़ाम फौरी तौर से शुरू कर देना चाहिए. सभी प्राइवेट अस्पतालों में भी प्रोटेक्टिव सूट, मास्क, हैंडवाश, सेनेटाइजर और बाकी जरूरी चीजें कम से कम मूल्य पर उपलब्ध करा देनी चाहिए ताकि इसी समय पर पनपने वाले फ्लू, वायरल जैसे इन्फेक्शन को निपटाया जा सकें और सरकारी अस्पतालों की ओर जाने वाली भीड़ कम की जा सके. हेल्थ वर्कर्स को ट्रेनिंग देकर counselling के लिए तैयार करना चाहिए ताकि लोग पैनिक न हों और लोग अवसाद में न आएं. उम्मीद है कि हम स्थिति विस्फोटक होने से पहले ही इस पर काबू पा सकते हैं.