भारत में मीडिया और मीडिया वालों की जो दशा है वह किसी से छिपी नहीं है। मुनाफा कमाने के लिए कारोबार के रूप में चलाए जाने वाले संस्थानों को विज्ञापनों के दम पर खरीद लिया गया है। सरकार के खिलाफ लिखने-बोलने वाले पत्रकारों को परेशान करने और समर्थकों को ईनाम देने के ढेरों मामलों के बीच एक प्रमुख मीडिया संस्थान को सरकार समर्थक द्वारा खरीदने की कोशिश की भी खबर है। इस बीच, संबंधित मीडिया संस्थान, एनडीटीवी में कार्यरत रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता रवीश कुमार ने इस्तीफे की घोषणा का वीडियो यू ट्यूब पर अपलोड किया तो उसे कुछ ही घंटे में लाखों लोगों ने देखा। ऐसे समय में भारत में मीडिया की आजादी को नापने के लिए 2500 साल पुराना उदाहरण दिया जा रहा है। यूनाइटेड नेशन में भारत की प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने दावा किया कि देश में लोकतंत्र के चारो स्तंभ – विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और चौथा स्तंभ सब दुरुस्त है। अंग्रेजी अखबार, ‘द टेलीग्राफ’ ने इसकी कायदे से खबर ली है। पेश है, ‘द टेलीग्राफ’ की रिपोर्ट का हिन्दी अनुवाद-
‘भारत में चौथा स्तंभ दुरुस्त: संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज’- सबकी तरफ से, सबके लिए यह दावा उसी हफ्ते किया गया जब पत्रकार रवीश कुमार ने एनडीटीवी से इस्तीफा दिया।
मुख्य शीर्षक था- “रवीश जी निश्चिंत रहिए, शाक्यों पर भरोसा कीजिए ‘
भारत सरकार ने देश में प्रेस की स्वतंत्रता को मापने के लिए 2,500 साल पुरानी कसौटी खोजने के लिए समय–यात्रा की है। इस बात पर जोर देते हुए कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ उस सभ्यता में बरकरार है जिसकी जड़ें शाक्यों और लिच्छवियों तक पहुंचती हैं।
यह घोषणा गुरुवार को न्यूयॉर्क में तब की गई जब संयुक्त राष्ट्र में देश की स्थायी प्रतिनिधि ने हर महीने बदलने वाली अध्यक्षता संभाली। बेहद व्यापक और सब कुछ सामान्य बताने वाला यह दावा उसी सप्ताह आया जब पत्रकार रवीश कुमार ने एनडीटीवी की नौकरी छोड़ दी। इसकी प्रोमोटर कंपनी में अडानी ने कुछ दिनों पहले पर्याप्त हिस्सेदारी हासिल कर ली थी। नौकरी छोड़ने की सूचना देने वाला एक भावुक और मारक वीडियो यू–ट्यूब पर पोस्ट किया गया जिसे शुक्रवार, 2 दिसंबर 2022 की रात तक 4.6 मिलियन(46 लाख ) बार देखा गया था।
रवीश कुमार ने ही “गोदी मीडिया” शब्द गढ़ा था। अपने वीडियो में उन्होने भारत में पत्रकारिता के भविष्य की एक गंभीर तस्वीर चित्रित की। उन्होंने कहा है, “जो युवा पत्रकार बनने के लिए पढ़ाई पर लाखों रुपये खर्च कर रहे हैं, उन्हें दलाली का काम करने के लिए मजबूर किया जाएगा… और जो वर्तमान में पत्रकार के रूप में काम कर रहे हैं, उन्हें भुगतना पड़ रहा है। कुछ थकान महसूस कर रहे हैं तो कई प्रोफेशन छोड़ रहे हैं। कई लोग कहते हैं कि नौकरी रखने के लिए मजबूर करने के अलावा पत्रकार होने में कोई उत्साह नहीं बचा है।
यदि सांख्यिकीय पुष्टि की आवश्यकता है, तो इसे रिपोर्टर्स सैंस फ्रंटियर्स द्वारा प्रकाशित 2022 ग्लोबल प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट में दर्ज किया गया है। भारत पहले ही 142 के निम्न रैंक पर था जहां से और गिरकर 150 पर पहुंच गया है।
न्यूयॉर्क में गुरुवार को लहराए गए आदर्शवादी दावों में इनमें से कोई भी परिलक्षित नहीं हुआ।
प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में देश के निम्न रैंक पर एक सवाल के जवाब में संयुक्त राष्ट्र में देश की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने न्यूयॉर्क में कहा, भारत को यह बताने की जरूरत नहीं है कि लोकतंत्र पर क्या किया जाए। वे सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता हासिल करने के मौके पर बोल रही थीं।
कंबोज ने कहा “हमें यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि लोकतंत्र पर क्या करना है। भारत शायद दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यता है। भारत में, लोकतंत्र की जड़ें 2,500 साल पहले शाक्यों और लिच्छवियों के जमाने में भी थीं …. और, हाल के दिनों में, हमारे पास लोकतंत्र के सभी स्तंभ हैं जो दुरुस्त हैं: विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और चौथा स्तंभ – प्रेस। और, एक बहुत ही जीवंत सोशल मीडिया। इसलिए, हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है।”
उन्होंने यह भी कहा कि देश ने हर पांच साल में दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक कवायद की और हर कोई यह कहने के लिए स्वतंत्र था कि वह क्या चाहता है।
“और, इस तरह हमारा देश काम करता है। यह तेजी से सुधार कर रहा है, बदल रहा है और परिवर्तन हो रहा है। हमारी प्रगति बहुत प्रभावशाली रही है और मुझे यह कहने की आवश्यकता नहीं है। आपको मेरी बात मानने की जरूरत नहीं है। दूसरे लोग भी ऐसा कह रहे हैं।“
अब, कृपया निर्णायक तौर पर अ–भारतीय सवाल, शाक्य और लिच्छवी कौन थे? – मत कीजिये।
अगर आप यह सवाल करते हैं, तो इसका मतलब है कि आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
सुश्री कंबोज ने शाक्यों और लिच्छवियों के संदर्भ में जो कुछ कहा वह निश्चित रूप से प्रधानमंत्री के कहे की प्रतिध्वनि थी। पिछले साल अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन द्वारा आयोजित लोकतंत्र शिखर सम्मेलन में मोदी ने कहा था, “लोकतांत्रिक भावना हमारी सभ्यता के लोकाचार का अभिन्न अंग है।“
प्रधानमंत्री ने आगे कहा था, लिच्छवी और शाक्य जैसे निर्वाचित गणतांत्रिक शहर राज्य 2,500 साल पहले तक भारत में फले–फूले। 10वीं शताब्दी के उत्तरामेरुर शिलालेख में वही लोकतांत्रिक भावना देखी जाती है जिसने लोकतांत्रिक भागीदारी के सिद्धांतों को संहिताबद्ध किया। इसी लोकतांत्रिक भावना और लोकाचार ने प्राचीन भारत को सबसे समृद्ध देशों में से एक बना दिया था।”
“सदियों का औपनिवेशिक शासन भारतीय लोगों की लोकतांत्रिक भावना को दबा नहीं सका। (उससे तो हम माफी मांगते और पेंशन पाते थे) इसने फिर से भारत की स्वतंत्रता के साथ पूर्ण अभिव्यक्ति पाई, और पिछले 75 वर्षों में लोकतांत्रिक राष्ट्र–निर्माण में एक अद्वितीय कहानी का नेतृत्व किया।”
लिच्छवियों ने ईसा पूर्व छठी शताब्दी में वैशाली पर शासन किया था। उसका साम्राज्य नेपाल की पहाड़ियों तक फैला हुआ था। बिहार सरकार की वेबसाइट के अनुसार, लिच्छवी राज्य एशिया में पहला गणतंत्र राज्य माना जाता है। लिच्छवियों की तरह, शाक्यों को हिमालय की तलहटी में सीमित पदचिह्न के साथ गणसंघों (गणराज्यों) के रूप में संगठित किया गया था।
इतिहासकारों ने कभी भी इन गणराज्यों के अस्तित्व पर विवाद नहीं किया है लेकिन भारत में – प्राचीन काल में भी शासन का प्रमुख रूप राजशाही रहा है।
प्राचीन भारत के इतिहासकार रामशरण शर्मा के अनुसार गणराज्यों में वास्तविक शक्ति कबीलाई अल्पतंत्रों के हाथों में थी।” शाक्यों और लिच्छवियों के गणराज्यों में शासक वर्ग एक ही गोत्र और एक ही वर्ण का था… मौर्य काल से ही गणतंत्रात्मक परम्परा क्षीण हो गई। मौर्य–पूर्व काल में भी, राजशाही कहीं अधिक मजबूत और सामान्य थी।” इसे उन्होंने प्राचीन भारत पर एनसीईआरटी की पुस्तक में लिखा था जिसे अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल के दौरान हटा दिया गया था।
ढाई हजार साल पहले उस गौरवशाली भारत में प्रेस कितना आजाद था, यह पता नहीं है। लेकिन सवालों के जवाब देते हुए कंबोज ने ग्लोबल प्रेस फ्रीडम रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग खराब होने के कारणों पर मामूली विवरण भी साझा नहीं किया।
(रुचिरा कंबोज (58) विदेश सेवा की अफसर हैं और 1987 बैच की टॉपर। उन्हें इसी साल संयुक्त राष्ट्र में भारत का स्थायी प्रतिनिधि बनाया गया है। इससे पहले भूटान में भारत की प्रतिनिधि थीं। संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतनिधित्व करने वाली वे पहली भारतीय महिला हैं। उनका यह कहना कि भारत को यह बताने की जरूरत नहीं है कि लोकतंत्र में क्या करना चाहिए, भारतीय अखबारों में भी खूब छपा है। वे भारतीय सेना के एक पूर्व (अब दिवंगत) अधिकारी की बेटी हैं और उनकी शादी एक कारोबारी से हुई है। दोनों की एक बेटी है। रुचिरा की मां दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाती थीं। मई 2014 में रुचिरा को विशेष असाइनमेंट पर दिल्ली बुलाया गया था और उन्होंने नरेन्द्र मोदी के शपथग्रहण समारोह का निर्देशन किया था। इस विशेष जिम्मेदारी को निभाकर वे पेरिस लौट गई थीं। यूनेस्को में भारत की प्रतिनिधि रहने के साथ वे दक्षिण अफ्रीका और भूटान में भी भारत की राजदूत रह चुकी हैं। विवरण विकीपीडिया से। )
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।