मुख्यमंत्रियों-मुख्य न्यायाधीशों का सम्मेलन – जनहित याचिकाओं को लेकर, सीजेआई रमना ने क्या कहा!

दिवाकर पाल दिवाकर पाल
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आज दिल्ली के विज्ञान भवन में चले 11वें मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायधीशों के सम्मेलन में भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने भारतीय राजनैतिक, समाज और क़ानून की मौजूदा परिस्थिति पर माननीय अतिथियों को, जिनमे प्रधान मंत्री मोदी और केंद्रीय क़ानून मंत्री किरिण रिज्जु भी शामिल थे सम्बोधित करते हुए कई बातें कहीं, जहां उन्होंने क़ानून के बनने एवं उनके अनुपालन पर विधायिका और कार्यपालिका की ज़िम्मेवारियों, और साथ ही सरकार के तीन अंगों की लक्ष्मण रेखा पर विशेष रूप से बल दिया।

‘जनहित याचिकाओं से बढ़ा बोझ’

अपने अभिभाषण में कई बातों के साथ ही जस्टिस रमना ने पीआईएल यानी जनहित याचिकाओं पर एक गम्भीर टिप्पणी की, जब उन्होंने यह जताया कि जनहित याचिकाएं, जनता को न्याय दिलाने के लिए अहम हैं, लेकिन कई मामलों में ये सिर्फ संस्थानों को परेशान करने या फिर कारपोरेट की आपसी प्रतिस्पर्धा के लिए इस्तेमाल की जाने लगी हैं। इस तरह की तुच्छ और स्वार्थपूर्ण याचिकाओं के कारण भी अदालत पर बोझ बढ़ा है। हालांकि अब ज़्यादातर न्यायाधीश जानते हैं कि इन्हें कैसे देखना है। उन्होंने यह भी कहा कि पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन आजकल पर्सनल इंटरेस्ट लिटिगेशन बन गए हैं।

‘जो-जैसा सीजेआई ने कहा, उसका अनुवाद’

“तुच्छ मुकदमेबाजी की बढ़ती संख्या एक चिंता का विषय है। उदाहरण के लिए, जनहित याचिका की अवधारणा कभी-कभी व्यक्तिगत हित वादों में बदल रही है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पीआईएल ने काफ़ी सार्वजनिक हितों की सेवा की है। हालांकि, कभी-कभी परियोजनाओं को रोकने या सरकारी कर्मचारियों पर पर दबाव डालने के लिए इसका दुरुपयोग किया जा रहा है। इन दिनों पीआईएल, आपसी विवाद या कॉर्पोरेट प्रतिद्वंद्विता का हथियार बन गया है। दुरुपयोग की संभावना को महसूस करते हुए, अदालतें इन्हें दाखिल करने में अत्यधिक सजग हो गई हैं।”

विधिक विशेषज्ञों की मानें तो यहाँ यह समझना ज़रूरी है, कि भारत की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति का यह बयान, शायद भविष्य में जनहित याचिकाओं के ख़िलाफ़ एक माहौल बनाने में समर्थ हो सकता है। ऐसे में, जनहित के महत्वपूर्ण मुद्दे भी दरकिनार किए जा सकते हैं।

पूर्वी सीजेआई जस्टिस पीएन भगवती

यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि जनहित याचिका की संकल्पना, संविधान-सम्मत शक्तियों का इस्तेमाल कर जस्टिस पीएन भगवती ने संकल्पित की थी, और इस तरह पीआईएल भारतीय न्यायपालिका की एक अनूठी देनहै। कोई भी पीआईएल संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट में, अथवा अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट में दाखिल की जा सकती है।