सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली दंगों की साजिश मामले में तीन छात्र कार्यकर्ताओं की जमानत के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर अपील पर नोटिस जारी करते हुए कहा कि दिल्ली पुलिस की अपील पर फैसला होने तक हाईकोर्ट के फैसले को मिसाल के तौर पर न लिया जाए। कोर्ट ने कहा कि वह इस स्तर पर कार्यकर्ता देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा को दी गई जमानत में हस्तक्षेप नहीं कर रहा है। न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की अवकाश पीठ ने दिल्ली पुलिस द्वारा दायर अपील पर नोटिस जारी किया, लेकिन जमानत के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
पीठ ने कहा कि, “जवाबी हलफनामा 4 सप्ताह के भीतर दायर किया जाए। 19 जुलाई से शुरू होने वाले सप्ताह में गैर-विविध दिन पर सूचित करें। इस बीच इस निर्णय को किसी भी न्यायालय के समक्ष किसी भी पक्ष द्वारा एक मिसाल के रूप में नहीं माना जाएगा। यह स्पष्ट किया जाता है कि प्रतिवादियों को दी गई राहत इस स्तर पर प्रभावित नहीं होगी।”
एसजी मेहता ने आज की सुनवाई में शीर्ष न्यायालय से हाईकोर्ट के निर्णय पर रोक लगाने का आग्रह किया। उन्होंने बेंच से कहा कि वकील इस पर भरोसा करते हुए जमानत के लिए आगे बढ़ रहे हैं। ट्रायल कोर्ट को डिस्चार्ज अर्जी पर विचार करना होगा और इसे इस फैसले से बदलना होगा।एडवोकेट सिब्बल ने जोर देकर कहा कि जरूरत पड़ने पर मामले की जल्द से जल्द सुनवाई की जा सकती है, लेकिन स्टे नहीं लगाया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को 15 जून को जमानत दी थी। यह देखते हुए कि दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत अपराध उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया नहीं बनते हैं। गुरुवार (17 जून) को आखिरकार तीनों कार्यकर्ताओं को तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया। दरअसल दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को दिल्ली दंगों की साजिश के मामले में छात्र कार्यकर्ता नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 15 जून को दी गई जमानत के अनुसार तत्काल रिहा करने के आदेश जारी किए थे। अतिरिक्त सत्र न्यायालय, कड़कड़डूमा ने दिल्ली पुलिस द्वारा दायर आवेदनों को खारिज कर दिया था, जिसमें कार्यकर्ताओं के पते और उनके जमानतदारों की जांच के लिए और समय की मांग की गई थी। कोर्ट ने तन्हा, नरवाल और कलिता के जमानत आवेदनों की अनुमति देने वाले तीन अलग-अलग आदेशों में यह पता लगाने के लिए आरोपों की तथ्यात्मक जांच की है कि क्या उनके खिलाफ यूएपीए की धारा 43 डी (5) के प्रयोजनों के लिए प्रथम दृष्टया मामला बनता है। इसके अलावा उच्च न्यायालय द्वारा विरोध के मौलिक अधिकार और नागरिकों की असहमति को दबाने के लिए यूएपीए के तुच्छ उपयोग के संबंध में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की गई हैं।
दिल्ली पुलिस ने उनके खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि दिसंबर 2019 से नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ उनके द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन फरवरी 2020 के अंतिम सप्ताह में हुए उत्तर पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक दंगों के पीछे एक “बड़ी साजिश” का हिस्सा थे। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की एक उच्च न्यायालय की पीठ ने चार्जशीट के प्रारंभिक विश्लेषण के बाद पाया कि इस मामले में यूएपीए के तहत आतंकवादी गतिविधियों (धारा 15,17 और 18) के अपराधों में प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है। खंडपीठ ने कहा था कि जमानत के खिलाफ यूएपीए की धारा 43 डी (5) की कठोरता आरोपी के खिलाफ आकर्षित नहीं है और इसलिए वे दंड प्रक्रिया संहिता के तहत सामान्य सिद्धांतों के तहत जमानत पाने के हकदार हैं।
पीठ ने कहा था कि, “चूंकि हमारा विचार है कि यूएपीए की धारा 15, 17 या 18 के तहत कोई अपराध अपीलकर्ता के खिलाफ चार्जशीट और अभियोजन द्वारा एकत्र और उद्धृत सामग्री की प्रथम दृष्टया प्रशंसा पर नहीं बनता है, अतिरिक्त सीमाएं और धारा 43डी(5) यूएपीए के तहत जमानत देने के लिए प्रतिबंध लागू नहीं होते हैं और इसलिए अदालत सीआरपीसी के तहत जमानत के लिए सामान्य और सामान्य विचारों पर वापस आ सकती है।”
इन तीन छात्र नेताओं ने तिहाड़ जेल में एक साल से अधिक समय बिताया है, यहां तक कि COVID-19 महामारी की दो घातक लहरों के समय भी जेल में ही रहे। महामारी के कारण अंतरिम जमानत का लाभ नहीं मिल सका क्योंकि वे यूएपीए के तहत आरोपी हैं। पिछले महीने नताशा नरवाल के पिता महावीर नरवाल की COVID19 की वजह से मौत हो गई थी। उच्च न्यायालय ने अंतिम संस्कार करने के लिए उन्हें तीन सप्ताह के लिए अंतरिम जमानत दी थी।
लाइव लॉ से साभार।