जानवरों को हलाल करने ने के ख़िलाफ़ दायर एक जनहित याचिका को शरारतपूर्ण बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आज ख़ारिज कर दिया। मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति एस.के.कौल ने कहा कि “कल आप कहेंगे कि किसी को भी मांस नहीं खाना चाहिए। हम यह निर्धारित नहीं कर सकते हैं कि शाकाहारी कौन होना चाहिए और मांसाहारी कौन होना चाहिए!”
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि ‘हलाल’ केवल जानवरों को मारने का एक तरीका है। अलग-अलग तरीक़े हो सकते हैं। कुछ लोग हलाल करते हैं तो कुछ लोग झटके का मांस खाना चाहते हैं। कुछ लोग रेंगने वाले जंतुओं का मांस भी खाते हैं। इसमें क्या समस्या है?
याचिकाकर्ता-संगठन के वकील ने दलील दी थी कि हलाल की प्रक्रिया में जानवर को बेहद दर्द होता है। पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत इसे रोका जाना चाहिए। वकील ने तर्क दिया कि जलीकट्टू मामले में, आवश्यकता के सिद्धांत को दोहराया गया था- यह कहा गया था कि भोजन के लिए जानवरों की हत्या की अनुमति है, लेकिन जानवरों के प्रति मानवता दिखाने के लिए इस तरह की हत्या भी एक तरीके से की जानी चाहिए।” ‘हलाल’ की तकनीक एक विशेष समुदाय (मुस्लिम) से संबंधित एक कुशल व्यक्ति द्वारा की है। इसके लिए रक्त की आखिरी बूंद तक पशु को जीवित रहने की आवश्यकता होती है … यह ‘झटका’ की तुलना में बहुत अधिक दर्दनाक है जिसमें रीढ़ की हड्डी में एक प्रहार शामिल है, जिससे जानवर तुरंत मर जाता है। इस तरह की प्रथा “मानवता के खिलाफ” है, को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
लेकिन पीठ ने याचिका को “शरारतपूर्ण” बताते हुए खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि अधिनियम की धारा 11 (1) (एल) इसे दंडनीय अपराध बनाती है अगर कोई किसी जानवर को मारता है या किसी भी जानवर (आवारा कुत्तों सहित) को क्रूरतापूर्वक इंजेक्शन या किसी अन्य अनावश्यक रूप से स्ट्राइकिन इंजेक्शन का इस्तेमाल करके मारता है। धारा 28 किसी भी समुदाय के धर्म के अनुसरण में या किसी भी धार्मिक संस्कार के लिए किसी भी तरह से किसी जानवर की हत्या करने की छूट देती है।
“कल आप कहेंगे कि किसी को भी मांस नहीं खाना चाहिए। हम यह निर्धारित नहीं कर सकते हैं कि शाकाहारी कौन होना चाहिए और मांसाहारी कौन होना चाहिए! न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि याचिका “पूरी तरह से गलत” है।