हिंदी फ़िल्म निर्माताओं को चुभीं रिपब्लिक और टाइम्स नाऊ की अँग्रेज़ी गालियाँ, पहुँचे दिल्ली हाईकोर्ट


टीआरपी लूटने के इस खेल में तथ्यों का भी ध्यान नहीं रखा गया और पत्रकारिता को काल्पनिक क़िस्सागोई में बदल दिया गया। इस होड़ में आगे निकलने के लिए भाषा की मर्यादा भी लगातार तोड़ी गयी। वैसे तो हिंदी चैनलों ने भी यही किया लेकिन लगता है कि हिंदी फ़िल्में बनाने वाले बॉलीवुड के निर्माताओं को अंग्रेज़ी में दी जा रही गालियाँ ज़्यादा चुभीं और उन्हें इस मामले में दो अगुवा चैनलों के ख़िलाफ़ अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है।


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रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाऊ की फ़िल्म इंडस्ट्री और उसके दिग्गजों के ख़िलाफ़ लगातार जारी अभियान ने अब क़ानूनी मोड़ ले लिया है। बॉलीवु़ड एसोसिएशन ने दोनों चैनलों के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। इस एसोसिएशन में 34 फ़िल्म निर्माता शामिल हैं।  इस लिस्ट में यशराज फ़िल्म्स, शाहरुख ख़ान की कंपनी रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट, सलमान ख़ान फ़िल्म्स, आमिर ख़ान प्रोडक्शंस, अजय देवगन फ़िल्म्स, करण जौहर का धर्मा प्रोडक्शंस और फ़रहान अख़्तर का एक्सेल एंटरटेनमेंट, विधु विनोद चोपड़ा फ़िल्म्स  जैसी दिग्गज कंपनियाँ शामिल हैं।

याचिका में बॉलीवुड का मीडिया ट्रायल रोकने की माँग की गयी है। कहा गया है कि दोनों चैनल लगातार बॉलीवुड और फ़िल्म निर्माताओं के ख़िलाफ़ ग़ैर ज़िम्मेदाराना और अपमानजनक टिप्पणी करते हैं। याचिका में रिपब्लिक टीवी और इसके एडिटर इन चीफ़ अर्णव गोस्वामी, रिपोर्टर प्रदीप भंडारी, टाइम्स नाऊ और उसके एडिटर इन चीफ़ राहुल शिवशंकर, ग्रुप एडिटर नविका कुमार का नाम शामिल है। याचिका में कहा गया है कि चैनलों और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बॉलीवुड और उसके सदस्यों के ख़िलाफ़ ग़ैरज़िम्मेदार और अपमानजनक टिप्पणी करने या प्रकाशित करने से बचना चाहिए।

ग़ौरतलब है कि तमाम चैनलों ने सुशांत सिंह राजपूत की मौते के मामले को बॉलीवुड के ख़िलाफ़ अभियान चलाने का बहाना बना लिया। सीधे सीधे इसे हत्या कहा गया और फिर बॉलीवुड को ड्रग्स का अड्डा बताया जाने लगा।  चूँकि जनता में फ़िल्मों और उसके कलाकारों के प्रति दिलचस्पी होती है, इसलिए  ऐसी ख़बरें ख़ूब देखी भी जाती है। इससे चैनलों की टीआरपी बढ़ती है। लेकिन टीआरपी लूटने के इस खेल में तथ्यों का भी ध्यान नहीं रखा गया और पत्रकारिता को काल्पनिक क़िस्सागोई में बदल दिया गया। इस होड़ में आगे निकलने के लिए भाषा की मर्यादा भी लगातार तोड़ी गयी। वैसे तो हिंदी चैनलों ने भी यही किया लेकिन लगता है कि हिंदी फ़िल्में बनाने वाले बॉलीवुड के निर्माताओं को अंग्रेज़ी में दी जा रही गालियाँ ज़्यादा चुभीं और उन्हें इस मामले में दो अगुवा चैनलों के ख़िलाफ़ अदालत का दरवाज़ा खटखटाया है।