कांग्रेस चिंतन शिविर में बोलीं सोनिया- विभाजन के वायरस से लड़ना ही होगा!

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चिंतन, मंथन और परिवर्तन के नारे के साथ राजस्थान के उदयपुर में आज से कांग्रेस का तीन दिवसीय नवसंकल्प शिविर प्रारंभ हुआ। पेश है, इसका उद्घाटन करते हुए पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गाँधी द्वारा दिया गया भाषण–

साथियों,

इस ऐतिहासिक शहर की एक बहुत ही कीर्तिवान विरासत है। यहां जो हमारा चिंतन शिविर हो रहा है, उसका प्रसंग है ‘नव संकल्प’।

यह हम सबको एक अवसर देता है, जहां हम सब विचार-विमर्श करें, उन तमाम चुनौतियों पर, जो भाजपा की नीतियों और RSS से जुड़ी हुई संस्थाओं की गतिविधियों के चलते, आज देश के सामने हैं।

एक राजनीतिक दल की हैसियत से, हमारे लिए भी यह एक अवसर है, कि हम विमर्श करें अपने आगे के रास्ते पर। एक तरह से यह न केवल राष्ट्रीय मुद्दों पर एक चिंतन है, बल्कि एक आत्म-चिंतन भी है।

मैं जानती हूं, हमारे कई साथी यहां आना चाहते थे। इस चिंतन शिविर में भाग लेना चाहते थे। लेकिन कई कारणों से हमें संख्या को सीमित रखना पड़ा। मुझे पूरा भरोसा है, कि वे इस बात को समझेंगे। इसका यह मतलब नहीं है, कि संगठन को मज़बूत बनाने में उनका योगदान किसी से भी कम है।

अब तो यह पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है, कि प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगी जो बार-बार दोहराते हैं ‘maximum governance & minimum government’ इससे उनका असली चेहरा निकल कर सामने आ गया है।

इसका असली अर्थ है, देश को निरंतर ध्रुवीकरण में रखना और लोगों को चिंता, भय और असुरक्षा के माहौल में जीने को मज़बूर करना।

इसका असली अर्थ है, अल्पसंख्यक जो हमारे गणतंत्र के बराबर के नागरिक हैं, जो हमारे समाज के अटूट अंग हैं, उन्हें जान-बूझकर निशाना बनाना और उन पर क्रूरता से हमला करना।

इसका असली अर्थ है, समाज में युगों से चली आ रही विविधता का दुरूपयोग करके उसे बांटना और समाज में बड़ी सावधानी से पालन-पोषण किए गये अनेकता में एकता के सिद्धांत को तबाह करना।

इसका असली अर्थ है, अपने राजनीतिक विरोधियों को डराना, धमकाना, उनकी छवि को नुक़सान पहुंचाना, उन्हें झूठे बहानों से जेल में डालना और उनके खि़लाफ़ जांच एजेंसियों का ग़लत इस्तेमाल करना।

इसका असली अर्थ है, तमाम लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्वतंत्रता और निष्पक्षता के साथ खिलवाड़ करना।

इसका असली अर्थ है, इतिहास के नाम पर थोक में झूठ परोसना और हमारे महान् नेताओं को, विशेष तौर पर जवाहरलाल नेहरू को बदनाम करना। उनके योगदान, उपलब्धियों और बलिदानों को एक सोची समझी रणनीति के तहत नीचा दिखाना या उनका खंडन करना।

इसका असली अर्थ है, महात्मा गांधी के हत्यारों और उनके वैचारिक पथ प्रदर्शकों का महिमा मंडन करना।

इसका असली अर्थ है, देश के संविधान के सिद्धांतों, आदर्शों और उसके चार स्तंभ- न्याय, स्वतंत्रता, समानता व भाई-चारे का खुलकर उल्लंघन करना।

इसका असली अर्थ है, भय के माध्यम से नौकरशाही, उद्योगपतियों, व्यापारियों और Civil Society को क़ाबू में रखना।

इसका असली अर्थ है, खोखले नारे, भटकाने की तरक़ीबें और जब मरहम की सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो, तब भी बड़-बोले प्रधानमंत्री मोदी जी की हैरान कर देने वाली खामोशी।

आज न केवल लंबे समय से पोषित हमारे संवैधानिक मूल्य ख़तरे में हैं, बल्कि नफ़रत और कलह की जो आग भड़काई जा रही है, उस आग ने, कई लोगों का जीवन तबाह कर दिया है। इन लपटों के गंभीर सामाजिक विकट परिणाम- अशांति और हिंसा के रूप में दिखते हैं।

हर एक भारतवासी शांति, मेल-जोल और आपसी समन्वय के साथ जीना चाहता है। लेकिन भाजपा, उसके सहयोगी संगठन और उनके cheerleaders लोगों को हमेशा उत्तेजित और टकराव की स्थिति में रखना चाहते हैं, उन्हें उकसाना चाहते हैं, भड़काना चाहते हैं, नफ़रत और बदले की आग में जलाना चाहते हैं। हमें बिना किसी समझौते के, विभाजन के इस virus से लड़ना है, जिसे जान-बूझकर फ़ैलाया जा रहा है, हमें इसे फैलने से रोकना है।

अपने युवा वर्ग को रोज़गार के अवसर मुहैया कराने, समाज कल्याण कार्यक्रमों के लिए धनराशि उपलब्ध कराने और आम जनता के जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए, एक उच्च आर्थिक वृद्धि को कायम रखना ज़रूरी है। लेकिन कट्टरता और सामाजिक अनुदारवाद/संकीर्णता का माहौल आर्थिक वृद्धि की नींव को हिला कर रख देते हैं।

नवंबर, 2016 में हुई नोटबंदी से, अर्थ-व्यवस्था लगातार मंदी के दौर से ग्रसित है। भारी तादाद में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग पंगु हो गये। बेरोज़गारी ख़तरनाक तरीक़े से बढ़ गयी, और यह पहली बार देखने को मिल रहा है, कि एक बड़ी संख्या उन लोगों की है, जिन्होंने नौकरी ढूंढना ही बंद कर दिया।

जो भी राहत, केंद्र सरकार पिछले दो वर्षों में दे पायी है, वह कांग्रेस पार्टी की दो ऐतिहासिक कानूनों के चलते ही संभव हो पाया, महात्मा गांधी नरेगा और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम। अपने तप और बे-मिसाल आंदोलन से हमारे देश के किसान, तीन काले कानूनों को रद्द करवाने में सफ़ल रहे। मुझे इस बात का संतोष है, कि इन कानूनों के खि़लाफ़ संसद के अंदर और बाहर, कांग्रेस पार्टी अन्नदाता किसानों के साथ पूरी दृढ़ता से खड़ी रही। लेकिन दुःख की बात है, कि मोदी सरकार ने, किसानों से जो वादे किए थे, वो अभी भी पूरे नहीं हुए। इस दौरान गेहूं की सरकारी ख़रीद में आने वाली भारी गिरावट से, देश की खाद्य सुरक्षा को गंभीर संकट पैदा हो सकता है।

रोज़-मर्रा की चीज़ें, जैसे रसोई गैस, तेल, दालें, सब्जियां, खाद, Petrol, Diesel आदि की लगातार बढ़ती क़ीमतें, करोड़ों परिवारों पर, एक असहनीय बोझ बन गयी हैं।

आर्थिक और सामाजिक लक्ष्यों को दिमाग़ में रखते हुए, योजनाबद्ध तरीक़े से, public sector की कंपनियां कांग्रेस की सरकारों ने स्थापित की थीं। आज उन्हें चुनिंदा लोगों के हाथों बेचा जा रहा है। इससे बाक़ी नुक़सान के अलावा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए, निश्चित रोज़गार के अवसर भी बंद होते जा रहे हैं।

साथियों,

हमारे इस महान और सशक्त संगठन से, समय-समय पर अपने लचीलेपन को दर्शाने की उम्मीद की जाती रही है। और हर बार हमारे संगठन ने, असरदार तरीक़े से, अपनी प्रतिक्रिया दर्शाई है। एक बार फिर हमसे यह आशा की जा रही है, कि हम अपना साहस, हौसला और समर्पण की भावना का परिचय दें।

लेकिन आज जो हमारे संगठन के सामने परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं, वे अभूतपूर्व हैं। असाधारण परिस्थितियों का मुक़ाबला, असाधारण तरीक़े से ही किया जा सकता है। इस बात के प्रति मैं पूरी सचेत हूं।

हर संगठन को, न केवल जीवित रहने के लिए, बल्कि बढ़ने के लिए भी समय-समय पर, अपने अंदर परिवर्तन लाने होते हैं। हमें सुधारों की सख़्त ज़रूरत है–
रणनीति में बदलाव, ढांचागत सुधार और रोज़ाना काम करने के तरीक़े में परिवर्तन। एक तरह से यह सबसे बुनियादी मुद्दा है। लेकिन मैं यह भी ज़ोर देकर कहना चाहती हूं, कि हमारा पुनरुत्थान सिर्फ़ विशाल सामूहिक प्रयासों से ही हो पाएगा। और वो विशाल सामूहिक प्रयास, न टाले जा सकते हैं, न ही टाले जाएंगे। यह शिविर इस लंबे सफ़र में एक प्रभावशाली क़दम है।

हमारे लंबे और सुनहरे इतिहास में, आज एक ऐसा समय आया है, जब हमें अपनी निजी आकांक्षाओं को, संगठन के हितों के आधीन रखना होगा। पार्टी ने हम सभी को बहुत कुछ दिया है। अब समय है कर्ज़ उतारने का। मैं समझती हूं, इससे आवश्यक और कुछ नहीं है।

साथियों,

मैं आप सबसे आग्रह करती हूं, कि अपने विचार खुल कर रखें। मग़र, बाहर सिर्फ़ एक ही संदेश जाना चाहिए- संगठन की मज़बूती, दृढ़ निश्चय और एकता का संदेश। यह निश्चय बरक़रार रखना होगा।

हाल में मिली नाकामयाबियों से, हम बेख़बर नहीं हैं। न ही हम बेख़बर हैं, उस संघर्ष से या उस संघर्ष की कठिनाइयों से, जिसे हमें करना है और जीतना है। लोगों की हमसे जो उम्मीदें हैं, उनसे हम अंजान नहीं हैं।

व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से यह प्रण लेने के लिए हम एकत्रित हुए हैं, हम देश की राजनीति में अपनी पार्टी को फिर से उसी भूमिका में लाएंगे,जो भूमिका पार्टी ने सदैव निभाई है और जिस भूमिका की उम्मीद इन बिगड़ते हुए हालातों में देश की जनता हमसे करती है।

हम यहां पूरी विनम्रता के साथ आत्म निरीक्षण तो कर रहे हैं, लेकिन आज हम तय करें, कि जब हम यहां से निकलेंगे, तो हम एक नये आत्म-विश्वास, एक नयी ऊर्जा के साथ और एक नयी प्रतिबद्धता से प्रेरित होकर निकलेंगे।

धन्यवाद, जय-हिंद।