#RRBNTPC – 3 साल इंतज़ार, 12 दिन बाद परीक्षा, 1500-3000 किलोमीटर दूर परीक्षा केंद्र – Part 1

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मीडिया विजिल के लिए, सीरीज़ के तौर पर इस विशेष रिपोर्ट को कर रहे हैं धारण गौड़, दिवाकर पाल और मयंक

मध्य प्रदेश में उत्तर प्रदेश के बॉर्डर के जिले रीवा के रहने वाले अभिषेक, डिग्री से मैकेनिकल इंजीनियर हैं और आपने कॉलेज के टॉपर रहे हैं। 2018 में अभिषेक सरकारी नौकरी की तैयारी करने के लिए इंदौर आ गए। वे ये तैयारी, जिसे आम भाषा में छात्रों के बीच प्रेपेरेशन कहा जाता है, 2018 से कर रहे हैं। वे बेरोज़गार हैं और कोचिंग पढ़ाकर, अपनी तैयारी का खर्च निकालते हैं। 2019 में अभिषेक ने RRB NTPC यानी कि Railway Recruitment Boards Non Technical Popular Categories Exam (रेलवे भर्ती बोर्ड ग़ैर तकनीकी लोकप्रिय श्रेणी परीक्षा) का आवेदन फरवरी के महीने में दिया था। अभिषेक ने ये आवेदन, रेलवे की अहमदाबाद डिवीज़न के लिए भरा था। इसका एक चरण वे पहले ही उत्तीर्ण कर चुके थे लेकिन 2019 में फॉर्म भरने के 3 साल बाद, अब जाकर दूसरे चरण की परीक्षा यानी कि CBT2 आयोजित हो रही है। परीक्षा, उसके चरण, जिनका अभिषेक को 3 साल से इंतज़ार था – उसका कुछ महीने पहले विवादों के बाद आख़िरकार दूसरा चरण तो आया, लेकिन इंटरनेट पर इसकी तारीख और अपना परीक्षा केंद्र देखते ही अभिषेक के माथे पर बल पड़ गए। अभिषेक ने फॉर्म पश्चिमी रेलवे के अहमदाबाद डिवीज़न से भरा था और उनका सेंटर आया मुज़फ़्फ़रपुर बिहार 1700 KM दूर।

हालांकि आवेदन के समय परीक्षा केंद्र के चयन का कोई विकल्प नहीं था (जो अपने आप में एक विसंगति होनी चाहिए) लेकिन अभिषेक इंदौर में रहते हैं और इतनी दूर परीक्षा देने के लिए जाना और उस पर परीक्षा केंद्र की जानकारी सिर्फ 12-13 दिन पहले मिलना – उनके लिए ये अब माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई हो गई है। न तो इतने समय में उनको किसी रेल में आरक्षण मिलेगा और ऊपर से चिंता और हड़बड़ी। इस समय वे इंदौर में हैं, जब हमने पूछा की वे मुज़फ़्फ़रपुर जाएंगे तो कैसे, तो वे बोले, “हमें सेंटर की जानकारी महज़ 12 दिन पहले मिली हैं और रेलवे में 12 दिन पहले कोई रिजर्वेशन नहीं मिलता और हवाईजहाज़ से जाने के पैसे हमारे पास हैं नहीं। तो विकल्प एक बचता है कि इंदौर से बनारस साधारण डिब्बे में जाएंगे और बनारस से आगे बस में।” इस तरह से उनको परीक्षा के शहर पहुंचने में ही 2 दिन से अधिक लग जाएंगे और शरीर की जो हालत होगी, उसमें किसी को परीक्षा देने के लिए कहना, दरअसल उसका शोषण नहीं तो और क्या है?

इसकी परीक्षा के पिछले चरण के नतीजों को लेकर हुए प्रोटेस्ट को लेकर, वो आगे कहते हैं, “लगता तो ऐसा है कि सरकार हमसे बदला निकाल रही है, पिछली परीक्षा के रिजल्ट के लिए आंदोलन करने का। यदि ऐसे ही परीक्षा लेकिन है तो कह दीजिये कि हमारा नौकरी देने का मन नहीं है, हर चीज़ में मनमानी चल रही है इसमें भी सही।”

ये किसी एक अभ्यर्थी की कहानी नहीं!

लेकिन ये केवल इंदौर के अभिषेक की कहानी नहीं है, पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के रहने वाले दिनेश कुमार (बदला हुआ नाम) की पत्नी ऊषा (बदला हुआ नाम) RRB NTPC की CBT-2 परीक्षा देने जा रहीं है। दिनेश और उनकी पत्नी सामान्य परिवार से हैं और दिनेश राज्य सरकार में कर्मचारी हैं, जबकि उनकी पत्नी उषा प्राइवेट नौकरी करती हैं। हमारी बात दिनेश से हुई क्योकि उषा बात करने में सहज नहीं थीं, या शायद परीक्षा की अभ्यर्थी होने के कारण थोड़ा सशंकित थी। दिनेश बताते हैं, “यह सीधे तौर पर अन्याय है हमारे साथ सरकार नौकरी निकालती है, पहले तो परिणाम आने में ही इतना समय लग जाता है, इस बार सेंटर ही इतना दूर आया है की व्यक्ति जाने में दस बार सोचे। पैसा लगा कर वह परीक्षा देने जाए जिसमें पहले से ही देरी हो रही है, या पैसा बचा लिया जाए कहीं और इस्तेमाल करने के लिए।”


दिनेश की पत्नी ऊषा का एक्डज़ामिनेशन सेंटर, आंध्र प्रदेश के एक सुदूर शहर में पड़ा है। वो हमसे बात करते हुए बोले, “मेरी पत्नी का सेंटर हमारे घर से 1000 KM दूर अंदर प्रदेश में आया है इतनी दूर तो मैं अपनी पत्नी को अकेले भेज नहीं सकता मैं भी साथ जाऊँगा। जब से सेंटर की जानकारी आई है हम यही सोच रहे हैं कि जाएं कैसे, ट्रैन में रिजर्वेशन भी नहीं मिल रहा अब आप बताइए पत्नी को ले कर मैं जरनल डिब्बे में कैसे जाऊँ? हवाई जहाज़ का टिकट भी आने-जाने के लिए 28000 का पड़ रहा है। मिडल क्लास परिवार के लिए यह बड़ी रकम है। इसके अलावा परीक्षा पहली शिफ्ट में है तो जाना भी एक दिन पहले बढ़ेगा, उसके लिए छुट्टी भी लेनी पड़ेगी जिसके पैसे तन्खाह से कटेंगे। हम अभी तक नहीं समझ पाए हैं कि जाएं कैसे पर जाना तो है क्योंकि ‘मेरी पत्नी का सपना है सरकारी नौकरी’।”

तो क्या सबका सेंटर दूर पड़ा है?

हालांकि हमने जिन अभ्यर्थियों से बात की, उनमें से एक का सेंटर अपेक्षाकृत पास ही पड़ा है। उत्तर प्रदेश के जालौन के रोहित से मीडिया विजिल ने बात की। रोहित एक सामान्य किसान परिवार से आते हैं, दो भाईयों में वे बड़े हैं। खेती-किसानी के साथ-साथ 2017 से वे सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। वे कहते हैं, “कुछ सुकून कि बात यह है कि रेलवे परीक्षा करवा रही है, एक समय पर तो हमने उम्मीद छोड़ दी थी कि परीक्षा होगी।” रोहित आपने परिवार के साथ खेती में भी हाथ बटाते है, वे कहते हैं, “खेत में हमेशा लोगो की ज़रूरत होती अगर दस लोग पहुंच जाएं तो उन दसों के लिए काम है, अगर मेरे ऑनलाइन कोचिंग वाले सर का सपोर्ट न होता तो शायद मैं तैयारी न कर पाता। घरवाले इंतज़ार कर रहे हैं, कब लड़का सरकारी नौकरी पाएगा, जो कि हमारे आर्थिक हालत सुधाने के लिए बेहद ज़रूरी है, मेरा छोटा भाई भी एयर फ़ोर्स की तैयारी कर रहा है जिसकी वेकेंसी पिछले दो साल से नहीं आई है।” रोहित की बातों से लगता है कि देश के युवा जुआ खेल रहे हैं लगा तो लगा नहीं तो प्रयास तो चल ही रहा है सब प्रशासन के मूड के भरोसे पर है।

हालांकि रोहित का सेंटर अम्बाला, हरियाणा में आया है जो उनके गृह जनपद से करीब 400 किलोमीटर दूर है, ज़ाहिर रोहित को यह दूरी आपने और साथियों की तुलना में कम लगी है। वो बताते हैं कि सेंटर इतनी दूर-दूर आए हैं इस के बारे में उन्हें YOU TUBE से पता चला, जब उन्होंने आपने सेंटर देखा तो वे बताते हैं कि कुछ शान्ति मिली। वो कहते हैं, “मेरे एक साथी का सेंटर सिकंदराबाद तेलंगाना आया है जो कि करीब 1200 KM दूर है।”

ये जानकर आप हैरान हो सकते हैं लेकिन हमारी टीम ने इस स्टोरी को करते हुए, अब तक एक दर्जन से अधिक नौजवानों से बात की और सोशल मीडिया पर सौ से अधिक अभ्यर्थियों के एकाउंट खंगाले। जिनमें से सिर्फ रोहित का ही सेंटर ऐसा है, जो कि 800-100 किलोमीटर से कम है। वरना हमारी बात ऐसे अभ्यर्थियों से भी हुई है, जिनका सेंटर उनके निवास या वर्तमान पते से 3000 किलोमीटर से भी अधिक दूर है। वो भी एक ऐसी परीक्षा के लिए, जिसको लेकर पहले ही विवाद हो चुका है और 3 साल पहले जिसके लिए आवेदन किया गया था।

क्या है RRB NTPC परीक्षा?

2019 लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले, तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल ने 24 जनवरी 2019 को कहा था कि रेलवे आने वाले 2 सालों में करीब 4 लाख नौकरियां देगा, जिसके ठीक बाद फरवरी 2019 में रेल मंत्रालय के तहत रेलवे रिक्रूट्मेंट बोर्ड ने एनटीपीसी (नॉन-टेक्निकल पॉप्युलर कैटेगरी)  के लिए 35,277 और ग्रुप-डी के लिए 1,03,769 पदों पर भर्ती का विज्ञापन निकला। 864 करोड़ रुपए की कुल फीस भर कर करीब 2 करोड़ 42 लाख छात्रों ने आवेदन दिया।

RRB परीक्षा के विवाद में हुई हिंसा

परीक्षा की नोटिफ़िकेशन में कहा गया था कि पहले चरण की परीक्षा के बाद पदों से 20 गुना अधिक छात्रों को चुना जाएगा ताकि अगले चरण के लिए अधिक छात्रों को मौका मिल सके। 2019 में आई नोटिफ़िकेशन की परीक्षा 7 चरणों में हुई, 2021 के अंत तक; इनके परिणाम आते हैं 2022 जनवरी में और उसमें भी 20 गुना अधिक छात्रों को ना चुनकर 20 गुना अधिक रोल नंबरों को चुन लिए जाते है। ख़ास बात यह है, कि परीक्षाफल में कई रोल नंबर कई बार दोहराए गए हैं, जिसको लेकर आरोप लगा कि ऐसा केवल पदों से 20 गुना अधिक चयनित संख्या दिखाने के लिए किया गया था। यहाँ यह समझना ज़रूरी है, कि अलग-अलग कैटेगरी की सीटों के लिए मौजूद वैकेन्सी के लिए एक परीक्षार्थी एक से अधिक पदों के लिए उत्तीर्ण हुए हैं, लेकिन ये तो किसी को भी समझ आ सकता है, कि कोई भी परीक्षार्थी किसी एक पद की नौकरी ही पा सकता है। ऐसे में अगर एक व्यक्ति को एक से ज़्यादा पदों के लिए चुन लिया जाए, तो बाक़ी सीट ख़ाली रह ही जाएँगी, जो दूसरे उम्मीदवारों से भरी जा सकती थीं। इसको लेकर विवाद हुआ और नौजवानों का आंदोलन कुछ जगहों पर हिंसक तक हो गया, छात्रों पर लाठीचार्ज हुआ, रेल में आगज़नी तक हो गई। इसके बाद, रेलवे ने एक समिति बनाई, छात्रों से अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा गया और परीक्षा की तारीख टाल दी गई। अब इसी परीक्षा की नई तारीख आई है, जो कि 9 और 10 मई, 2022 है।

परीक्षा की तिथि घोषित, फिर दिक्कत क्या है?

  • दिक्कत ये है कि 12-15 दिन पहले ही इन नौजवानों को इस परीक्षा के सेंटर के बारे में पता चला है और वो इतनी दूर है कि इतने कम समय में उनके लिए परीक्षा देने के लिए, निर्धारित शहर में पहुंचना ही मुश्किल हो गया है।
  • रिमोट इलाकों में रहने वाले अभ्यर्थियों के लिए तो इतनी दूर स्थित सेंटर्स तक जाना बेहद मुश्किल है। मणिपुर के रहने वाले सदानंद थोंगाम मैइती ने गुवाहाटी ज़ोन से परीक्षा का फॉर्म भरा था। लेकिन उनका सेंटर बिहार के पूर्णिया में पड़ा है।
  • इस परीक्षा को देने वाले कई छात्र, इस आर्थिक स्थिति में ही नहीं हैं कि वे इसे, इतनी दूर देने जाने में होने वाले खर्च को उठा सकें। हमसे बात करते हुए, मणिपुर के सदानंद जो अपनी स्थिति बताई वह दुख का दिल पर बोझ है। सदानंद कहते हैं, “ये शायद प्रोटेस्ट करने वालों को सज़ा है। या फिर सरकार की नीयत परीक्षा करवाने की है पर नौकरी देने की नहीं।” वे अपनी स्थिति बताते हुए, साफ कहते हैं कि वे ये परीक्षा नहीं दे पाएंगे – “मैं प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता हूं और मेरे पिता रिटायर्ड हैं। मुझे अगर बिहार के पूर्णिया जाना हो तो मैं या तो फ्लाइट से जाऊंगा या फिर बस से…फ्लाइट भी कोई सीधी नहीं है। ऐसे में मैं किसी भी साधन से वहां जाने की कोशिश करूं, तो कम से कम 3 दिन और 15-20 हज़ार रुपए आने-जाने में खर्च होंगे। मैं कैसे ये पैसे खर्च करूंगा और इसलिए मैं ये परीक्षा नहीं दूंगा।”
  • महिला अभ्यर्थियों के लिए तो ये स्थिति बेहद ही नाज़ुक है। क्योंकि बहुत दूर परीक्षा स्थल होने और ट्रेन में रिज़र्वेशन न मिलने की स्थिति में ज़्यादातर परिवार, महिला अभ्यर्थियों को परीक्षा के लिए जाने ही नहीं देंगे। ट्विटर पर बंगाल की सौमिता ने अपना सेंटर और जानकारी ट्वीट करते हुए रेलवे से ये ही सवाल किया है। उनको परीक्षा केंद्र 1500 किलोमीटर दूर मिला है, वो भी परीक्षा के 15 दिन पहले।

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  • इसके अलावा एक बड़ी मुश्किल ये है कि न केवल पहले से ही कम रेल चल रही हैं, रेलवे ने बिजली/कोयले के संकट के चलते सैकड़ों ट्रेन रद्द करने का एलान कर दिया है। यानी कि परीक्षा केंद्र तक जाने की रही सही संभावनाएं भी समाप्त हो जाना।
  • एक कारण और ये है कि इसी वक़्त कोविड के एक नए वैरिएंट और नई लहर के आने की संभावना फिर से बलवती हो गई है। कई राज्यों में केस फिर से बढ़ने लगे हैं। ऐसे में इस तरह से, बिना आरक्षण और सुरक्षा इतनी दूर तक की यात्रा न केवल अभ्यर्थियों के लिए जीवन की सुरक्षा का प्रश्न है साथ ही सरकार के लिए भी ये एक चिंता का विषय होना चाहिए कि इस तरह से हो रही परीक्षा कोई सुपरस्प्रेडर न बन जाए।

वैसे सरकार की तरफ़ से ये दलील ज़रूर दी जा सकती है, कि कोविड-19 के कारण देरी हुई है, और कुछ हद तक यह सही भी है। परंतु, यदि हम लॉकडाउन के क़रीब 6-7 महीनों को घाटा भी दें, तो सरकारों (केंद्रीय अथवा विभिन्न राज्य) ने इस दौरान काफ़ी पदों के लिए नोटिफ़िकेशन निकाले हैं, और परीक्षाएँ ली हैं – ये अलग बात है, की बहाली कितने प्रतिशत की हुई है, और क्या क्या परेशानियाँ छात्रों और परीक्षार्थियों को झेलनी पड़ी है – ये लम्बी परिचर्चा का विषय है। लेकिन सच ये है कि न तो इनके साथ, सोशल मीडिया के ट्वीट एक्टिविस्ट आगे आते दिख रहे हैं, न ही ज़मीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता और न ही तमिलनाडु के एक सीपीएम सांसद (जिनके बारे में हम आगे बात करेंगे) के अलावा विपक्ष के दल…और मेनस्ट्रीम मीडिया से तो अब ख़ुद इन छात्रों ने भी उम्मीद छोड़ ही दी है।

 

हमारी ये स्टोरी अभी जारी है, हम इन अभ्यर्थियों के साथ अपनी पूरी पत्रकारीय क्षमता के साथ खड़े हैं। ये स्टोरी मीडिया विजिल के लिए धारण गौड़, दिवाकर पाल और मयंक ने की है।

 

 


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