राइट टू एजुकेशन फोरम ने बिहार विधानसभा चुनाव के लिए शिक्षा जन-घोषणापत्र जारी किया है। आरईटी फोरम ने विभिन्न पार्टियों से अपने घोषणापत्र में राज्य में शिक्षा व्यवस्था की चिंताजनक स्थिति को बेहतर करने की दिशा में जन घोषणापत्र में शामिल घोषणाओं को शामिल किए जाने की मांग की है।
राइट टू एजुकेशन फोरम ने कहा कि बिहार में शिक्षा की स्थिति अखिल भारतीय स्तर पर, शैक्षिक मानदंडों पर, बिहार सबसे निचले पायदान पर है। तमाम तरह के अध्ययन इस बात को उजागर करते हैं कि बच्चों के इस संविधानप्रदत्त मौलिक और अत्यंत महत्वपूर्ण अधिकार को लागू करने की दिशा में सरकारी प्रयास नाकाफी रहे हैं।
हम बिहार की शैक्षिक दुरावस्था की स्पष्टता के लिए नीचे कुछ खबरों और अध्ययनों के आंकड़ों की ओर तमाम राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों और आम जनता का भी ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं –
- 2011 की जनगणना के मुताबिक औसत राष्ट्रीय साक्षरता दर जहाँ 74.4% था और 93.91 प्रतिशत के साथ केरल जहाँ पहले पायदान पर था, वहीं बिहार 63.82 प्रतिशत के साथ देश में सबसे निचले पायदान पर था।
- दिनांक 18-07-2019 को बिहार सरकार, ग्रामीण विकास विभाग की तरफ से पेयजल एवं शौचालय संबंधी प्रतिवेदन के तहत निर्गत पत्रांक संख्या 433413 में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार बिहार में छह वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के पोषण और शिक्षा के लिए बिहार में कुल स्वीकृत 114718 आंगनबाड़ी केन्द्रों में से केवल 25941 आंगनबाड़ी केन्द्रों के पास ही अपना भवन है। यानि लगभग तीन चौथाई आंगनबाड़ी यत्र-तत्र संचालित हो रहे हैं।
- बिहार में शिक्षकों के कुल 6,88,157 पदों में से 2,75,255 पद खाली पड़े हैं। यह जानकारी 19 सितंबर, 2020 को शिक्षामंत्री के द्वारा लोकसभा में दी गई थी।
- यू-डाइस (एकीकृत शैक्षिक जिला सूचना प्रणाली Unified District Information System for Education) की 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 23.9 प्रतिशत विद्यालयों में एक भी महिला शिक्षिका नहीं है।
- बिहार आर्थिक सर्वेक्षण, 2020 के अनुसार आठवीं कक्षा तक 39.8 प्रतिशत और माध्यमिक स्तर तक 56.1 प्रतिशत बच्चे पढ़ाई छोड़ देते हैं।
- स्क्रौल डॉट इन नामक समाचार पोर्टल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में प्रति छात्र महज रु. 5,298/- खर्च होते हैं, जबकि हिमाचल प्रदेश में प्रति छात्र व्यय रु. 39,343/- है।
- असर (ऐनुअल स्टेटस एजुकेशन रिपोर्ट) की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में पाँचवीं कक्षा के छात्र दूसरी कक्षा की किताब नहीं पढ़ पाते हैं।
- बिहार के 90 प्रतिशत विद्यालयों में बरामदे या खुले आसमान के नीचे बैठकर बच्चे मध्याह्न भोजन करते हैं और पहली और दूसरी कक्षा के छात्र जमीन पर या दरी पर बैठकर पढ़ाई करते हैं।
- किसी भी माध्यमिक विद्यालय में एक भी सफाईकर्मी नहीं है, जिसकी वजह से अध्ययनकक्ष और शौचालय गंदे रहते हैं।
- एक सर्वेक्षण-अध्ययन रपट के अनुसार जबसे पाठ्यपुस्तक प्रदान करने के बदले उसे खरीदने हेतु राशि का हस्तांतरण किया जाने लगा है, तब से बहुत कम बच्चे पाठ्यक्रम की सभी पुस्तकें खरीद पा रहे हैं।
- बिहार में 1773 विद्यालयों को नोटिफ़िकेशन निकाल कर बंद किया जा चुका है, 1140 विद्यालय बंद किए जाने की लिस्ट तैयार है, उन्हें कभी भी नोटिफ़ाइ किया जा सकता है और हजारों विद्यालयों को दूसरे विद्यालयों में समाहित कर दिया गया है। जबकि एक शोध के मुताबिक बिहार में इस वक़्त तकरीबन 62, 429 और स्कूलों की आवश्यकता है।
उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि बिहार में एक ओर तो शैक्षिक गुणवत्ता की स्थिति निंदनीय स्तर तक खराब है, छीजन की दर अत्यंत ज्यादा है और दूसरी तरफ शिक्षा पर किया जाने वाला व्यय आश्चर्यजनक रूप से बहुत कम है तथा संसाधनों की आपूर्ति की बेतरह कमी है। यही कारण है कि शिक्षा के सभी पैमानों पर बिहार देश में सबसे नीचे है। बिहार जैसे गौरवपूर्ण इतिहास वाले राज्य के लिए यह स्थिति चिंताजनक है।
अत: हमारी मांग है कि विभिन्न राजनीतिक दल अपने घोषणापत्र में बिहार के आम अवाम के हितों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित संकल्पों को शामिल करने और सरकार बनने पर उसे लागू करने की घोषणा करें –
- महामारी से बचाव हेतु विद्यालयों में बच्चों की पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी। सभी स्कूलों को समुचित तरीके से सैनिटाइज किया जाएगा। स्वच्छ पेयजल व चालू (फंक्श्नल) शौचालय के अलावे कोविड से बचाव के प्रावधानों के अनुरूप हाथ धोने, मास्क और सैनिटाइजर की व्यवस्था की जाएगी। स्थानीय स्तर पर इन इंतज़ामों का पूरा जायजा लेने के बाद ही स्कूल खोले जाएंगे। इस व्यवस्था के लिए सरकार द्वारा अतिरिक्त व्यय की घोषणा की जाएगी।
- कोरोना-काल की विभीषिका एवं लॉकडाउन के कारण रोजी-रोजगार के साधनों से वंचित बाहर से लौटे नागरिकों के बच्चों का चिन्हांकन (मैपिंग) करते हुए आरटीई प्रावधानों के अनुरूप पड़ोस के स्कूल में दाखिला और पाठ्यपुस्तकों, पोशाक, मध्यान्ह भोजन समेत मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी।
- प्रवासी श्रमिकों/परिवारों के साथ आए बच्चों के कारण बढ़ी हुई आवश्यकता के उचित अनुपात में संसाधन सुनिश्चित कराये जाएंगे।
- सुनिश्चित किया जाएगा कि कोरोना-काल के दुष्परिणामों और इसकी वजह से लंबे समय तक स्कूलबंदी के चलते किसी बच्चे का स्कूल से जुड़ाव और उसकी पढ़ाई प्रभावित न हो और वे बालविवाह, बालश्रम या बाल-तस्करी (चाइल्ड ट्रेफिकिंग) के चंगुल में न फंस जाएँ।
- राज्य के बजट का कम-से-कम 25% शिक्षा के लिए सुनिश्चित किया जाएगा।
- शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के जमीनी क्रियान्वयन की नियमित निगरानी के लिए एक कार्यसमिति का गठन किया जाएगा और राज्य सरकार पूर्ण जवाबदेही के साथ इसका अनुपालन सुनिश्चित करेगी। सुनिश्चित किया जाएगा कि राज्य का हर स्कूल शिक्षा का अधिकार कानून के सभी प्रावधानों को लागू करे और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में सक्षम हो।
- शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण सुधार को सुनिश्चित करने के लिए राज्य से लेकर संकुल स्तर तक निगरानी समिति बनाई जाए।
- शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के दायरे को पूर्व-प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक स्तर तक बढ़ाने (3-18 वर्ष) का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कराया जायेगा ताकि 18 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा का लोकव्यापीकरण सुनिश्चित हो सके। इसके लिए अतिरिक्त व्यय का भी निर्धारण किया जाएगा।
- स्कूल विकास परियोजना में स्कूल प्रबंधन समिति (एसएमसी) की सक्रिय एवं सार्थक भागीदारी सुनिश्चित कराने हेतु समिति के क्षमतावर्धन के लिए नियमित तौर पर गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा और उसके लिए संकुल संसाधन केंद्र (सीआरसी) और ब्लॉक संसाधन केंद्र (बीआरसी) का दायित्व सुनिश्चित किया जाएगा।
- प्रो॰ मुचकुंद दूबे की अध्यक्षता में बनी और 8 जून, 2007 को बिहार सरकार को सौंपी गई बिहार कॉमन स्कूल सिस्टम शिक्षा आयोग की रिपोर्ट को संज्ञान में लेते हुए शिक्षा में समान अवसरों एवं समावेशिता की गारंटी करनेवाली प्रमुख अनुशंसाओं को लागू किया जाएगा।
- समाज में व्याप्त लैंगिक भेदभाव और असमानता की चुनौतियों के मद्देनजर बिहार के लिए एक “जेंडर-सेंसिटिव शिक्षा नीति” घोषित की जाएगी। लड़कियों की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी ताकि राज्य की हर बालिका बिना किसी व्यवधान के बारहवीं तक की स्कूली शिक्षा हासिल कर सके।
- विकलांग छात्रों की पढ़ाई हेतु गरिमापूर्ण शिक्षण व पठन-पाठन की यथोचित व्यवस्था की जाएगी। रैम्प-व्हीलचेयर के साथ बाधामुक्त अध्ययन-कक्ष, खेल-स्थल, पाठ्यपुस्तक व छात्रवृत्ति के प्रावधान सुनिश्चित किए जाएंगे और विकलांगता की चुनौतियों के मद्देनजर दक्षता प्राप्त विशेष प्रशिक्षित शिक्षकों की बहाली की जाएगी।
- सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों के लिए समर्पित अपना भवन सुनिश्चित किया जाएगा।
- शिक्षकों के सभी खाली पदों पर नियमित और गुणवत्तापूर्ण रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों की भर्ती सुनिश्चित की जाएगी। शिक्षकों के लिए पूर्ण वेतनमान की गारंटी की जाएगी।
- सभी स्कूलों में शासनिक-प्रशासनिक कार्यों के निर्वहन के लिए आवश्यकतानुरूप गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी और शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों के बोझ और दबाव से मुक्त किया जाएगा।
- प्रत्येक विद्यालय में महिला शिक्षिका की नियुक्ति होगी।
- बंद किए गए विद्यालयों को तत्काल प्रभाव से पुन: शुरू किया जाएगा और आवश्यकतानुसार सारे संसाधनों से लैस नए विद्यालयों (प्राथमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर तक) की भी स्थापना की जाएगी।
- प्रत्येक विद्यालय में सफाईकर्मी की नियुक्ति की जाएगी।
- सभी बच्चों के बैठने के लिए बेंच-डेस्क की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी।
- सभी बच्चों को, राशि हस्तांतरण के बदले, सत्रारंभ में पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी।
- वंचित समुदाय और बालिकाओं के छीजन (ड्रॉपआउट) को रोकने के लिए टोला सेवकों का दायित्व सुनिश्चित किया जाएगा और उनके प्रशिक्षण के लिए नियमित अंतराल पर कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा।
- मध्याह्न भोजन के लिए सभी विद्यालयों में भोजनालय की व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी।
अपेक्षा है कि बिहार के आगामी चुनाव में हिस्सा ले रहे सभी दल बिहार के आमजन के विकास और बेहतरी के लिए शिक्षा को एक प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बनाते हुए उपरोक्त संकल्पों को अपने घोषणापत्र में शामिल करेंगे और सरकार बनने पर उसे क्रियान्वित करेंगे।
बता दें कि राइट टू एजुकेशन फोरम शिक्षा के क्षेत्र में अखिल भारतीय स्तर पर सक्रिय एक अग्रणी मंच है, जो मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों को प्राप्त शिक्षा के मौलिक अधिकार के सशक्तीकरण के लिए अध्ययन, अवलोकन एवं वकालत करता है। साथ ही, आरटीई फोरम पूर्व-प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक स्तर तक यानी 3-18 वर्ष तक के बच्चों की पढ़ाई के लोकव्यापीकरण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए शिक्षा अधिकार कानून, 2009 के दायरे को बढ़ाने की मांग करता रहा है।
देश के सभी बच्चों को वैज्ञानिक चेतना पर आधारित गुणवत्तापूर्ण, समतामूलक, भेदभावरहित एवं समावेशी शिक्षा मुहैया की जा सके और विशेषकर दलित-आदिवासी-अल्पसंख्यक-वंचित समुदायों और विकलांग बच्चों, लड़कियों एवं हाशिये के समुदायों के लिए बारहवीं तक की स्कूली शिक्षा सुनिश्चित हो सके, इसी दृष्टि (विजन) के साथ आरटीई फोरम विगत एक दशक से राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर निरंतर प्रयास कर रहा है। देश के 20 राज्यों में राइट टू एजुकेशन फोरम की राज्य इकाई मौजूद है। उसी क्रम में बिहार इकाई भी बच्चों के इस मौलिक अधिकार के सशक्तिकरण के लिए लगातार कार्यरत है।
आरटीई फोरम, बिहार के संयोजक डॉ. अनिल कुमार राय और आरटीई फोरम, बिहार के प्रभारी मित्ररंजन द्वारा जारी