धरने पर गहलोत, ट्विटर पर राहुल : कहा, ‘सरकार गिराने की साज़िश’

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राजस्थान में जारी राजनीतिक घमासान में सरकार ही विपक्ष भी बन गई है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग को लेकर आज राज्यपाल के पास पहुंचे। राजभवन में वो अपने विधायकों से साथ धरने पर भी बैठ गए। वहीं इस बीच कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस मसले को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है। राहुल गांधी ने कहा कि राजस्थान में बीजेपी सरकार गिराने का षड्यंत्र कर रही है। उन्होंने कहा कि देश में संविधान और कानून का शासन है इसलिए राज्यपाल को विधानसभा का सत्र बुलाना चाहिए। ये वही मांग है, जिसके राजस्थान में मुख्यमंत्री और कांग्रेस के विधायक भी राज्यपाल के सामने धरने पर हैं।

राहुल गांधी ने ट्वीट कर कहा कि “देश में संविधान और क़ानून का शासन है। सरकारें जनता के बहुमत से बनती व चलती हैं। राजस्थान सरकार गिराने का भाजपाई षड्यंत्र साफ़ है। ये राजस्थान के आठ करोड़ लोगों का अपमान है। राज्यपाल महोदय को विधान सभा सत्र बुलाना चाहिए ताकि सच्चाई देश के सामने आए”।

इसके पहले, राजस्थान हाईकोर्ट ने शुक्रवार को अपने फैसले में यथास्थि‍ति बनाए रखने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद आज राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत विधानसभा का सत्र बुलाने की मांग को लेकर राज्यपाल के पास पहुंचे। उनके साथ उनके समर्थक विधायक भी राजभवन पहुंचे। राज्यपाल द्वारा विधानसभा सत्र बुलाने का एलान नहीं करने के विरोध में ये सभी लोग राजभवन में धरने पर भी बैठ गए।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि “राज्यपाल महोदय हमारे संवैधानिक मुखिया हैं, हमने जाकर उनसे रिक्वेस्ट की है। कहने में संकोच नहीं है कि बिना ऊपर के दबाव के वो इस फैसले को नहीं रोक सकते थे क्योंकि राज्यपाल महोदय Cabinet के फैसले में बाउंड होते हैं कि हमें किसी भी रूप में उसे मानना है और Assembly session बुलाना है”।

कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि कल शाम को राजस्थान में कैबिनेट की बैठक हुई, उसमें ये फैसला लिया गया कि राजस्थान का सत्र, सेशन सोमवार को बुलाना चाहते हैं, तो राज्यपाल को सरकार की ओर से एक चिट्ठी लिखी गई कि आप सत्र की नोटिफिकेशन निकालिए और सोमवार को सत्र की शुरुआत कीजिए। कोई इस पर निर्णय नहीं हुआ।

वहाँ राजभवन में हमारे विधायक बैठे हुए हैं और गवर्नर साहब से कोई ऐसा फैसला अब तक नहीं आया, बड़े अचंभे की बात है। इस कैबिनेट सिस्टम में जब भी कैबिनेट सरकार आग्रह करे कि सत्र की शुरुआत होनी चाहिए, तो उसमें गवर्नर साहब को कोई देरी नहीं करनी चाहिए। ये संविधान की बात है, संविधान की मर्यादा की बात है, इसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय भी हैं, जिसमें ये साफ कहा गया है कि गवर्नर इस बात में देरी नहीं कर सकता, जब–जब भी सत्र की मांग हो, यह गवर्नर का कर्तव्य है। लेकिन मैं समझता हूं कि पिछले कुछ सालों में लोकतंत्र की जो डेफिनेशन है, परिभाषा है, वो बदल चुकी है। आज लोकतंत्र की परिभाषा में राज्यपाल सरकारों की सलाह नहीं लेंगे, कहीं और से सलाह लेंगे और इस देश में जो चुनी गई सरकारें हैं, उसे राज्यपाल गिराने में मदद भी करेंगे।

उन्होने कहा कि जिस दल को बहुमत है, उसके कुछ लोग एक प्राइवेट चार्टेड़ प्लेन में बाहर ले जाएंगे। वहाँ उसको होटल में ठहराएंगे, वहाँ लेन-देन की बात होगी और सरकारें गिराएंगे। मतलब कि लोकतंत्र की जो नई परिभाषा है- ‘उसमें चुनी हुई सरकारें गिराना, उसमें लोगों को लोभ देना, चाहे वो पैसे का लोभ हो या कोई और लोभ हो। इसी तरीके से उस बहुमत को अल्पमत बना देना, माईन्योरिटी गवर्मेंट बना देना और सरकार गिरा कर अपने मुख्यमंत्री को शपथ दिला देना।


 


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