पीएम मोदी के ख़िलाफ़ अमेरिका में प्रदर्शन, ओबामा ने उठाया अल्पसंख्यकों की हिफ़ाज़त का सवाल

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 चेतन कुमार

अमेरिका के राजकीय दौरे पर गये भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ तमाम मानवाधिकार और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों ने प्रदर्शन किया है। भारत में लोकतंत्र को कमजोर करने और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की नीति पर चलने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ अमेरिकी प्रेस में भी काफ़ी कुछ लिखा गया है। सत्तर से ज़्यादा सांसदों की ओर से एक अपील पर दस्तखत करके राष्ट्रपति जो बाइडन से माँग की गयी है कि वे प्रधानमंत्री मोदी से मानवाधिकार हनन के मुद्दे पर बात करें। वहीं पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने सीएनएन को दिये गये एक इंटरव्यू में कहा है कि अगर वे राष्ट्रपति होते तो भारत के अल्पसंख्यक मुसलनामों की सुरक्षा को लेकर प्रधानमंत्री मोदी से बात करते।

राजकीय यात्रा का न्योता तो पहले भी भारत के प्रधानमंत्रियों को दिया गया है लेकिन यह पहली बार है कि किसी प्रधानमंत्री का मानवाधिकार और लोकतंत्र के हनन को लेकर अमेरिकी शहरों मे विरोध हुआ है। वरना इन विषयों में हमेशा भारत ही पूरी दुनिया को सीख देता रहा है। लेकिन इस बार हाल ये है कि न्यूयार्क और वाशिंगटन में पीएम मोदी को क्राइम मिनिस्टर के रूप मे संबोधित करते हुए बैनर-पोस्टर लगाए गये। वाशिंगटन में इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल से लेकर मणिपुर मूल के अमेरिकी नागरिकों ने तक ने प्रदर्शन करके भारत में लोकतंत्र के हनन पर चिंता जताई।

इस बीच अमेरिकी संसद के कई सदस्यों ने घोषणा की है कि वे ‘हिंदू वर्चस्ववादी’ नरेंद्र मोदी के संसद के संयुकत सत्र के संबोधन का बहिष्कार उन्होंने कहा है कि नरेंद्र मोदी ने भारत में लोकतंत्र को कमजोर किया है और मानवाधिकारों का सतत उल्लंघन किया है।

ग़ौरतलब है कि इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC), हिंदूज़ फ़ॉर ह्यूमन राइट्स और दलित सॉलिडेरिटी इंक समेत सत्रह संगठनों के नेटवर्क ने भारत में मानवधिकार हनन, ख़ासतौर पर मुस्लिमों और दलितों पर बढ़ते अत्याचारों के लिए मोदी के नेतृत्व में चलाई जा रही सरकार को सीधे ज़िम्मेदार ठहराते हुए यात्रा के विरोध का आह्वान किया था। इन संगठनों की ओर से अमेरिकी सरकार के नाम एक खुला पत्र जारी किया गया था जिसमें भारत में जारी मानवाधिकार हनन, खासतौर पर अल्पसंख्यकों के नागरिक अधिकारों को छीने जाने को संज्ञान में लेने की अपील की गयी थी। वाशिंगटन में इन संगठनों की ओर से किये गये प्रदर्शन में भारत से गये पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी शामिल हुए।

इस बीच नरेंद्र मोदी की यात्रा को लेकर कई जगह बैनर भी दिखाई पड़े। ऐसे ही एक बैनर में जेएनयू के छात्र रहे मानवाधिकार कार्यकर्ता उमर खालिद समेत तमाम राजनीतिक कैदियों के फोटो थे। होर्डिंग में राष्ट्रपति जो बाइडेन से कहा गया है कि वो भारत के प्रधानमंत्री से क्यों नहीं पूछते कि छात्र नेता और एक्टिविस्ट उमर खालिद पर बिना मुकदमा चलाए 1000 दिनों से भी ज्यादा क्यों जेल में रखा गया है।

वहीं अमेरिका के तमाम पत्रकार संगठनों और मानवाधिकार संस्थाओं ने भारत में प्रेस की आजादी खतरे में पड़ने का मुद्दा उठाया है। प्रमुख अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट ने वहां के 8 मीडिया संस्थाओं की अपील प्रकाशित की है। इस संबंध में जारी एक पोस्टर में उन पत्रकारों को दिखाया गया है जो भारत की विभिन्न जेलों में कैद हैं या नजरबंद हैं।

इस बीच, न्यूयॉर्क शहर में स्क्रीन वाले ट्रक देखे गए जिनमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन को भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के बारे में मोदी से कड़े सवाल पूछने के लिए कहा गया।

पिछले साल अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी सरकार की रिपोर्ट में बताया गया था कि कैसे मोदी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के पदाधिकारियों के नफरत भरे भाषण ने मुस्लिम विरोधी और ईसाई विरोधी हिंसा में योगदान दिया है और पार्टी द्वारा धार्मिक रूपांतरण के अपराधीकरण, मुस्लिम स्वामित्व वाले विध्वंस को सूचीबद्ध किया है। संपत्तियाँ, और मुस्लिम कार्यकर्ताओं की मनमानी गिरफ़्तारियाँ और जमानत से इनकार किया गया।

 

न्यूयार्क टाइम्स में भारतीय मूल की हार्वर्ड युनिवर्सिटी की प्रोफेसर की माया जैसनॉफ़ का एक लेख छपा है जिसमें कहा गया है कि कि “अमेरिकियों को श्री मोदी के भारत के बारे में जानने की जरूरत है। हिंदू राष्ट्रवाद के तीखे सिद्धांत से लैस, श्री मोदी ने कम से कम 40 वर्षों में लोकतंत्र, नागरिक समाज और अल्पसंख्यक अधिकारों पर देश के सबसे व्यापक हमले की अगुवआई की है। उन्होंने कुछ लोगों को समृद्धि और राष्ट्रीय गौरव प्रदान किया है, और कई अन्य लोगों को सत्तावाद और दमन दिया है, जिससे हम सभी को परेशान होना चाहिए।

प्रधानमंत्री मोगी का विरोध करने वाले नेटवर्क में भारतीय अमेरिकी मुस्लिम काउंसिल, हिंदू फॉर ह्यूमन राइट्स, दलित सॉलिडैरिटी इंक, वर्ल्ड विदाउट जेनोसाइड, इंटरनेशनल डिफेंडर्स काउंसिल, इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर पीस एंड जस्टिस, जेनोसाइड वॉच, एशियन चिल्ड्रन एजुकेशन फेलोशिप, काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस (CAIR), मिशन विद पैरा लास नैकियोनेस, चर्च इन द रिपब्लिक ऑफ उरुग्वे, ग्लोबल क्रिश्चियन रिलीफ, अमेरिकन सिख काउंसिल, ह्यूमन राइट्स एंड ग्रासरूट्स डेवलपमेंट सोसाइटी, इंटरनेशनल कमीशन फॉर दलित राइट्स शामिल हैं।

 

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।


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