प्रचारकों का कमाल देखिए, ख़बर की जगह प्रधानमंत्री का प्रचार पढ़िए

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज मणिपुर की खबर लगभग सभी अखबारों में पहले पन्ने पर है। सिर्फ शीर्षक की बात करूं तो वहां से ये सूचनाएं हैं – निगरानी रखने वाली महिलाओं ने मणिपुर में छह मुख्य सड़कों को रोका। इंफाल में पत्थरबाजी और आगजनी से राज्य का उबलना जारी। “मणिपुर : भरोसा, राशन की आपूर्ति कम है, असम राइफल के स्टॉक के साथ ट्रक हाईवे पर फंसे हुए हैं”। सुरक्षाबलों की उपद्रवियों से झड़प, घरों में आग लगाई। इंफाल में पथराव कर रही भीड़ पर आंसू गैस के गोले दागे गए। इतनी खबरों में उस खबर की कोई चर्चा नहीं है जिसमें भाजपा से चुनावी सौदेबाजी तथा कांग्रेस से भाजपा में गए पूर्व भ्रष्टाचारी (या भाजपा के आरोपी) तथा मौजूदा मुख्यमंत्री पर यह चुनावी व्यवस्था करने-करवाने का आरोप है। ऐसे में व्हाट्सऐप्प यूनिवर्सिटी या प्रचारक अगर उसे खबर को गलत बता दें तो देशद्रोह से संबंधित वह मुद्दा खत्म हो जाएगा और विरोधियों के खिलाफ कोई दूसरा गढ़ लिया जाएगा। नामुमकिन मुमिकन होने के बाद से यह सब आम है। इसके अलावा आज की खबरें हैं –

 

  • पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव को लेकर अशांति में तीन मरे, हाईकोर्ट ने 48 घंटे के अंदर सभी जिलों के लिए केंद्रीय बलों का आदेश दिया
  • पाठ्यपुस्तकों में ‘संशोधन’ के मुद्दे पर अब, 33 और शिक्षाविदों ने खुद को एनसीईआरटी से अलग किया
  • गुजरात दंगे के मामले में अब तक जीवित सभी 35 अभियुक्त बरी
  • मायावती के भाई और पत्नी को 261 फ्लैट वाले नोएडा प्रोजेक्ट में घर खरीदने वालों ने कहा : कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। (इंडियन एक्सप्रेस की एक्सक्लूसिव खबर का फॉलोअप)
  • डाटा लीक : जांच 11 राज्यों से लीक की संभावना को देख रही है।

 

दिल्ली के अखबारों में आज इन पांच खबरों के अलावा राजधानी के बीचो-बीच एक महत्वपूर्ण शिक्षण और कमर्शियल केंद्र में आग लगने की खबर भी है। डीडीए की पांच मंजिल वाली इस बिल्डिंग में कोचिंग सेंटर चलता था। इसमें इमरजेंसी एक्जिट न होने, फायर टेंडर की सीढ़ियों की व्यवस्था न हो पाने और बचाव का कोई दूसरा उपाय नहीं होने के कारण बच्चों को रस्सी के सहारे उतरकर जान बचानी पड़ी। इसमें कोई गिरा, कोई कूदा और 70 लड़के-लड़कियां घायल हुए। यह दिन के 12:20 की वारदात है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि बच्चों ने एसी केबल का सहारा लिया और छत पर रस्सी मिली जो काम आई। दिल्ली के भवनों में आग लगना आम बात है, कोचिंग सेंटर ऊपर की मंजिल पर होना और इमरजेंसी एक्जिट न होना – सुरक्षा नियमों के खिलाफ है लेकिन इसपर रोक नहीं लग रही है। वैसे तो दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार और केंद्र की सरकार तथा भाजपा के बीच भिड़ंत चलती रहती है लेकिन जनहित के ऐसे मुद्दों पर कार्रवाई और कोशिश ताकि ऐसा फिर न हो, सुनने में नहीं आता है। भले तथाकथित मनीलांडरिंग और विदेश में रिश्वत लेने के मामले में मंत्री जेल में हों और भाजपाई नेता सरे आम पॉक्सो के आरोपों से बचा लिया जाए। अब तो सरकार कानून बदलने की भी सोच रही है।

दूसरी ओर, आप जानते हैं कि मणिपुर की खबरें दिल्ली में नहीं छपती हैं। गुजरात की खबर, जिसमें तैयारियां और राहत उपाय ही प्रमुख है को खूब प्रमुखता दी जा रही है। दो दिन पहले इंडियन एक्सप्रेस की खबर थी, चक्रवात से बचाव के लिए 37,000 लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है जबकि द हिन्दू की खबर के अनुसार पांच दिन पहले तक मणिपुर के 50648 लोग राहत शिविरों में रह रहे थे। जो लापता और फरार हैं तथा जो विस्थापित हुए वह अलग है। इन सूचनाओं से आपको दोनों घटनाओं में मानव विपदा का अंदाजा लग सकता है। फिर भी एक की तैयारी देखिये और दूसरे की उपेक्षा। और खबर यह भी है कि सरकार बनाने में मदद लेने के बदले मणिपुर को हिंसा की आग में जलने के लिए छोड़ दिया गया है और दावा आपको याद ही होगा कि कर्नाटक में भाजपा हार गई या कांग्रेस जीत गई तो दंगे होंगे। इससे आपको हेडलाइन मैनजमेंट का प्रभाव समझने में आसानी होगी।

वैसे तो बिपरजॉय की खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में लीड है और टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है। इसमें बताया गया है कि एक लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया गया है। लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की खबर पढ़ने लायक है। अखबार ने आज ब्रजभूषण सिंह की खबर को लीड बनाया है और लाल से फ्लैग शीर्षक है, कुश्ती संघ के प्रमुख के खिलाफ चार्जशीट दाखिल, मुख्य शीर्षक है – बृजभूषण के खिलाफ यौन उत्पीड़न के लिए मुकदमा, पॉक्सो मामले में बंदी मिली। स्टॉकिंग और असॉल्ट की धाराएं भी लगाई गई हैं, अदालत मामले पर 22 को सुनवाई करेगी। साक्षी ने अवयस्क द्वारा आरोप वापस लिये जाने पर चिन्ता जताई : (कहा) धमकियों के बारे में सुना है। कहने की जरूरत नहीं है कि ब्रज भूषण सिंह के मामले में इंडियन एक्सप्रेस की भूमिका या खबरें प्रशंसनीय हैं, पत्रकारिता के लिहाज से मानक हो सकती हैं। पर प्रधानमंत्री की तारीफ के लिए अखबार का इस्तेमाल होना उतना ही आश्चर्यजनक है। अभी मुद्दा इसका कारण नहीं है इसलिए मैं खबरों की ही बात करूंगा।

बिपरजॉय से निपटने या तैयारियों की खबर सरकारी प्रचार के अलावा कुछ नहीं है। मुझे लगता है कि दिल्ली के आम पाठकों की दिलचस्पी का विषय भी नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस अपनी एक्सक्लूसिव खबरें पहले पन्ने की रूटीन खबरों की कीमत पर करता है और इसीलिए आज इसमें कोचिंग सेंटर में आग लगने की खबर पहले पन्ने पर नहीं है और मायावती के भाई-भौजाई की खबर पहले पन्ने पर ही है। ऐसे में प्रधानमंत्री की तारीफ, वह भी साफ-साफ सरकारी विज्ञप्ति के आधार पर, अखरती है। अखबार ने लिखा है और मैं समझता हूं कि इसीलिए इसे बाकी अखबारों में भी महत्व मिला है वरना दिल्ली के हिन्दी के पाठकों का गुजरात में तूफान से निपटने की तैयारियों से क्या लेना-देना?
जो भी हो, इंडियन एक्सप्रेस की जखाऊ (कच्छ) / नई दिल्ली डेटलाइन से गोपाल कटेशिया और अमिताभ सिन्हा की बाइलाइन वाली खबर के शुरू को दो पैराग्राफ में चक्रवात के बारे में बताया गया है जबकि तीसरे पैरे की शुरुआत होती है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्थिति का आकलन करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल को कॉल किया। “एक सरकारी बयान में कहा गया है, ‘उन्होंने गिर वन में सिंहों और अन्य जंगली जानवरों के बारे में भी चिन्ता जताई’।” खबर आगे बताती है, “गांधीनगर में स्टेट इमरजेंसी ऑपरेशंस सेंटर में एक बैठक में पटेल ने पटेल ने अधिकारियों को निदेश दिया कि प्रभावितों को नकद सहायता के साथ घरेलू सामान, झोपड़ी बनाने के लिए सहायता और पशुओं के लिए चारे की सहायता दी जाए।” सरकारी विज्ञप्ति को इस तरह चार कॉलम की फोटो के साथ प्रमुखता देने का ‘जर्नलिज्म ऑफ करेज’ मुझे समझ में नहीं आता है खास कर तब जब दिल्ली की भवनों में आग लगती रहती है और कल की घटना पहले पन्ने पर नहीं है। मणिपुर मामले में प्रधानमंत्री ने मुंह भी नहीं खोला है, सौदेबाजी की कल की खबर के बाद भी।

अव्वल तो मैं सरकारी खबरों को महत्व देना पत्रकारिता नहीं मानता और न इस मामले में संतुलित होने पर यकीन करता हूं। इसलिए सरकारी तैयारियां मेरे लिए खबर ही नहीं है, वह सरकार का काम है। और सरकार का काम इस तथ्य को छोड़कर खबर नहीं हो सकता है कि बहु प्रचारित और बेहद अहंकारी मोदी सरकार के नौ साल के कार्यकाल का नतीजा यह है कि निर्यात फिर कम हो गया और व्यापार घाटा पांच महीने में सबसे ज्यादा है। द हिन्दू ने यह खबर पांच कॉलम में विज्ञापन के साथ ऐसे छापी है जैसे यह भी विज्ञापन का भाग हो। गुजरात के चक्रवात की खबर यहां भी है लेकिन उसमें प्रधानमंत्री का जिक्र नहीं है। चक्रवात से संबंधित सूचनाएं हैं, व्यक्ति विशेष का प्रचार नहीं। कम से कम पहले पन्ने पर जितनी खबर छपी है उतने में तो नहीं ही है।

इन और ऐसी खबरों के बीच द टेलीग्राफ में रोज की तरह आज भी एक विशेषता है और वह है दो खबरों की उसकी प्रस्तुति और उसका शीर्षक। वैसे तो दोनों खबरें और भी अखबारों में पहले पन्ने पर है लेकिन टेलीग्राफ का अंदाज निराला है। मुख्य शीर्षक है, “एक राष्ट्र, दो आईडिया”। आप कह सकते हैं कि इसके जरिये बिना कहे यह कहा गया है कि दूसरा वाला आयडिया (एक नेता, एक पार्टी, एक चुनाव, एक राजा, एक ही सेठ, एक टैक्स लेकिन पेट्रोल उससे बाहर आदि आदि) जिसका भी हो, भारत में नहीं चलने वाला है। मुख्य शीर्षक के साथ की दो खबरों और उसके शीर्षक से भी यही साबित होता है। पहला शीर्षक है, (ब्रजभूषण के खिलाफ) चार्ज शीट पॉक्सो मामला खत्म करने के संकेत के साथ। दूसरा शीर्षक है, कर्नाटक धर्मांतरण कानून, पाठ्यपुस्तकें ठीक होने के रास्ते पर।

बैंगलोर डेटालाइन से केएम राकेश की बाईलाइन वाली इस खबर में कहा गया है, कांग्रेस नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने पिछली भाजपा सरकार द्वारा लागू किए गए धर्मांतरण विरोधी कानून को गुरुवार को निरस्त करने और स्कूल के पाठ्य पुस्तकों में भगवा पार्टी द्वारा पेश आरएसएस विचारक केबी हेडगेवार तथा वीडी सावरकर से संबंधित सामग्री को हटा देने का निर्णय़ किया। मंत्रिमंडल की साप्ताहिक बैठक में, यह निर्णय लिया गया कि सरकार धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार अधिनियम, 2022 को वापस लेगी जिसमें जबरदस्ती या प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण कराने पर 10 साल तक की जेल और धर्मांतरण के लिए 1 लाख रुपये तक का जुर्माना है।

मुझे तो इस कानून का मतलब ही समझ नहीं आता है। कोई किस धर्म में पैदा हो यह उसका अधिकार ही नहीं है और अगर धर्म की कोई व्यवस्था है (कायदे से होनी ही नहीं चाहिए) तो समझदारी हासिल करने के बाद दूसरा धर्म चुनने का अधिकार क्यों नहीं होना चाहिए। और अगर कोई किसी धर्म को अच्छा मानता है तो उसे उसका प्रचार करने और दूसरों को उसका लाभ उठाने के लिए आकर्षित करने के क्यों रोकना और रोक भी दिया जाये तो उसका क्या भला होता है जो धर्म नहीं बदल पाएगा। अगर धर्म बदलने से किसी को मुफ्त शिक्षा मिल जाती है या मुफ्त शिक्षा धर्म बदलने की शर्त पर भी दी जाती है तो उस सरकार को ऐसा कानून बनाने का क्या हक जो मुफ्त शिक्षा (या इलाज अथवा पैदा होने) की भी उचित व्यवस्था नहीं कर सकती है।

जहां तक धर्म परिवर्तन से धर्म विशेष के खत्म होने का सवाल है, सरकार को चाहिए कि हर धर्म के लोगों को ज्यादा से ज्यादा या अपनी क्षमता अनुसार या विवेक के अनुसार बच्चे पैदा करने की आजादी दे। आप कह सकते हैं कि यह आजादी है तो तथ्य है कि कई धर्मों की आबादी कम हो रही है या तेजी से घट रही है उन्हें अशिक्षित रखकर धर्म बदलने और बच्चे कम पैदा करने की समझ होने से रोका जा सकता है और सरकार ठीक समझती है तो यह भी करे लेकिन कोई पढ़ा लिखा वयस्क जो अपने सारे निर्णय खुद कर सकता है, अपनी सरकार चुन सकता है वह अपना धर्म क्यों नहीं बदल सकता है? साफ है कि मामला बहुमत से जुड़ा हुआ है पर मेरा विषय उसपर प्रवचन नहीं है। इसलिए खबरों पर आता हूं।

बैंगलोर के आर्कबिशप पीटर मचाडो ने कानून को निरस्त करने के फैसले का स्वागत किया और कहा है कि इस तरह के कानूनों ने ईसाइयों पर हमले बढ़ा दिए हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अन्य राज्य भी इसका अनुसरण करेंगे। आर्कबिशप ने कहा, “यह कदम राज्य में धार्मिक सद्भाव, सहिष्णुता और सभी धर्मों के प्रति सम्मान के माहौल को बढ़ावा देने में योगदान देगा।” कर्नाटक की खबर आज टाइम्स ऑफ इंडिया में सेकेंड लीड है और शीर्षक में सिर्फ धर्मांतरण विरोधी कानून को खत्म करने की बात है। लेकिन इंट्रो में भाजपा का एतराज है, “भाजपा का पलटवार कांग्रेस को नया मुस्लिम लीग कहा”। भाजपा का यह एतराज दिलचस्प है खासकर तब जब वह अपने खिलाफ कांग्रेस के आरोपों पर अदालत जाती रही है।

मेरी चिन्ता यह है कि इस पलटवार से भाजपा ने बता दिया है या स्वीकार कर लिया है कि वह हिन्दू हित की ही बात करेगी उसमें भी वही जो उसके विधायक सांसद या काम के होंगे। दूसरी ओर हिन्दुओं की ही पार्टी कांग्रेस पर अगर नया मुस्लिम लीग होने का आरोप है तो वह उसके धर्म निरपेक्ष या मुस्लिम समर्थक होने का सबूत है। हिन्दू विरोधी होने का नहीं। भजपा खुद हिन्दू विरोधी होने के तमाम काम और सबूत होने के बावजूद हिन्दू हितों की रक्षक होने का दावा कर सकती है लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं कर सकती है क्योंकि भावुक या कम बुद्धिमान या धार्मिक हिन्दुओं के बीच इसे व्हाट्सऐप्प यूनिवर्सिटी से कैसे प्रचारित करके मामला खराब कर दिया जाए कोई नहीं जानता। दूसरी ओर, मीडिया अपना काम नहीं करेगा और इस तरह भाजपा गलत करके भी सही बनी हुई है। पर यह भी मेरा मुद्दा नहीं है। मैं यह कहना चाह रहा हूं कि अखबार आपको यह सब नहीं बताते हैं। जानने के लिए मीडिया विजिल देखते रहिये।ले

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 


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