मोदी सरकार में अब खुलकर आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू हो गया है। सड़क परिवहन मंत्री कह रहे हैं कि जहां सरकार हाथ लगाती है वहां सत्यानाश होता है। इस बात को NHAI (National Highways Authority of India) विवाद से जोड़कर देखा जा सकता है।
विगत 17 अगस्त को पीएमओ से नृपेंद्र मिश्रा ने सड़क बनाने वाली सरकारी संस्था NHAI को एक पत्र लिखकर कहा था कि वह हाइवे निर्माण अब बंद कर दे और हाइवे निर्माण के लिए पुरानी व्यवस्था अपनाई जाए जिसमें निजी डेवलपर्स को इसका ज़िम्मा सौंपा जाए और NHAI को एक लाभदायक प्रबंधन कंपनी में बदल दिया जाए। पीएमओ ने NHAI को एक सप्ताह के भीतर इस पर जवाब देने के लिए कहा था। शायद इसी बात से गडकरी नाराज है और सम्भवतः पीएमओ से प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा का इस्तीफ़ा भी इसी झगड़े का परिणाम है।
गौरतलब है कि नृपेंद्र मिश्रा ने अपने पत्र में NHAI को लिखा था: “राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण सड़कों के अनियोजित और अत्यधिक विस्तार के कारण पूरी तरह से ठप्प पड़ गया है। NHAI ज़मीन की लागत का कई गुना भुगतान के लिए बाध्य हुआ; इसकी निर्माण लागत काफ़ी बढ़ गई। सड़क का बुनियादी ढाँचा आर्थिक रूप से अलाभकारी हो गया है।”
Icra said the NHAI may revert to build-operate-transfer mode of projects due to increasing financial burden.https://t.co/VlOlelIOpW
— NDTV Profit (@NDTVProfitIndia) August 27, 2019
NHAI पर कर्ज का बोझ खासा बढ़ गया है और चालू वित्त वर्ष के अंत तक कुल कर्ज बढ़कर 2.5 लाख करोड़ रुपये हो जाने की आशंका है। NHAI के पूर्व चेयरमैन बृजेश्वर सिंह ने टेलीविजन पर एक साक्षात्कार में कहा कि वास्तविक अनुमानित देनदारी पांच गुना अधिक होकर 3 लाख करोड़ रुपये तक भी हो सकती है।
इस स्थिति से कैग (CAG) भी चिंतित है। CAG ने इसके लिए वित्त मंत्रालय को आगाह करते हुए कहा है कि NHAI द्वारा लिया गया ऋण सरकार के लिए भी ऋण है और उसी के मुताबिक इसका हिसाब होना चाहिए।
PMO अब चाहता है कि हाइवे निर्माण के लिए पुरानी व्यवस्था अपनाई जाए जहां NHAI डेवलपर्स के लिए परियोजनाओं की नीलामी करे और डेवलपर्स सड़कों का निर्माण करें, टोल टैक्स वसूलें और फिर एक तय समय के बाद सड़क को NHAI को वापस सौंप दें।
Modi’s office proposed that NHAI be transformed into a road-asset management company, according to the letter obtained by Bloomberg https://t.co/ZJgfxAu3WO
— Economic Times (@EconomicTimes) August 30, 2019
आखिर NHAI इस स्थिति तक कैसे पहुंच गया? क्या कोई बड़ा घोटाला पूरे देश भर में चल रहे हाइवे निर्माण में चल रहा है? पांच साल पहले तक NHAI हर साल 3-4 हजार करोड़ रुपये जुटाता था और उसी पैसे से रोड बनाई जाती थी लेकिन इन पांच सालों में यह रकम 17-18 गुना तक बढ़ गई। वित्त वर्ष 2014-15 में NHAI ने बाजार से करीब 3,340 करोड़ रुपये ही जुटाए थे, लेकिन 2017-18 में उसने करीब 50 हजार करोड़ रुपये तथा 2018-19 में 62 हजार करोड़ रुपये का कर्ज बाजार से जुटाए।
दरअसल, हाइवे विस्तार में NHAI को भूमि अधिग्रहण करना पड़ता है। देश के राजमार्ग खेती कर रहे किसान की जमीन से गुजरते हैं। बताया जा रहा है कि NHAI हाइवे निर्माण के लिए बाजार दर से अधिक भाव में जमीन का अधिग्रहण कर रही है जिससे हाइवे निर्माण की लागत पिछले तीन साल में करीब 4 गुना तक बढ़ गई है। भूमि अधिग्रहण में NHAI आवंटित निधि से ज्यादा खर्च कर रही है।
This interview with former NHAI Chmn was revealing. NHAI's debt up from 40000 cr in 2014 to Rs 1.78 lk cr by 2019. The contingent liabilities may be double that. Land acquisition costs have gone thru the roof due to the new law…Looks like road sector headed for a slowdown https://t.co/ujNWfvO7CZ
— Latha Venkatesh (@latha_venkatesh) August 27, 2019
NHAI ने 2017 के आखिर में लार्सन एंड टूब्रो, एचसीसी और एस्सेल इंफ्रा जैसी बड़ी कंपनियों को अटकी हुई परियोजनाओं के लिए बोली लगाने से प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन इस मंत्रालय के मंत्री गडकरी ने इस काली सूची संबंधी आदेश पर अस्थायी रोक लगाते हुए 2018 की पहली छमाही में बैंकरों, कंपनियों और अन्य पक्षों के साथ मैराथन बैठकें कर इस सूची को लगभग निरस्त करवा दिया ओर बड़ी सड़क निर्माण परियोजनाओं को पुनः शुरू करवा दिया गया जिसके ठेकों में लाखों करोड़ की रकम इन्वॉल्व थी।
NHAI के पास आय के दो ही स्रोत हैं। पहला रोड सेस से मिलने वाली हिस्सेदारी और दूसरा राजमार्गों पर एकत्र किया जाने वाला टोल टैक्स, हालांकि पिछले पांच वर्षों में दोनों में खासी बढ़ोतरी हुई है लेकिन कर्ज में बढ़ोतरी के मुकाबले ये काफी कम है। यह आमदनी अठन्नी ओर खर्चा रुपय्या वाली कहावत पर चलने की बात है।
भूमि अधिग्रहण पर NHAI की लागत हर साल बढ़ती ही जा रही है। यह वित्त वर्ष 2016-17 में 17,824 करोड़ रुपये थी, जो 2017-18 में दोगुनी होकर 32,143 हो गई। माना जा रहा है कि भूमि अधिग्रहण के लिए NHAI मार्केट से सवा लाख करोड़ रुपए लोन उठा चुकी है, जिसका सालाना ब्याज ही 9 हजार करोड़ रुपए है। ऐसे में NHAI ब्याज के बोझ से दबती जा रही है।
2018 में NHAI ने भारतीय स्टेट बैंक SBI से 25,000 करोड़ रुपए का दीर्घकालीन कर्ज लिया है यह एसबीआई द्वारा किसी भी कंपनी को दिया जाने वाला बिना गारंटी वाला (असुरक्षित) सबसे बड़ा कर्ज है।
इस लोन से भी अब NHAI का कामकाज चलने वाला नहीं है इसलिए अब उस उसने भविष्य की राजमार्ग परियोजनाओं जैसे भारतमाला परियोजना के लिए जीवन बीमा निगम (LIC) से 1 लाख 25 हजार करोड़ रुपये की ऋण सुविधा लेने का फैसला किया है जबकि पहले ही पिछले पांच साल में NHAI पर क़र्ज़ सात गुना बढ़ चुका है।
यानी सब ले देकर भारतीय जीवन बीमा निगम पर ही छप्पर धरने की तैयारी कर रहे हैं अगर यही हालात रहे तो 2024 तक एलआइसी को डूबने से कोई ताकत बचा नहीं पायेगी।