आखिरकार पाँच राफेल विमानों की पहली खेप भारत पहुँची। निश्चित ही सेना इससे भारतीय वायु सेना की क्षमता में इज़ाफ़ा होगा और चीन की ओर झुका शक्ति संतुलन थोड़ बदलेगा, लेकिन भारतीय चैनलों का उत्साह हैरान करने वाला है। ऐसा नहीं है कि भारत ने ये विमान ख़ुद बनाये हैं या पहली बार लड़ाकू विमान ख़रीदे गये हैं, लेकिन चैनलों में प्रकारांतर में इसे मोदीशक्ति की तरह पेश किया जा रहा है, जबकि इसका सौदा 2012 में मनमोहन सरकार ने किया था। उस समय 126 विमानों का सौदा किया था, जिसे मोदी सरकार ने घटाकर 36 कर दिया। उस समय 18 को छोड़कर सभी विमान तकनीकी हस्तांतरण के तहत भारत में हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड में बनने थे।
लेकिन चैनलों से इन सवालों पर कोई बात न होकर महज उन्माद छाया हुआ है। ऐसी-ऐसी हेडलाइन चल रही हैं जिसे सुनकर लगता है कि राफेल के आने के साथ ही चीन और पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी जाएगी। हैरानी तो यह कि इन विमानों की तैनाती वगैरह की जैसी सूचनाएं दी जा रही हैं,कोई और करे तो देशद्रोही करार दिया जाएगा। ख़ुद सेना से जुड़े लोग इस पर सवाल उठा रहे हैं।
कर्नल अशोक का ये ट्वीट बताता है कि इस तरह का उत्साह वायुसेना पर कितना भारी पड़ सकता है। उन्हें अपनी सामरिक नीति में तमाम बदलाव करने पड़ेंगे।
Military Power is not Police Service… Handle with care or else you will burn your own hands.. Revealing military secrets in public domain is nothing but treason…you have now forced IAF to change deployment of strategic military assets…
— Col Ashok; Veteran (@ashokkmrsingh) July 29, 2020
कर्नल अशोक ने इस सिलसिले में चली बहस का जवाब देते हुए कहा है कि कैसे कोई देश अपनी ताकत को रहस्य बनाकर रखता है, न कि सार्वजनिक तौर पर उसका ढोल पीटता है।
उधर, राफेल की पहली खेप के आगमन के साथ ही इस सौदे में दलाली से जुड़े तमाम सवाल फिर से खड़े हो गये हैं। एचएएल की जगह निजी कंपनी को सौदे में शामिल करना और इसकी क़ीमत को लेकर मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने एक के बाद एक कई ट्वीट किये।
कुल मिलाकर राफेल का जिन्न जल्द बोतल में वापस में जाने वाला नहीं है। तमाम सरकारी दस्तावेजों में इस सौदे को लेकर अनियमितता दर्ज हो चुकी हैं और विपक्ष का तेवर बताता है कि वह इसे लेकर मोदी सरकार को बख्शने के मूड में नहीं है।