25 जून को अहमदाबाद में आरटीई फोरम गुजरात, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, माइनॉरिटी कोआर्डिनेशन कमेटी गुजरात के संयुक्त तत्वाधान में नयी शिक्षा नीति पर चर्चा आयोजित की गयी. जहां इस चर्चा के अंत में प्रतिभागियों द्वारा नयी शिक्षा नीति 2019 की प्रतियां जलाई गईं .
इस चर्चा में नई नीति की मुख्य बातों को मुजाहिद नफ़ीस ने विस्तार से रखते हुए कहा कि शिक्षा बच्चों का मौलिक कानूनी अधिकार है. इसके अलावा, प्राथमिक स्तर पर स्कूलों में छात्रों की मातृभाषा में शिक्षा पर जोर दिये जाने का मसला भी अहम है. आरटीई फोरम लंबे समय से आरटीई प्रावधानों के मुताबिक शिक्षकों के नियमितीकरण व गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण के साथ-साथ स्कूलों में पूर्णकालिक शिक्षकों की पर्याप्त संख्या में नियुक्ति एवं आधी-अधूरी तनख़्वाह पर रखे जाने वाले गैर प्रशिक्षित अतिथि और पैरा शिक्षकों की नियुक्ति पर सवाल उठाता रहा है.
जिन बातों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 पहले ही कह चूका है व सरकार उसे लागू करने में विफल रही है को मसौदा दस्तावेज में फिर से शामिल किया गया है. मसौदे के अन्य आवश्यक निष्कर्षों में शिक्षा के लिए समग्र वित्तीय आवंटन को दोगुना करने, शिक्षक प्रबंधन और सहायता के विकेन्द्रीकृत तंत्र को मजबूत करने, स्कूल पोषण कार्यक्रम के विस्तार के तहत मध्याह्न भोजन यानी मिड डे मील के अलावे स्कूल में नाश्ते के प्रावधान को शामिल करने जैसी सकारात्मक बातें शामिल हैं. नई शिक्षा नीति में उल्लिखित एक और बड़ा कदम मौजूदा 10+2 वाले शिक्षा ढांचे को बदलकर 5 + 3 + 3 + 4 करने का है. देखना यह होगा कि शैक्षिक ढांचे को बदलने की यह कवायद समाज के कमजोर वर्गों खासकर दलित, वंचित, आदिवासी एवं लड़कियों की सम्पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करते हुए शिक्षा के लोकव्यापीकरण एवं समावेशीकरण के लिए कितना कारगर होगा.
अपनी त्वरित टिप्पणी में मसौदे की कुछ कमियों की तरफ संकेत करते हुए मुजाहिद नफ़ीस ने चिंता व्यक्त की. उन्होने कहा कि स्कूलों के विकल्प के चुनाव और प्रतियोगिता को बढ़ावा देने के लिए आरटीई मानदंडों में छूट और ढील देने की बात कही गई है. आरटीई फोरम का स्पष्ट मानना है कि शिक्षा अधिकार कानून में उल्लिखित न्यूनतम मानदंडों को समाप्त करके समग्र गुणवत्ता में सुधार नहीं लाया जा सकता है. फोरम का मानना है कि निजी स्कूलों के लिए एक मजबूत नियामक ढांचा तैयार करना आवश्यक है. साथ ही, समेकन के नाम पर स्कूलों को बंद करना नई शिक्षा नीति के मसौदे में उल्लिखित एक और प्रतिगामी कदम है. दस्तावेज़ में एक अन्य प्रस्ताव यह है कि माता-पिता निजी स्कूलों के वास्तविक (डी-फैक्टो) नियामक बन सकते हैं, जबकि इस कार्य में राज्य की जिम्मेदारी और भूमिका सुनिश्चित होनी चाहिए. गुणवत्ता, सुरक्षा और इक्विटी मानदंडों का पालन न किया जाना चिंता का विषय है और इस संदर्भ में निजी स्कूलों को स्पष्ट निर्देश एवं उसके लिए एक उचित और सख्त निगरानी तंत्र विकसित किए जाने की आवश्यकता है.
हालांकि इस दस्तावेज़ में ढेर सारे वायदे किए गए हैं लेकिन ये तो केवल आने वाला समय ही यह बताएगा कि इन प्रावधानों को किस हद तक लागू किया गया है.
मुजाहिद नफीस ने कहा कि सरकार के नीति से गांव,कस्बों में स्कूलों की संख्या घटेगी जिसका सीधा असर अल्पसंख्यक,दलित,आदिवासी समाजों पर होगा व पूंजीपतियों के हाथ में हमारा भविष्य चला जायेगा.
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए SFI के निधीश ने कहा कि सरकार मुक्त बाज़ार के लिए सस्ते मजदूर पैदा करने की सोच रही है,शिक्षा पर बजट का खर्च लगातार कम हो रहा है इसके लिए सरकार निजी क्षेत्र में शिक्षा को सौंपने की तयारी कर रही है. चर्चा को वरिष्ठ किसान नेता प्रागजी भाई ने भी संबोधित किया.
सभी ने सर्वसम्मति से कहा कि केंद्र सरकार को नीति पर सुझाव की समय सीमा बढ़ाने व नीति को क्षेत्रीय भाषओं में अनुवाद कर सुझाव मांगे जाएं.
चर्चा में APCR से इकराम मिर्ज़ा, शकील शेख, निधीश कुमार, प्रागजी भाई, दानिश खान, नूरजहाँ अंसारी, जॉन डायस, अब्दुल हकीम अंसारी, शेह्नाज़ आदि ने भाग लिया.
प्रेस विज्ञप्ति: RTE सदस्य मुज़ाहिद नफ़ीस द्वारा जारी