ABVP ने कहा वक्ता ‘देशद्रोही’, और सागर युनिवर्सिटी ने रद्द कर दिया वेबिनार!


माना जाता रहा है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता ज़्यादा होती है लेकिन जिस तरह से एबीवीपी की धमकी के सामने युनिवर्सिटी प्रशासन झुका है वह मोदी और शिवराज सरकार की शिक्षा के प्रति समझ को भी दिखाता है। मोदी सरकार ने मंज़ूरी नहीं दी और शिवराज का पुलिस प्रशासन एबीवीपी के साथ खड़ा हो गया बजाय वेबिनार आयोजकों को सुरक्षा देने के।


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आरएसएस और बीजेपी से जुड़े संगठनों के लिए हर वो व्यक्ति देशद्रोही है जो मोदी सरकार से सहमत नहीं है। हद तो ये है कि उसकी यह समझ देश के ज्ञान-विज्ञान के परिसरों को भी दूषित करने मे जुटी हुई है। मध्यप्रदेश के सागर विश्वविद्यालय को आरएसएस से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यानी एबीवीपी के विरोध की वजह से अपने ही प्रशासन द्वारा आयोजित एक वेबिनार से हाथ खींचने पड़े।

सागर के डॉ.हरि सिंह गौर विश्वविद्यालय में एंथ्रोपोलॉजी विभाग द्वारा 30 और 31 जुलाई को एक अंतरराष्ट्रीय वेबिनार आयोजित होना था जिसमें देश-विदेश के विद्वान आमंत्रित थे। अमेरिका की मोंटक्लेयर स्टेट युनिवर्सिटी इस आयोजन की साझा मेज़बान थी। प्रमुख वक्ताओं के रूप में सीएसआईआर के चीफ़ साइंटिस्ट रहे ग़ौहर रज़ा, दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो.अपूर्वानंद, आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर हरजिंदर सिंह, अमेरिका के मैसाचुसेट्स स्थित ब्रिजवाटर स्टेट युनिवर्सिटी में सहायक प्रोफ़ेसर डॉ.असीम हसनैन आमंत्रित थे।

एबीवीपी ने इन बुद्धिजीवियों को देशद्रोही मानसकिता का क़रार देते हुए सागर के पुलिस अधीक्षक को लिखकर दिया कि इससे क़ानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। यह लिखा पढ़ी 22 जुलाई को की गयी थी। एबीवीपी का दावा है कि गौहर रज़ा ने आतंकी अफ़ज़ल गुरु के लिए कविताएँ लिखी हैं और प्रो.अपूर्वानंद का नाम दिल्ली दंगों में दर्ज एफआईआर में है।

एबीवीपी के इस ज्ञापन के आधर पर सागर एसपी अतुल सिंह ने विश्वविद्यालय को चेतावनी दी थी। एसपी ने विश्वविद्यालय के कुलपति को नोटिस भेजकर कहा था कि इस वेबिनार से यदि कानून व्यवस्था खराब होती है तो आयोजनकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 505 के तहत एफआईआर दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी। एसपी ने नोटिस में लिखा कि वेबिनार में शामिल हो रहे वक्ताओं के देशविरोधी मानसिकता और जाति से संबंधित बयानों’ के बारे में उन्हें जानकारी मिली है। ऐसे में जिस तरह के विचार ज़ाहिर किए जाने वाले हैं, उन पर पहले से सहमति होनी चाहिए।

सागर एसपी के नोटिस के बाद विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार संतोष सोहगौरा ने एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड राजेश गौतम को शुक्रवार सुबह लिखित निर्देश देते हुए कहा कि उन्होंने इसके आयोजन के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय से मंज़ूरी नहीं ली है, इसलिए इसे रद्द करें। हालांकि, विभाग ने शिक्षा मंत्रालय को परमीशन के लिए पत्र लिखा था लेकिन कोई जवाब नहीं मिल सका। ऐसे में वेबिनार शुरू होने से महज दो घंटे पहले एंथ्रोपोलॉजी डिपार्टमेंट को इसे रद्द करना पड़ा।

चूंकि, हरिसिंह गौड़ यूनिवर्सिटी इस वेबिनार की सह-मेजबान थी इसलिए यूनिवर्सिटी के हाथ खींचने के बावजूद तय समय पर ऑनलाइन वेबिनार की शुरुआत हुई। मोंटक्लेयर स्टेट यूनिवर्सिटी ने इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था और उन्होंने अकेले इसकी मेजबानी की। इस वेबिनार में हरिसिंह गौड़ यूनिवर्सिटी का कोई शिक्षक शामिल नहीं हुआ और न ही विश्वविद्यालय के लोगो का इस्तेमाल किया गया।

हैरानी की बात है कि एबीवीपी ग़ौहर रज़ा, जो एक जाने माने शायर भी हैं, पर जो आरोप लगा रही है, उसके लिए ज़ी न्यूज़ पर दिल्ली हाईकोर्ट से जुर्माना लगा था और उसे माफ़ीनामा प्रसारित करने को कहा गया था। प्रो.अपूर्वानंद, जाने-माने जनबुद्धिजीवी हैं। सीएएस-एनआरसी विरोधी आंदोलन में तमाम बुद्धिजीवियों के साथ वे भी शामिल थे और जिस तरह दिल्ली पुलिस ने बुद्धिजीवियों को निशाना बनाया है, उसमें उनका ही नहीं, योगेंद्र यादव का भी नाम शामिल है।

बहरहला, सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या एबीवीपी या ऐसा ही कोई संगठन यह भी तय करेगा कि सेमिनार किस विषय पर हो और विश्वविद्यालय किन्हें आमंत्रित करे। अगर एबीवीपी का तर्क माना जाये तो संविधान निर्माता डॉ.आंबेडकर की कई किताबें प्रतिबंधित हो जायेंगी और विज्ञान के विभाग भी बंद करने पड़ेंगे क्योंकि वैज्ञानिक प्रयोग धार्मिक मान्यताओं को ध्वस्त करके ही आगे बढ़ते रहे हैं।

इस पूरे प्रकरण को मध्य प्रदेश एनएसयूआई ने दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। एनएसयूआई के प्रदेश प्रवक्ता सुहृद तिवारी ने कहा, ‘विद्यार्थी परिषद के लोग विद्यार्थी छोड़ सब कुछ हैं। उन्हें पढ़ाई, लिखाई और बौद्धिक ज्ञान से कोई मतलब नहीं है। एबीवीपी कुपढ़ों की जमात है। संघ की विचारधारा ही यही है, न खुद पढ़ो न समाज को पढ़ने दो। क्योंकि लोग पढ़ लेंगे तो सवाल करना सीख जाएंगे। आरएसएस की सरकार में भी वैसे लोगों को ही ज्यादा तवज्जों मिलती है जो कम पढ़े लिखे हों। यहां सबसे बड़े मूर्ख को सबसे बड़ा ओहदा दिया जाता है।’

एबीवीपी के इस क़दम से कुछ वर्ष पहले चर्चित हुआ एक कार्टून याद आ रहा है जिसे आप सबसे ऊपर देख सकते हैं। एबीवीपी जिस राह में जा रही है, उस पर तो पढ़ाई-लिखाई ही देशद्रोह कहलाने लगेगी।

वैसे सागर युनिवर्सिटी सेंट्रल युनिवर्सिटी है।  माना जाता रहा है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में स्वायत्तता ज़्यादा होती है लेकिन जिस तरह से एबीवीपी की धमकी के सामने युनिवर्सिटी प्रशासन झुका है वह मोदी और शिवराज सरकार की शिक्षा के प्रति समझ को भी दिखाता है। मोदी सरकार ने मंज़ूरी नहीं दी और शिवराज का पुलिस प्रशासन एबीवीपी के साथ खड़ा हो गया बजाय वेबिनार आयोजकों को सुरक्षा देने के।

वैसे, अगर कुलपित और शिक्षक चाहते तो यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर परिसरों की बौद्धिक स्वायत्तता के सवाल पर दुनिया का ध्यान खींच सकता था, लेकिन उन्होंने भी चुपचाप समर्पण कर दिया।


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