बॉलीवुड में प्रभावी भाई-भतीजावाद के ख़िलाफ़ इन दिनों खुली जंग लड़ रहीं अभिनेत्री कंगना रानौत ने अब एक और मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कहा है कि भारत में जाति व्यवस्था अब छोटे-मोटे शहरों की चीज़ है और अगर आरक्षण ख़त्म कर दिया जाये तो यह समस्या भी ख़त्म हो जाएगी। ट्विटर पर उनके इस रूप के ख़िलाफ़ अनुसूचित जाति-जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग जमकर विरोध कर रहे हैं।
इस विवाद की पृष्ठभूमि में द प्रिंट में छपी एक स्टोरी है। प्रख्यात पत्रकार दिलीप मंडल की इस किताब में बताया गया है कि पुलित्ज़र सम्मान विजेता अमेरिकी पत्रकार और लेखिका इसाबेल विलकिरसन ने अमेरिका में नस्लभेद की समस्या को जाति के आईने में देखते हुए किताब लिखी है-Caste: The Origins of Our Discontent जिसकी इन दिनों पश्चिमी जगत में धूम है। अमेरिकी टीवी स्टार ओपरा विनफ्रे ने अपने बहुचर्चित ओपरा बुक क्लब में इस किताब को शामिल किया और अमेरिका की पाँच सौ कंपनियों के सीईओ और देश के अन्य प्रमुख लोगों को यह किताब भेजी है। लेकिन हैरानी की बात है कि जाति को लेकर भारतीय समाज में ख़ास चर्चा नहीं होती।
द प्रिंट के संपादक और मशहूर पत्रकार शेखर गुप्ता ने इस ख़बर को ट्वीट किया। इसी के जवाब में कंगना रानौत ने लिखा कि भारतीय समाज में जाति अब कोई समस्या नहीं है। इसी के साथ उन्होंने आरक्षण पर सवाल उठाते हुए इसको खत्म करने की मांग की।
यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि आरक्षण की वजह से भारत का तेज़ दिमाग़ अमेरिका चला जाता है और भारत में औसत दर्जे के लोग बचते हैं।
ज़ाहिर है, सोशल मीडिया पर इसका विरोध होना शुरू हुआ। लोगों ने कहा कि वे भाईभतीजावाद पर तो मुखर हैं, लेकिन जाति के सवाल पर उन्होंने चुप्पी साध रखी है। यह भी याद दिलाया कि कंगना रानौत ने एक टीवी कार्यक्रम में हाल ही मे अपनी राजपूत जाति पर गर्व जताया था।
लोगों ने जब ये कहा कि वे अपनी राजपूत पहचान छोड़ क्यों नहीं देती अगर जाति महत्व नहीं रखती तो कंगना ने फिर अपनी जाति और खानदान का गौरवगान शुरू कर दिया। इसमें उनके जमींदार होने और पीढ़ियों से जमीन बाँटने का ज़िक्र था।
ज़ाहिर है, इसके बाद सोशल मीडिया में उनके रवैये को लेकर जमकर बहस छिड़ गयी है।
इसके पहले कंगना ने अपने एजेंडे को राष्ट्रवाद और सिर्फ़ राष्ट्रवाद बताया था।
अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या राष्ट्रवादी उन्माद के निशाने पर आरक्षण भी है, जिसकी आशंका शुरू से जतायी जा रही है। क्या कंगना को पता है कि आरक्षण गरीबी दूर करने का उपाय नहीं, व्यवस्था में उन वंचितों को प्रतिनिधित्व देने का संवैधानिक वादा है जो सदियों से वर्णव्यवस्था की चक्की में पिसते आये हैं। कंगना ने जिस तरह बॉलीवुड में भाई-भतीजावाद को निशाने पर लिया है, उससे उनके प्रशंसकों में इज़ाफ़ा हुआ है, लेकिन आरक्षण को लेकर उनका रुख समाज के प्रति उनकी कम समझदारी का एक नमूना है। बीजेपी की प्रिय कंगना ने पार्टी को भी मुसीबत में डाल दिया है। कंगना के रोल मॉडल चुनावी रैलियों में सीना ठोंककर कहते हैं कि आरक्षण खत्म करने वाला अभी पैदा नहीं हुआ। यह अलग बात है क सरकारी नौकरियों को खत्म करने से वह वास्तविकता में वही कर रहे हैं जो कंगना चाहती हैं। देखना होगा कि ये बात निकली है तो कितनी दूर तलक जाती है।