किसानों में फूट डालने में जुटी सरकार, 14 को भूख हड़ताल-AIKSCC

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कृषि क़ानूनों की वापसी पर अडिग किसान संगठनों के आह्वान पर आज देश भर में जगह-जगह प्रदर्शन हुए। तमाम टोल नाकों को फ्री कर दिया गया और दिल्ली के आसपास के तमाम रास्तों पर किसानों के जत्थों ने क़ब्ज़ा कर लिया है। बार्डर छावनी बन गये हैं। संगठनों ने आरोप लगाया कि सरकार किसानों के बीच फूट डालना चाहती है। इसी के साथ  किसान संगठनों ने  14 दिसंबर के कार्यक्रम में अनशन भी जोड़ दिया है। 14 दिसंबर को देश भर के जिला मुख्यालयों पर धरना होगा और किसान संगठनों के नेता एक दिन का उपवास करेंगे।

इस संदर्भ में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने शाम को ये बयान जारी किया है-

एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने किसानों के इस आन्दोलन को बदनाम करने के लगातार कदमों की कड़ी निन्दा करते हुए कहा है कि असल में सरकार किसानों की मुक्त समस्या तीन खेती के कानून और बिजली बिल 2020 की वापसी को हल नहीं करना चाहती। अपने जिद्दी रवैये को छिपाने के लिए वह इस तरह के कदम उठा रही है।

पहले केन्द्र सरकार ने दावा किया कि किसानों का यह आन्दोलन राजनीतिक दलों द्वारा प्रोत्साहित है। फिर उसने कहा कि यह विदेशी ताकतों द्वारा प्रोत्साहित है, इसके बाद उसने कहा कि यह पंजाब का आन्दोलन है, जिसमें खालिस्तान पक्षधर ताकतें भाग ले रही हैं। इसके बाद कहा कि किसानों की यूनियनें वार्ता से बच रही हैं जबकि यूनियनों ने सभी वार्ताओं में भाग लिया, किसी वार्ता में जाने से मना नहीं किया और विस्तार से सरकार को अपना पक्ष समझाया और कहा कि वह साफ करे कि वह कानून वापस लेगी या नहीं। सच यह है कि सरकार के पास किसानों से बात करने के लिए कुछ है ही नहीं।

इस बात पर गौर करना जरूरी है कि इस आन्दोलन पर शुरु में पंजाब में दमन हुआ फिर पंजाब के किसानों को अपनी राजधानी दिल्ली पहुंच कर अपनी सरकार से बात करने के लिए अपने ऊपर बेरहम हमले का सामना करना पड़ा, बैरिकेड लगे थे, सड़कें काटी गयीं, ठंड में पानी की बौछार की गयी और आंसू गैस फेंके गये। अब सरकार दोष मढ़ रही है कि आन्दोलन तेज क्यों किया जा रहा है और दमन तथा गैरकानूनी गिरफ्तारियों के खिलाफ बयान क्यों दिया जा रहा है। यह बात स्पष्ट नहीं है कि सरकार अपने नागरिकों को बदनाम करके क्या हासिल करना चाहती है। देश के किसान सरकार से जानना चाहते हैं कि क्या ये विदेशी व भारतीय कारपोरेट को बढ़ावा देने की योजना का हिस्सा है।

किसानों ने बहुत विस्तार से यह बात समझाई है कि भारतीय व विदेशी कारपोरेट को भारतीय खेती में बढ़ावा देने से, उन्हे निजी मंडिया स्थापित करने देने से और किसानों को ठेके की खेती में शामिल करने से सरकारी मंडियों की वर्तमान सुरक्षाएं भी समाप्त हो जाएंगी। इससे लागत के दाम बढ़ेंगे, किसान कर्जदार होंगे और जमीन से बेदखल होंगे। ये कानून किसानों को वर्तमान अधिकारों पर भी हमला कर देंगे जिसमें वर्तमान एमएसपी भी शामिल है। सरकार के प्रस्ताव में ऐसा कोई सूत्र नहीं है जो किसानों को और कर्जों के लदने से बचा सके, जिससे लागत के मूल्य घट सकें, जिससे सी2+50 फीसदी का एमएसपी सभी किसानों को सभी फसलों का मिल सके, जिससे राशन व्यवस्था जारी रह सके और जिससे खाने की जमाखोरी व कालाबाजारी रोकी जा सके।

आश्चर्य नहीं है कि सरकार ने जो दस्तावेज ‘पुटिंग फार्मर्स फर्स्ट’ जारी किया है, उसके पृष्ठ 16 पर लिखा है कि ये कानून कारपोरेट के कृषि व्यवसायियों को आगे कर देगा। वह लिखता है ‘कल्पना कीजिए कि इन सुधारों के साथ कृषि व्यवसायियों के लिए कितने सारे नए अवसर खुल जाएंगे।

एआईकेएससीसी ने इस बात पर जोर दिया है कि तीनों कृषि कानून व बिजली बिल 2020 वापस लिया जाना समस्या का एकमात्र समाधान है और सरकार से आग्रह किया है कि वह ऐसा तुरंत करे।

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आशुतोष
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