उत्पीडि़तों का मुकदमा लड़ने वाले गुजरात के मानवाधिकार अधिवक्ता बिलाल काग़ज़ी को एक ऐसे मुकदमे में फंसा दिया गया है जिसमें सह-आरोपी उनके अपने क्लाइंट हैं। फिलहाल बिलाल को स्थानीय अदालत से बीते 27 अगस्त को अग्रिम ज़मानत मिल गयी है और उन्होंने अमदाबाद के उच्च न्यायालय में इसके खिलाफ़ एक पिटीशन दाखिल की है।
मीडियाविजिल से बातचीत में बिलाल ने इस मामले की जानकारी दी और सारे काग़ज़ात उपलब्ध करवाये।
#Gujarat Model # Gujarat police
Kosamba police did their job, to implicated my name in f.i.r,
Now, investigation transferred to crime branch to use their immunity to do illegal and unconditional way of investigation.— Bilal Kagzi (@bilalkagzi) August 15, 2019
इस मामले की पृष्ठभूमि यह है कि बिलाल ने अलग-अलग उत्पीड़न के मामलों में सूरत के कोसाम्बा थाने के सब-इंस्पेक्टर और एक सिपाही के खिलाफ पांच मुकदमे दर्ज्र करवाये थे। राज्य के मानवाधिकार आयोग और पुलिस अफसरों ने इन मामलों का संज्ञान भी ले लिया था।
बिलाल के मुताबिक इन्हीं प्रकरणों में अधिवक्ता की आवाज़ को चुप कराने के उद्देश्य से पुलिस ने उन्हें एक झूठे मामले में फंसा दिया और उन्हें एक ऐसी घटना में लिप्त दिखा दिया जहां वे थे ही नहीं।
46592मारपीट का यह मामला 12 अगस्त को एफआइआर संख्या 139/2019 के तहत आइपीसी की धारा 143, 144, 148, 149, 307, 323, 324, 325, 427, 120-बी, 504 और 506(2) में कोसाम्बा में दर्ज किया गया। इसमें बिलाल के अलावा सात अन्य को आरोपी बनाया गया है जिसमें शिकायतकर्ता का कहना है कि उसके ऊपर आठों ने मौके पर सुबह 8.30 बजे जानलेवा हमला किया।
बिलाल उच्च न्यायालय में लगी अपनी याचिका में बताते हैं कि हमले के 12 घंटे बाद एफआइआर दर्ज करवायी गयी। कथित हमले के वक्त बिलाल अपने घर पर थे। उनके मुताबिक इसी से समझ में आता है कि हमले की पूरी कहानी गढ़ी गयी है और उन्हें फंसाने के लिए रची गयी है।
बिलाल के मुताबिक उन्होंने 16 अगस्त से 18 अगस्त के बीच आइओ, सूरत के डिप्टी एसपी और एसपी से मुलाकात कर के अपने मौका-ए-वारदात पर न होने का साक्ष्य मुहैया कराया। इसमें उनके घर का सीसीटीवी फुटेज शामिल है। उनका कहना हे कि अधिकारियों ने इन साक्ष्यों की जांच तक नहीं की।
इसके बाद सूरत के डिप्टी एसपी को बिलाल कागज़ी ने 25 अगस्त को लिखित में प्रतिवेदन भी दिया लेकिन उसकी भी कोई जांच नहीं हुई, जिसके चलते उनहें अग्रिम ज़मानत की याचिका लगानी पड़ी।
display_pdf.phpबिलाल की मानें तो इस मामले में वास्तव में उनके सह-आरोपी ही पीडि़त हैं जिनका वे मुकदमा लड़ रहे हैं। यह मुकदमा लड़ने से उन्हें रोकने के लिए एफआइआर में फर्जी तरीके से उनका नाम डाला गया है।
हमले की एफआइआर हुए बीस दिन बीत गये हैं लेकिन अब तक स्थानीय पुलिस ने कोई जांच नहीं शुरू की है। बिलाल ने उच्च न्यायालय में दाखिल अपनी याचिका में अदालत से अनुरोध किया है कि वह पुलिस को इस मामले की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच करने का निर्देश दे।
Petition – Bilal Kagzi