ये कैसी ‘हिंदू धर्म परिषद’ जो किसान आंदोलन पर रोक लगवाने सुप्रीम कोर्ट पहुँची?

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कृषि कानूनों में बदलाव के विरोध को सरकार या बीजेपी ग़लत बताये, ये तो स्वाभाविक है, लेकिन क्या यह धार्मिक संगठन के लिए भी ऐतराज़ की बात हो सकती है। क्या किसी धार्मिक संगठन के लिए विपक्षी दल आतंकी हो सकते हैं?  सुप्रीम कोर्ट में हिंदू धर्म परिषद द्वारा दायर याचिका से यह सवाल खड़ा हुआ है। इस संगठन ने सर्वोच्च अदालत से मांग की है कि वह राज्यों और केंद्र को किसान अधिनियम लागू करने और राजनीतिक दलों और संगठनों द्वारा इसके खिलाफ आंदोलन और जुलूसों पर रोक लगाने का निर्देश दे।

इन दिनों नये कृषि कानून के खिलाफ जबरदस्त आंदोलन हो रहा है। मीडिया के कैमरे भले ही उधर रुख नहीं कर रहे हैं, लेकिन तमाम राज्यों में किसान इसके खिलाफ आंदोलन छेडे़ हुए हैं। पंजाब, हरियाणा से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक में इस कानून के खिलाफ जबरदस्त गोलबंदी दिख रही है। कांग्रेस ने इसे प्रमुख मुद्दा बनाया हुआ है और खुद राहुल गाँधी ट्रैक्टर यात्रा निकाल रहे हैं।

जाहिर है, यह राजनीतिक दृष्टि से गंभीर मुद्दा बन रहा है। ऐसे में किसी धार्मिक संगठन का सरकार की मदद में और किसानों के खिलाफ यूँ खड़े हो जाने चौंकाने वाला है। हिंदू धर्म परिषद ने इन आंदोलनों पर रोक ही नहीं, किसान अधिनियम से संबंधित किसी भी बयान को इलेक्ट्रानिक और सोशल मीडिया पर किसी रूप में प्रसारित करने पर रोक की मांग की है।

याचिका में कहा गया है कि नया कृषि कानून किसानों के पक्ष में है। यह किसानों को गरीबी से बचाने के लिए बनाया गया है। बिल संसद में पारित हो चुका है तो सभी राज्यों का कर्तव्य है कि इसे लागू करें, लेकिन राजनीतिक कारणों से इसका विरोध किया जा रहा है।

याचिका में कहा गया है कि “हर दिन कुछ राष्ट्र विरोधी राजनीतिक दलों द्वारा आगजनी और दंगा भड़काया जा रहा है और सरकार को धमकी दी जा रही है कि वह विधेयक को वापस ले। इन आतंकी तरीकों से निपटने के लिए लोहे के हाथ का इस्तेमाल करना होगा।”

ज़ाहिर है, यह याचिका किसान आंदोलनकारियों और कृषि विधेयक विरोधी राजनीतिक दलों को आतंकी करार दे रही है। सवाल है कि क्या कोई धार्मिक संगठन ऐसा कर सकता है या उसे ऐसा करना चाहिए। या फिर धर्म की आड़ में यह राजनीति की ही कोई परिषद है। और ऐसा क्यों है कि धर्म और उससे जुड़े संगठनों को किसानों, मज़दूरों या मेहनतकशों की पीड़ा कभी चिंतित नहीं करती और वह खुलकर विरोध के लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन की माँग करने लगताे हैं?