चुनाव चर्चा: हरिवंश के फिर राज्‍यसभा उपसभापति बनने के मायने

चन्‍द्रप्रकाश झा चन्‍द्रप्रकाश झा
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पूर्व पत्रकार एवम बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल-यूनाइटेड (जेडी-यू) के राज्‍यसभा सदस्य हरिवंश नारायण सिंह , प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) के समर्थन से लगातार दूसरी बार सदन के उपसभापति चुन लिये गए हैं. यह चुनाव कोरोना कोविड-19 महामारी की छाया में संसद का मानसून सत्र सोमवार को शुरु होने पर सम्पन्न हुआ. अपने प्रथम नाम से ज्यादा चर्चित हरिवंश जी 64 वर्ष के हैं. उनका निर्वाचन बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले की इस राजनीतिक प्रक्रिया में किसी भी तरह से अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता है.

राज्यसभा उपसभापति चुनाव में बिहार के ही पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सांसद मनोज झा विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार थे. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उपचार के लिये अपने पुत्र राहुल गांधी के साथ विदेश जाने से पह्ले इस चुनाव के वास्ते यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस (यूपीए) में शामिल द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (डीएमके) प्रमुख स्टालिन से आग्रह किया था, जो राजी नहीं हुए.

राज्य सभा ने ध्वनिमत से हरिवंश जी को उपसभापति चुना. सभापति चुने पर मोदी जी, सदन में विपक्ष एवम कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद, सभी दलों के नेताओं और पराजित आरजेडी प्रत्याशी मनोज झा ने भी हरिवंश जी को बधाई और इस पद पर उन के नए कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं दीं. इस चुनाव में सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष के आये प्रस्तावों के मद्देनज़र उपराष्ट्रपति एवम सभापति एम.वेंकैया नायडू ने ध्वनिमत से चुनाव करवाया और उसके आधार पर हरिवंश जी को निर्वाचित घोषित कर दिया. एनडीए की तरफ से बीजेपी अध्यक्ष एवम सांसद जेपी नड्डा ने हरिवंश जी के समर्थन में प्रस्‍ताव पेश किया था. मनोज झा (नीचे तस्वीर) के समर्थन में राज्‍यसभा में विपक्ष के नेता एवम कांग्रेस सांसद गुलाम नबी आजाद ने प्रस्‍ताव रखा था.

 

असाधारण अम्पायर

मोदी जी ने हरिवंश जी को उपसभापति चुने जाने पर अपनी बधाई में कहा: इस बार संसद सत्र ऐसी परिस्थितियों में आयोजित हो रहा है जैसी पहले कभी नहीं रहीं. ऐसे में यह महत्‍वपूर्ण है कि सुरक्षा से संबंधित सभी ऐहतियात बरते जायें। हरिवंश जी सदन के हर गलियारे से संबंध रखते हैं. उन्‍होंने निष्‍पक्ष अंदाज में सदन की कार्यवाही संचालित की है. वे असाधारण अम्पायर रहे हैं और आने वाले समय में भी ऐसा ही करते रहेंगे. अपने कर्तव्‍यों का निर्वहन करने में उन्‍होंने कड़ा परिश्रम किया है.

 

शिकायतें

राज्यसभा चुनाव में धनबल, सत्ताबल आदि की गम्भीर शिकायते हैं. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री एवम बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने 2018 में प्रदेश से राज्यसभा के चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवार को मिली हार के बाद लखनऊ मे प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि भाजपा ने गोरखुपर और फूलपुर लोक सभा उपचुनाव में अपनी करारी हार के बाद राज्यसभा चुनाव में साजिश रची जिसके कारण  बसपा उम्मीदवार की हार हुई. मायावती जी का कहना था : बीजेपी सरकार के पास सीबीआई और ईडी जैसे हथियार हैं जिसके जरिये वह विपक्ष को डराने की कोशिश कर रही है.

गौरतलब ये भी है कि रिपब्लिक टीवी के मालिक और रक्षा सेवाओं के विवादित वैश्विक कारोबारी, राजीव चंद्रशेखर एक बार तो कर्नाटक बतौर निर्दलीय भाजपा के समर्थन से जीते थे. पर वह दूसरी बार बतौर भाजपा प्रत्याशी जीते. ये विवाद , राजीव चंद्रशेखर के ‘ हितों के टकराव’ को लेकर है. शराब कारोबारी विजय माल्या, भारतीय बैंकों से लिए सैंकड़ों करोड़ रूपये के ऋण और ब्याज चुकाए बगैर लन्दन फरार होने के पहले इसी तरह कर्नाटक से बतौर निर्दलीय भाजपा के समर्थन से जीते थे. माल्या के भी मामले में भी ‘हितों का टकराव’ था. उन्हें किंगफिशर विमानन कम्पनी का मालिक होने के बावजूद विमानन मामले की संसदीय सलाहकार कमेटी का सदस्य भी बना दिया गया था. राजीव चंद्रशेखर, रक्षा कारोबारी होने के बावजूद रक्षा मंत्रालय की संसदीय सलाहकार कमेटी में हैं.

 

इतिहास

भारत की संसद के उच्च सदन, राज्यसभा की सीटों पर हालिया चुनावो में धनबल, सत्ताबल, वंशानुगत राजनीति, क्रासवोटिगं और ब्लैकमेलिंग तक के मामले बेशक बढे हैं लेकिन इस सदन का गौरवमयी इतिहास रहा है. स्वतंत्र भारत में संसद के द्वितीय सदन की उपयोगिता अथवा अनुपयोगिता के संबंध में संविधान सभा में विस्तृत बहस हुई थी. हमारे संविधान रचियताओ ने विविधताओं के विशाल देश के लिए शासन के लिये राष्ट्रपति प्रणाली के बजाय संसदीय लोकतंत्र और परिसंघीय (फेडरल) व्यवस्था में द्विसदनी संसद को सब से उपयुक्त माना.

संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है. इनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नाम-निर्देशित किए जाते हैं. 238 सदस्य राज्यों के और संघ-राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं. राज्य सभा के सदस्यों की वर्तमान संख्या 245 है. इनमें से 233 सदस्य राज्यों और संघ-राज्य क्षेत्र दिल्ली तथा पुडुचेरी के प्रतिनिधि हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्देशित हैं. संविधान के प्रावधानों के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्देशित सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है.

संविधान की चौथी अनुसूची में राज्य सभा में राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को स्थानों के आवंटन का उपबंध है. स्थानों का आवंटन प्रत्येक राज्य की जनसंख्या के आधार पर किया जाता है. राज्यों के पुनर्गठन तथा नए राज्यों के गठन के परिणामस्वरूप, राज्यों और संघ राज्य क्षेत्रों को आवंटित राज्य सभा में निर्वाचित स्थानों की संख्या वर्ष 1952 से लेकर समय-समय पर बदलती रही है. प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन राज्य विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय मत द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार किया जाता है.

राज्य सभा स्थायी सदन है और यह भंग नहीं होता. प्रत्येक दो वर्ष बाद राज्य सभा के एक-तिहाई सदस्य सेवा-निवृत्त हो जाते हैं. राज्यसभा के सद्स्य मंत्रिपरिषद के सदस्य बन सकते है. सभापति का कार्यकाल 5 वर्षों का ही होता है. राज्यसभा अपने सदस्यों में से एक उपसभापति का भी चयन करती है.

राज्य सभा में वर्ष 1969 तक वास्तविक अर्थ में विपक्ष का कोई नेता नहीं होता था. उस समय तक सर्वाधिक सदस्यों वाली विपक्षी पार्टी के नेता को बिना किसी औपचारिक मान्यता विपक्षी नेता मानने की प्रथा थी. विपक्ष के नेता के पद को संसद में विपक्षी नेता वेतन और भत्ता अधिनियम (1977) द्वारा मान्यता प्रदान की गई.

 

संपत्ति

भारत में चुनावो पर नज़र रखने वाले गैर-सरकारी संगठन, एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के अनुसार राज्यसभा के कुल सदस्यों में से 201 अर्ध-अरबपति हैं. उनकी औसत संपदा 55 करोड़ रुपये की है.कुछ साल पहले की इस रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अमीर राज्यसभा सदस्य बिहार से जेडी-यू के ही महेंद्र प्रसाद है, जिनकी घोषित संपत्ति करीब चार हज़ार करोड़ रुपये की है. मौजूदा 51 राज्य सभा सदस्यों का आपराधिक रिकार्ड है. इनमें से सबसे ज्यादा 14 भाजपा के और 8 कांग्रेस के हैं.

 



वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा का मंगलवारी साप्ताहिक स्तम्भ ‘चुनाव चर्चा’ लगभग साल भर पहले, लोकसभा चुनाव के बाद स्थगित हो गया था। कुछ हफ़्ते पहले यह फिर शुरू हो गया। मीडिया हल्कों में सी.पी. के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं। सी.पी. आजकल बिहार में अपने गांव में हैं और बिहार में बढ़ती चुनावी आहट और राजनीतिक सरगर्मियों को हम तक पहुँचाने के लिए उनसे बेहतर कौन हो सकता था। वैसे उनकी नज़र हर तरफ़ है। जैसे इस बार उन्होंने राज्यसभा के उपसभापति चुनाव के बहाने राज्यसभा से हमारा विस्तृत परिचय कराया।