अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के आह्वान पर देश में किसानों ने आज ‘एमएसपी अधिकार दिवस’ मनाया। 20 से अधिक राज्यों में किसानों ने मंडियों, जिला मुख्यालयों व तहसीलों पर धरना प्रदर्शन किए। हरियाणा, उत्तराखण्ड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक केरल, महाराष्ट्र, गुजरात व अन्य राज्यों में यह बड़ी संख्या में किसान सड़कों पर उतरे। इसके साथ ही जिलाधिकारी/उपजिलाधिकारी/ तहसीलदार/ सचिव, मंडी समिति के माध्यम से राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भेजे।
राष्ट्रपति को भेजे गए ज्ञापन में तीनों कृषि संबंधी कानून को वापस लेने, सभी कृषि उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए कानून बनाने के बारे में सरकार को निर्देर्षित करने की अपील की गई। ज्ञापन में कहा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि संबन्धी कानून भारत की खेती को अमरीकी पैटर्न पर ले जाने की साजिश है। इनके लागू होने के कुछ ही वर्षों में कृषक कार्यों से जुड़ी 50 करोड़ आबादी खेती से बाहर हो जाएगी और हमारी खेती, किसानी, खुदरा व्यापार सब कारपोरेट व बहुराष्ट्रीय निगमों का गुलाम बन जाएगा।
ज्ञापन में कहा गया है कि अभी भी देश के किसानों के सभी कृषि उत्पादों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित नहीं है। यही नहीं केंद्र सरकार द्वारा गठित शांताकुमार कमेटी के अनुसार मात्र 6 प्रतिशत किसानों को ही देश में एमएसपी का फायदा मिलता है। मोदी सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि बिल अब एमएसपी पर खरीद के रास्ते भी बंद कर रही है।
इस लिए आज देश के किसानों द्वारा मनाए जा रहे “एमएसपी अधिकार दिवस” के मौके पर हम आपसे मांग करते हैं की आप केंद्र सरकार को निर्देशित करें कि –
किसान विरोधी कृषि संबंधी तीनों कानूनों को वापस लेने के लिए केंद्र सरकार को निर्देशित करें।
केंद्र सरकार सभी कृषि उपजों की स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार C2+ जोड़कर न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करे।
केंद्र सरकार घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर फसलों की खरीद को आपराधिक कृत्य घोषित करने का कानून बनाए।
छत्तीसगढ़ में 25 से ज्यादा संगठन सड़क पर उतरे
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर मोदी सरकार द्वारा पारित किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ और न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था और खाद्यान्न आत्मनिर्भरता को बचाने और ग्रामीण जनता की आजीविका सुनिश्चित करने की मांग छत्तीसगढ़ में कई स्थानों पर किसानों और आदिवासियों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया, कृषि विरोधी कानूनों की प्रतियां और मोदी सरकार के पुतले जलाए और इन कॉर्पोरेटपरस्त कानूनों को वापस लेने की मांग की।
प्रदेश में इस मुद्दे पर 25 से ज्यादा संगठन एकजुट हुए हैं। कोरबा, सूरजपुर, सरगुजा, रायगढ़, कांकेर, चांपा, मरवाही सहित 20 से ज्यादा जिलों में अनेकों स्थानों पर सैकड़ों की भागीदारी वाले विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम आयोजित किये गए। इन संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, दलित-आदिवासी मंच, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान कल्याण संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं।
इन सभी संगठनों की मांग है कि घोषित समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल की खरीदी को कानूनन अपराध घोषित किया जाए, न्यूनतम समर्थन मूल्य सी-2 लागत का डेढ़ गुना घोषित करने का कानून बनाया जाए और इस मूल्य पर अनाज खरीदी करने के लिए केंद्र सरकार के बाध्य होने का कानून बनाया जाए। यह आंदोलन संसद से भाजपा सरकार द्वारा अलोकतांत्रिक तरीके से पारित कराए गए तीन किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ चलाये जा रहे देशव्यापी अभियान की एक कड़ी था।
स्वामीनाथन कमीशन के आधार पर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के दावे को लफ्फाजी और जुमलेबाजी करार देते हुए किसान नेताओं ने कहा है कि अपने सात सालों के राज में कभी भी मोदी सरकार ने सी-2 लागत को समर्थन मूल्य का आधार नहीं बनाया है, जिसकी सिफारिश स्वामीनाथन आयोग ने की है। आज तक जो समर्थन मूल्य घोषित किये गए हैं, वह लागत तो दूर, महंगाई में हुई वृद्धि की भी भरपाई नहीं करते।
किसान नेताओं ने अपने बयान के साथ पिछले 6 वर्षों में खरीफ फसलों की कीमतों में हुई सालाना औसत वृद्धि का चार्ट भी पेश किया है, जिसके अनुसार पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष खरीफ फसलों की कीमतों में मात्र 2% से 6% के बीच ही वृद्धि की गई है। उन्होंने बताया कि इसी अवधि में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई में 10% और डीजल की कीमतों में 15% की वृद्धि हुई है और किसानों को खाद, बीज व दवाई आदि कालाबाज़ारी में दुगुनी कीमत पर खरीदना पड़ा है।
उन्होंने कहा कि इसी प्रकार, धान का अनुमानित उत्पादन लागत 2100 रूपये प्रति क्विंटल बैठता है और सी-2 फार्मूले के अनुसार धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3150 रूपये प्रति क्विंटल होना चाहिए, जबकि मोदी सरकार ने समर्थन मूल्य 1815 रूपये ही घोषित किया है. इस प्रकार, धान उत्पादक किसानों को वास्तविक समर्थन मूल्य से 1430 रूपये और 45% कम दिया जा रहा है। मोदी सरकार का यह रवैया सरासर धोखाधड़ीपूर्ण और किसानों को बर्बाद करने वाला है।
यूपी के प्रयागराज में प्रदर्शन
अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के नेतृत्व में सैकड़ों किसानों व मजदूरों ने प्रयागराज के बारा तहसील पर किसान-मजदूर विरोधी, विदेशी कम्पनी पक्षधर, कॉरपोरेट पक्षधर खेती के 3 कानून का विरोध किया और भारत सरकार से मांग की कि इसे वापस लिया जाए। इस आशय का ज्ञापन नायब तहसीलदार को सौपा।
नेताओं ने कहा कि इन 3 कानूनों के अमल के बाद विदेशी कम्पनियां, बड़े प्रतिष्ठान अनाज व अन्य फसलों के व्यापार में अपनी मंडियां स्थापित कर लेंगे, किसानों से ठेका खेती कराएंगे, लागत के सामान की बिक्री, भंडारण, शीत भंडारण, परिवहन, फसल व प्रसंस्कृत फसल की बिक्री पर अपना प्रभुत्व जमाएंगे। वे ये सारा कार्य तरह-तरह के बिचैलियों के माध्यम से करेंगे, जैसे- ठेके की खेती के लिए जमीन एकत्र करना व बिक्री के लिए फसल एकत्र करना एग्रीगेटर करेगा। लागत की आपूर्ति बिचैलिया करेगा। फसल की गुणवत्ता पारखी तय करेगा और निजी मंडिया अपना अलग से शुल्क वसूलेंगी। किसान को अपनी जमीन गिरवी रखनी पड़ेगी, मंहगी लागत खरीदनी पड़ेगी और खेती करने व फसल की बिक्री की स्वतंत्रता समाप्त हो जाएगी।
ये तीन कानून कॉरपोरेट को जमाखोरी व कालाबाजारी करने की पूरी छूट देगा, क्योंकि इन कानूनों के तहत भारत सरकार खाने को आवश्यक वस्तु नहीं गिनेगी।
किसान नेताओं ने उ.प्र. सरकार को एक अलग ज्ञापन सौंपा, जिसमें मांग की गई है कि गांव में सभी को मनरेगा के तहत पूरे महीने न्यूनतम मजदूरी दर पर काम दिया जाए और राशन में सभी को 15 किलो अनाज, 1 किलो दाल, तेल, चीनी प्रति यूनिट दिया जाए।
ज्ञापन में कहा गया कि उ0प्र0 सरकार ने बड़े व्यापारियों व बालू माफियाओं के पक्ष में एक बेतुका और गैरकानूनी आदेश 24 जून 2019 को पारित किया था, जिसमें केवल जमुना नदी व केवल प्रयागराज में पर्यावरण रक्षा के नाम पर नाव से बालू खनन पर रोक लगाई थी, ताकि माफिया के लोडर चल सकें। उन्होंने कहा कि सरकार रवन्ने के सरकारी रेट 65 रु0 प्रति घनमीटर की जगह 700 रु0 घन मीटर की वसूली करा रही है जिससे बालू की बिक्री प्रभावित है और यह अतिरिक्त कमाई पुलिस अफसरों व भाजपा नेताओं की जेब में जा रही है। उन्होंने मांग की कि इस आदेश को वापस लेकर नाव से बालू खनन का कार्य सुचारू रूप से चलाया जाए।
प्रदर्शन में भाग लेने वालों में हीरालाल, राम कैलाश कुशवाहा, सुरेश निषाद, विनोद निषाद, पप्पू निषाद, मोतीलाल, रामबरन, सतीश पटेल, भैरोलाल पटेल, रामराज, रोहित व अन्य शामिल थे।