किसान आंदोलन के 17वें दिन आज दिल्ली आने वाले सभी रास्तों पर किसानों के छोटे-बड़े जत्थे राजधानी की ओर कूच करते नज़र आ रहे हैं। करनाल और पानीपत के टोल प्लाज़ा पर किसानों ने कल रात ही क़ब्ज़ा कर लिया था। इधर, दिल्ली बार्डर पर हर ओर छावनी जैसा मंज़र है।
कृषि मंत्री के सरकार की ओर से दिये गये संशोधन प्रस्ताव पर दोबारा विचार की पेशकश को ठुकराते हुए किसान संगठनों ने आंदोलन तेज़ करने का ऐलान किया था। इसके तहत 12 दिसंबर को देश भर में टोल प्लाज़ा फ्री करने की बात कही गयी थी। इसके अलावा दिल्ली-जयपुर हाई वे को भी जाम करने को चेताया गया था। 14 दिसंबर को देशव्यापी आंदोलन होगा जिसके तह हर जिला मुख्यालय पर किसानों का प्रदर्शन होगा।
इस बीच किसान आंदोलन को बदनाम करने का प्रयास भी हो रहा है। एक केंद्रीय मंत्री की ओर से आंदोलन के पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ बताया गया था और अब खुद कृषि मंत्री कह रहे हैं कि आंदोलन पर अल्ट्रा लेफ्ट का क़ब्ज़ा है। खालिस्तानियों के सक्रिय होने का आरोप भी लग रहा है। कथित मुख्यधारा का मीडिया सरकार के आरोपों को हवा दे रहा है। लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य को वैधानिक आधार देने की बुनियादी बात करने को तैयार नहीं है। किसानों का आरोप है कि अंबानी-अडानी का सरकार और मीडिया दोनों पर क़ब्जा है। इसलिए लड़ाई सरकार के साथ-साथ कॉरपोरेट के ख़िलाफ़ भी है। अंबानी के जियो सिम के बहिष्कार का ऐलान इसी का नतीजा है।
ऐसा लगता है कि सरकार सख्ती के मूड में आ रही है। सिंघू बार्डर पर रेड लाइट पर बैठे किसानों के खिलाफ़ एफआईआर दर्ज करा दी गयी है। उन पर महामारी एक्ट भी लगा दिया गया है। लेकिन किसानों का कहना है कि वे किसी भी सूरत में कृषि कानूनों को रद्द कराये बिना वापस नहीं जायेंगे।
ज़ाहिर है, दिल्ली इतिहास की एक अनोखी जंग देख रही है। हालाँकि उसे इसके अंत को लेकर कोई संशय नहीं है। वह जानती है कि आख़िरकार अत्याचारियों को घुटना टेकना ही पड़ता है।