हम सभी देश में वर्तमान केंद्रीय सरकार के नेतृत्व के कारण संविधान पर खतरा और लोकतंत्र को कमज़ोर होते हुए पा रहे हैं। स्थिति बहुत डरावनी है। सामाजिक-मानव अधिकार कार्यकर्ताओं को डराया जा रहा है। यूएपीए जैसे कानूनों को कठिन बनाया जा रहा है। जिससे सत्ता और अधिक निरंकुश हो रही है। जमीनी स्तर पर चलाये जा रहे संघर्षों को नकारा जा रहा है। मध्य प्रदेश में नर्मदा बचाओ आंदोलन के द्वारा 32000 परिवारों पुनर्वास ना होने की सारी असलियत को सामने रखने के बावजूद व मध्य प्रदेश सरकार के यह स्वीकार करने के बावजूद कि पुनर्वास नहीं हो पाया है, केंद्र सरकार सिर्फ सरदार सरोवर के पानी को और पर्यटन को कारपोरेट के फायदे के लिए ही ध्यान दे रही है। समन्वय राज्य सरकार से अपील करता है कि वह इस मुद्दे पर कानूनी कदम भी उठाए।
बरगी बांध से विस्थापितों को चुटका परमाणु संयंत्र के नाम पर उजाड़ने की फिर से कोशिश है जिसका स्थानीय स्तर पर पुरजोर विरोध चालू है। यह भी सच है कि मध्य प्रदेश में बिजली की अधिकता होने के कारण कितने ही बिजली घरों को बिजली पैदा करने से मना किया गया है। समन्वय दोनों ही संघर्षों का पुरजोर समर्थन करता है और देश भर में इसके लिए जागृति और सरकारों के सामने असलियत लाने का काम कर रहा है। गंगा के नाम पर वोट बटोरने के बाद पर्यावरण और सामाजिक मुद्दों को पूरी तरह दरकिनार करते हुए प्रधानमंत्री गंगा पर बंदरगाहों का उदघाटन करते हैं।
वैज्ञानिक उपलब्धियों का राजनैतिक इस्तेमाल, कश्मीर से धारा 370 व 35ए अलोकतांत्रिक तरह हटाने के बाद आतंकवाद का डर प्रचारित करके लाखों की संख्या में सैन्य बल का दुरुपयोग हो रहा है। वही आम आदमी का जीवन दूभर किया है। कश्मीर की जनता की परवाह नहीं बल्कि कश्मीर के संसाधनों का कारपोरेटिकरण सरकार की मंशा है।
वन अधिकार के मुद्दे पर सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में वकील तक खड़े नहीं किए। अभी हाल की सुनवाई में भी केंद्रीय सरकार के वकील नदारद थे। यह केंद्रीय सरकार की मंशा को जाहिर करता है कि जंगलों को खाली कराया जाए ताकि उसको कारपोरेट के हाथ आसानी से दिया जा सके।
सरकार हिंदू मुस्लिम हल्ला करते हुए अति हिंदूवाद को बढ़ाते हुए गिरती अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण सवाल को छुपा रही है ।सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग भी अनर्गल बयान देते हैं। पूर्व गृह मंत्री पर बलात्कार जैसे गंभीर आरोप के बावजूद एफ आई आर तक वापस करने जैसे अनैतिक कार्य भी यह सरकार कर रही है। आर्थिक मुद्दे पर फेल होते हुए, रिजर्व बैंक के रिजर्व को कम करने का देश में पहली बार हुआ है।
समन्वय के 25 वर्ष भी पूरे होने को आए है। समन्वय से जुड़े तमाम संगठन इन सब परिस्थितियों में जूझते हुए सरकार के सामने समय-समय पर चुनौती प्रस्तुत कर रहे हैं। नर्मदा में संगठन अगर डूब के पानी से टकरा रहे हैं, तो कश्मीर की बंद दीवारों तक समन्वय के साथी पहुंचे और कश्मीर में सब ठीक है की पोल खोली।
भोपाल के गांधी भवन में समन्वय की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की 2 दिन की बैठक में इन तमाम मुद्दों पर चर्चा के बाद इन सब तमाम परिस्थितियों के बीच हम 23-24-25 नवंबर को जगन्नाथ पुरी, ओड़िसा में राष्ट्रीय समन्वय के 12वां द्विवार्षिक सम्मेलन की घोषणा कर रहे हैं। सम्मेलन का मूल कथ्य ‘वक्त की आवाज है मिल के चलो” रहेगा। सम्मेलन में पर्यावरण, राजनीतिक विकल्प, चुनाव सुधार, ऊर्जा, भूमि एवं वन अधिकार, श्रम क़ानून, सांप्रदायिकता, जातिवाद आदि अन्य मुद्दों पर विस्तृत चर्चा और कार्यक्रम तय किए जाएँगे।
प्रफुल्ल सामंत्रा, डॉक्टर सुनिलम, अरुंधती धूरू, विमल भाई, आनंद मजगाओंकार, सुहास कोलहेकर, आशीष रंजन, फ़ैसल खान, सुनीति सुर, महेंद्र यादव, राजेंद्र रवि, लिंगराज आज़ाद, नसीरुद्दीन हैदर खान, रीचा सिंह, गेब्रीयल डीट्रिक, बालकृष्ण साँड़, इनमल हसन, आराधना भार्गव, राजकुमार सिंह, सुरेश राठौड़, जैनब, मीरा संघमित्रा, संजीव कुमार, मधुरेश कुमार, बिलाल खान और अन्य।
NAPM द्वारा जारी