हे पौराणिक संपादकों, अयोध्‍या में ”त्रेतायुग जैसी भव्‍य” दिवाली के बारे में किसने बताया?

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अयोध्‍या में यूपी के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ की अगुवाई में बुधवार को हेलिकॉप्‍टर से नकली राम-सीता क्‍या उतरे, पूरा का पूरा मीडिया त्रेतायुग में चला गया। गुरुवार 19 अक्‍टूबर को अख़बारों के राष्‍ट्रीय और स्‍थानीय संस्‍करण देखिए चाहे रिमोट पर चैनल बदलिए या फिर इन्‍हीं मीडिया संस्‍थानों की वेबसाइटें सर्फ करिए, हर ओर एक ही शीर्षक दिखाई देगा जो चीख-चीख कर कह रहा है कि त्रेतायुग के बाद पहली बार अयोध्‍या में ऐसी भव्‍य दिवाली मनी है।

दैनिक जागरण और आजतक इस मामले में अव्‍वल जान पड़ते हैं।

जागरण के राष्‍ट्रीय संस्‍करण की लीड खबर है: ”अयोध्‍या में त्रेता जैसी दिवाली”।

आजतक ने हेडलाइन चलाई है: ”अयोध्‍या में त्रेता युग की दिवाली”।

अमर उजाला, नई दुनिया, पत्रिका, न्‍यूज़18 जैसे सभी संस्‍थान ऐसी ही हेडलाइन चला चुके हैं।

 



 


 


दि हिंदू के पत्रकार उमर राशिद अपनी फेसबुक पोस्‍ट में एक दिलचस्‍प सवाल करते हैं कि अगर सारा मीडिया यह कह रहा है कि त्रेतायुग में भगवान राम की वापसी के बाद इस बार योगी के राज में सबसे भव्‍य दिवाली मनाई गई है, तो क्‍या त्रेतायुग के अखबारों की कटिंग किसी के पास है जो इस बात को साबित कर पाए?

बात मज़ाक में कही गई है लेकिन पूरे मीडिया में बैठे पत्रकारों के भीतर जमे पौराणिक अंधविश्‍वास की परतें उधाड़ कर रख देती है। सवाल उठता है कि आखिर सारे मीडिया संस्‍थानों की हेडलाइन एक जैसी क्‍यों है। क्‍या यह कोई सरकारी विज्ञप्ति से उठाया गया माल है? चाहे जो हो, त्रेतायुग जैसी एक कपोल-कल्पित धारणा को इककीसवीं सदी में पाठकों को पढ़वाना किसी जघन्‍य अपराध से कम है क्‍या।

अमर उजाला एक कदम आगे जाकर अपने फ़ैज़ाबाद के संस्‍करण में पहले पन्‍ने पर एक सिंगल कॉलम की खबर गुरुवार को छापता है जिसका शीर्षक है: ”अब साकार होगा रामराज का सपना”। ख़बर के भीतर बताया गया है कि यह उद्धरण योगी आदित्‍यनाथ का है लेकिन शीर्षक में उनका हवाला नहीं है। ऐसा लगता है कि अखबार खुद ही रामराज की मुनादी कर रहा हो।

इस सिलसिले में योगी पर सवाल उठाते हुए वरिष्‍ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने प्रभात ख़बर में आज एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है ‘कलियुग में त्रेतायुग की बात।”

 

 


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