अर्थव्‍यवस्‍था की हालत इतनी पतली है कि घर के बरतन बेचने की नौबत आ चुकी है

गिरीश मालवीय गिरीश मालवीय
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अर्थव्यवस्था की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि मोदी सरकार को एक लाख करोड़ नहीं, दो लाख करोड़ नहीं बल्कि तीन लाख करोड़ रुपये की तुरंत ज़रूरत आन पड़ी है। इसके लिए घर के बर्तन भांडे बेचने की नौबत आ गयी है।

मोदी सरकार इस वक्त ताबड़तोड़ ढंग से ट्रांसमिशन लाइनों, टेलिकॉम टावरों, गैस पाइपलाइनों, हवाई अड्डों और भूखंडों सहित सरकारी कंपनियों के कई ऐसेट्स बेचने या लीज़ पर देने की तैयारी कर रही है।

पावरग्रिड की इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन लाइनों, बीएसएनएल और एमटीएनएल के टावरों, गेल इंडिया लिमिटेड की पाइपलाइनों, कुछ शहरों में हवाई अड्डों और कुछ कंपनियों की ज़मीन की लिस्ट सरकारी अधिकारी बना रहे हैं। इन ऐसेट्स के मॉनेटाइजेशन की बात की जा रही है।

अधिकारी बता रहे हैं कि ‘बीएसएनएल और एमटीएनएल के टावरों को लीज़ पर दिया जा सकता है और कुछ मामलों में उन्हें बेचा भी जा सकता है।’ इनका कहना है कि गेल के पाइपलाइन बिजनेस को पैरंट कंपनी से अलग किया जा सकता है और उसे लॉन्ग टर्म लीज़ पर दिया जा सकता है या पूरी तरह बेचा जा सकता है।

बीएसएनएल और एमटीएनएल ने प्राइवेट टेलिकॉम कंपनियों को पहले ही क्रमश: 13,051 और 392 मोबाइल टावर साइट्स किराये पर दे दिए हैं। पावरग्रिड के पास करीब 1,45,400 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन लाइनें हैं। गेल लिमिटेड के पास देश में नैचुरल गैस की 11,500 किलोमीटर से लंबी पाइपलाइनें हैं। उसे भी लीज़ पर देने या बेचने की बात हो रही है।

लैंड ऐसेट्स को रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट रूट से मॉनेटाइज़ किया जा सकता है। सरकार ने पब्लिक सेक्टर की कंपनियों की रीस्ट्रक्चरिंग के बड़े प्लान पर काम शुरू कर दिया है। इसके तहत गेल के मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन बिजनेस को अलग-अलग किया जाएगा और उसके बाद दोनों में से एक को बेचा जाएगा। इसके साथ एनटीपीसी, एसजेवीएन और एनएचपीसी के मर्जर यानी मिलाने की भी योजना है।

सरकार ने वित्त वर्ष 2020 में विनिवेश से 90 हजार करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा है लेकिन अब उसे ओर भी ज्यादा रकम की आवश्यकता पड़ रही है। इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है। अब मुनाफा कमाने वाली सरकारी कंपनियों के निजीकरण पर विचार किया जा रहा है, हालांकि एयर इंडिया सहित 24 कंपनियों के बारे में मंजूरी दिए जाने के बावजूद अभी तक किसी भी CPSE को प्राइवेट सेक्टर के हाथ बेचा नहीं जा सका है।

इससे पहले घाटे में चल रहे सेंट्रल पब्लिक सेक्टर एंटरप्राइजेज (CPSE) को ही विनिवेश करने की नीति रही है।

अब यह साफ साफ दिख रहा है कि आने वाले सालो में मोदी सरकार राष्ट्रीय संपत्ति माने जाने वाली बड़ी-बड़ी कंपनियों को बेच कर अपना खर्च चलाने की तैयारी कर रही है। इस बात से कोई मतलब नही रह गया है कि वे कंपनियां घाटे में हैं या मुनाफे में।


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