लोन माफ़ी और लॉकडाउन भत्ते की मांग को लेकर भाकपा माले का प्रदर्शन

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छोटे लोन की माफ़ी और 10 हजार रुपये लॉकडाउन भत्ते की मांग को लेकर भाकपा माले, ऐपवा और अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा (खेग्रामस) ने बिहार में जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। पटना में समाहरणालय पर प्रदर्शन किया गया। पटना के भाकपा-माले विधायक दल कार्यालय से हजारों की संख्या में दलित-गरीबों-महिलाओं का मार्च निकला, जिसका नेतृत्व भाकपा माले पॉलितब्यूरो सदस्य व खेग्रांमस के महासचिव धीरेन्द्र झा के अलावा ऐपवा की महसचिव मीना तिवारी, आइसा के महासचिव संदीप सौरभ, सरोज चौबे, शशि यादव कर रहे थे।

पटना के अलावा सिवान, दरभंगा, समस्तीपुर, जहानाबाद, आरा आदि कई केंद्रों पर भी हजारों की तादाद में ग्रामीण महिलाएं सड़क पर उतरीं और माइक्रोफायनेंस कम्पनियों द्वारा छोटे कर्जों की जबरन वसूली पर रोक लगाने की मांग की।

प्रदर्शन के दौरान ग्रुप लोन पर ब्याज दर आधा करो, ब्याज पर ब्याज वसूलना बन्द करो; स्वंय सहायता समूह-जीविका समूह से जुड़ी महिलाओ के सभी लोन माफ़ करो, पटना-दिल्ली खोलो कान, कर्ज माफी का करो ऐलान; पूंजीपतियों को लाखों-करोड़ों की लोन माफी, तो महिलाओं की लोन माफी क्यों नहीं आदि नारे लगा रहे थे।

इस मौके पर हुई सभा को संबोधित करते हुए भाकपा माले नेता धीरेंद्र झा ने कहा कि कोरोना महामारी और लम्बी अवधि वाले लॉकडाउन के कारण आज गांव के दलित, गरीब और मजदूरों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गई है। स्वयं सहायता समूह-जीविका समूह को राहत देने की बजाय उनसे कर्ज की किश्त वसूली जा रही है, यहां तक कि उनके जानवर खोल लिए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कॉरपोरेट को छूट पर छूट दी जा रही है। इसके खिलाफ आज जनता में मोदी व नीतीश सरकार के खिलाफ गहरा आक्रोश है। बिहार की जनता बिहार की जनविरोधी नीतीश सरकार को चुनाव में सबक सिखाएगी।

Posted by CPIML Liberation, Bihar on Tuesday, September 15, 2020

ऐपवा महासचिव मीना तिवारी ने कहा कि आज भूख और बेकारी हर जगह पसरी हुई है। नकदी का भारी संकट है क्योंकि 5-6 महीने से कामधंधा बन्द है। बाहर से हर परिवार में मासिक जो आमदनी होती थी, वो सारे रास्ते बंद हैं। भुखमरी-अद्धभुखमरी जैसी स्थिति है। प्रधानमंत्री के द्वारा जो रोजगार देने की घोषणा हुई, उसका अता-पता नहीं है। और दाल तो रास्ते में गल गयी। गरीबों के बच्चे की पढ़ाई 5 महीने से बन्द है। बिजली बिल का करंट अलग से लग रहा है! आमदनी कुछ है नहीं, तो महिलाएं ग्रुप लोन की किस्तें कहां से चुकायेंगी?

आइसा के महासचिव संदीप सौरभ ने कहा कि अभी भी गांव में 15-20 प्रतिशत परिवारों के पास राशनकार्ड नहीं है और जिनके भी नया राशन कार्ड बना है, उनके सभी सदस्यों का नाम राशनकार्ड में नही है। इसी परेशानी और तंगहाली के बीच बाढ़ ने पूरे उत्तर बिहार को तबाह कर दिया है। हजारों परिवार महीनोंसे परिवार और माल मवेशियों के साथ सड़कों-तटबंधों पर शरण लिए हुए हैं। लोगों को कई दिनों तक भूखे-अधभूखे रहना पड़ रहा है। नाव और पॉलिथीन की व्यवस्था भी सरकार नहीं कर पायी है।

शशि यादव ने कहा कि जनसमुदाय में व्यापक आक्रोश है। महिलाओं, गांव-गरीबों के जीवन-जीविका से जुड़े सवालों को लेकर अपेक्षित कदम उठाने के हम यहाँ आये हैं।

अन्य प्रमुख मांगें

1- प्रवासी मजदूरों समेत सभी मजदूरों को 10 हजार रुपये कोरोना लॉकडाउन भत्ता दिया जाए!

2- स्वयं सहायता समूह-जीविका समूह सहित केसीसी व अन्य छोटे लोन माफ किया जाए!

3- सभी गरीबों-मजदूरों के लिये राशन-रोजगार का प्रबंध किया जाए!

4- मनरेगा में सभी मजदूरों को 200 दिन काम और 500 रुपये दैनिक मजदूरी की गारंटी की जाए!

5- दलित-गरीब विरोधी नई शिक्षा नीति 2020 वापस ली जाए!

6- सभी बाढ़ प्रभावित परिवारों को 25000 रुपये का मुआवजा दिया जाए!

7- मनरेगा को सभी मौसम की योजना बनाई जाए और इसे प्रत्यक्ष कृषि कार्य से जोड़ा जाए!

8- छूटे-बचे सभी गरीब परिवारों को राशन कार्ड दिया जाए!

9- सभी दलित-गरीब छात्रों को कोरोना काल में पढ़ाई के लिये स्मार्ट मोबाइल दिया जाए!