प्रधानमंत्री के 24 मार्च 2020 को दिए संदेश के बाद 25 मार्च 2020 से देश में लॉकडाउन शुरू हो गया । कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए ये लॉकडाउन किया गया था लेकिन ये लॉकडाउन कुछ महिलाओं के लिए कैद के बराबर हो गया है तो वहीँ भारत के हजारों बच्चों के लिए भी भयावह साबित हो रहा है । जिन घरों की दीवारों को बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता है वही घर बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं । घरों के साथ ही बच्चों के आश्रय गृहों से भी बच्चों के साथ होने वाले शोषण की घटनाएँ सामने आती रहती हैं। इस लॉकडाउन के दौरान बच्चे अपने उत्पीड़कों के साथ रहने को मजबूर हैं और फिलहाल उनको इससे निजात का कोई रास्ता नहीं दिखता।
अधिकतर टीवी मीडिया इन खबरों पर कोई प्राइम टाइम नहीं दिखाता
मीडिया का बड़ा हिस्सा कोरोना महामारी के समय भी हिंदू-मुस्लिम करने से नहीं चूक रहा है । देश को बाँटने वाले जहर को लगातार चैनलों पर परोसा जा रहा है । साम्प्रदायिकता की आग में देश को झुलसा देने वाले न्यूज़ चैनल बच्चों की चीख नहीं सुन पा रहे हैं । उन पर हो रही हिंसा और उनके उत्पीड़न का कोई कार्यक्रम नहीं दिखा पा रहे हैं । कुछ महिला पत्रकार भी कोरोना वायरस को हिंदू-मुस्लिम एंगल देकर शोर मचा रही हैं लेकिन उन तक भी महिलाओं और बच्चों की आवाज़ नहीं पहुँच रही है । एक तरफ़ पत्रकार अपने एकांगी दृष्टिकोण की वजह से मुस्लिमों के मदरसों और मस्जिदों में स्टिंग कर रहे हैं तो वहीँ दूसरी तरफ़ देश की ताली और थाली बजाने वाली जनता के बीच कुछ लोग ऐसे भी हैं जो लॉकडाउन की अवधि में महिलाओं और बच्चों का उत्पीड़न करने का मौका पा गए हैं । उनकी कोई सूचना न्यूज़ रूम से टीवी स्क्रीन तक नहीं पहुँच रही है ।
20 मार्च से 31 मार्च के बीच कुल 3.7 लाख फ़ोन कॉल में बच्चों के ऊपर हिंसा और उत्पीड़न से जुड़े क़रीब 92000 फ़ोन थे
चाइल्डलाइन इंडिया 1098 की उपनिदेशक हरलीन वालिया के मुताबिक 20 मार्च से 31 मार्च 2020 तक चाइल्डलाइन हेल्पलाइन के नंबर 1098 पर 3.7 लाख फ़ोन कॉल आई हैं । जिसमें से 92000 फ़ोन कॉल बच्चों के साथ हिंसा और उत्पीड़न से जुड़े हैं । उन्होंने ये भी बताया कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद आने वाले फ़ोन कॉल में 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी दिखाई दी है । बाल संरक्षण इकाइयों के लिए आयोजित एक कार्यशाला के दौरान उन्होंने ये आंकड़े जारी किये । इस कार्यशाला में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया था । कार्यशाला का आयोजन राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान बच्चों में तनाव कम करने के तरीकों पर चर्चा करने के लिए था ।
कुल फ़ोन कॉल में बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य के बारे में 11 प्रतिशत, बाल श्रम से जुड़ी शिकायतों के बारे में आठ प्रतिशत, लापता और घर से भागे बच्चों के बारे में आठ प्रतिशत और बेघर बच्चों से जुड़ी 5 प्रतिशत कॉल्स आई हैं ।
कोरोना संक्रमण से बचने के लिए ही बाहर नहीं निकलना था लेकिन घरों में हो रहे उत्पीड़न से कौन बचाएगा ?
कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते लोगों को घरों में रहने के ही निर्देश हैं, जिसके लिए हम सभी को मानसिक रूप से भी मजबूत होना होगा लेकिन लॉकडाउन के दौरान बच्चों के साथ हो रही हिंसा और उत्पीड़न उनके बचपन को एक भयानक स्वप्न बना देगी । जिसके दीर्घकालिक परिणाम भयावह होंगे । हम समाज के तौर पर लगातार नाकाम हो रहे हैं । वैसे ही हमारे देश में घरेलू हिंसा के साथ-साथ बच्चों के साथ मानसिक व शारीरिक उत्पीड़न की जड़े बहुत गहराई जा चुकी हैं । तमाम देश कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने में लगे हैं उम्मीद है कि इन बच्चों को भी इनके साथ हो रही हिंसा और उत्पीड़न से बचाने की कोई वैक्सीन कभी मिल जाए ।
सिर्फ़ भारत ही नहीं अन्य कई देशों में भी पर बच्चों के होने वाले यौन शोषण, हिंसा और चाइल्ड पोर्नोग्राफी जैसे अपराधों में इजाफ़ा देखने को मिला है
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने भी बच्चों के साथ हो रहे उत्पीड़न और हिंसा को लेकर चेताया है ।
नेशनल पब्लिक रेडियो पर पब्लिश एक खबर में इंटरनेशनल जस्टिस मिशन (फिलीपींस) के फील्ड ऑफिस डायरेक्टर जॉन टैंगो के अनुसार यूके की राष्ट्रीय अपराध एजेंसी और स्वीडिश पुलिस के साथ ही कई अन्य संस्थानों ने कोरोना वायरस के बीच चल रहे लॉकडाउन में ऑनलाइन बाल यौन शोषण में बढ़ोतरी देखी है।