कोरोना हमारे पूरे जीवन और स्वस्थ में एक बड़ा बदलाव लेकर आया है। कोरोना के बहुत से मरीज़ ऐसे हैं जो ठीक होने के बाद भी लगातार स्वास्थ्य को लेकर तकलीफे उठा रहे हैं। कोरोनाकाल में सांसों पर संकट बढ़ा है। यह एक मुख्य परेशानी बन कर सामने आया है। संक्रमण से उबरने के बाद भी कई मरीज़ों के फेफड़े पहले की तरह स्वस्थ नहीं रह पा रहे हैं। उन्हे सांस लेने में दिक्कत जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ठीक हुए मरीज़ों को पल्मोनरी यानी श्वसन रोग तंत्र (respiratory system) से जुड़े विशेषज्ञों की देखरेख में दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता होती है। नई दिल्ली स्थित देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में यह काफी जटिल हो गया है। यहां पूरा पल्मोनरी विभाग केवल तीन स्थायी और दो अस्थायी डॉक्टरों के दम पर चल रहा है। इससे काफी मुश्किलें पैदा हो रही हैं।
मरीज़ों को तारीख मिलना भी मुश्किल…
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,पल्मोनरी विभाग के डॉक्टर डेढ़ साल से क्षमता से अधिक मरीजों का उपचार कर रहे हैं। मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण यहां के हालात कुछ ऐसे है कि उन्हें तारीख मिलना भी मुश्किल हो गई है। मालूम हों कि एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया स्वयं पल्मोनरी विभाग के प्रमुख रह चुके हैं। तब भी यह स्थिति है, डॉ. रणदीप कोरोना महामारी को लेकर देशभर में लगातार डॉक्टरों का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
एम्स के डॉक्टर सोशल मीडिया पर कर रहे शिकायत…
बता दें कि सोशल मीडिया पर एम्स के डॉक्टर खुद ही संस्थान की कमियों की शिकायत कर रहे हैं। मरीज़ों के लिए वह स्वास्थ्य मंत्रालय और PMO को टैग कर रहे हैं। डॉ. विजय गुर्जर ने सोशल मीडिया पर एक मरीज़ का मेडिकल कार्ड पोस्ट करते हुए लिखा कि पल्मोनरी विभाग में पर्याप्त डॉक्टर नहीं होने के कारण मरीज़ों के कार्ड पर एनडीए (No Date available) लिखा जा रहा है। गरीब मरीज़ों को इलाज के लिए तारीख नहीं मिल रही है। जबकि एम्स में कोरोना और पोस्ट कोविड के चलते कई वीआईपी इलाज करा रहे हैं। इससे डॉक्टरों की कमी और बढ़ गई है।
डाॅक्टर कर रहे वीआईपी और सोर्सफुल मरीज़ों का इलाज…
अब अगर सरकारी अस्पतालों में भी बड़ी हस्तियों (VIP) का कब्जा होगा तो, गरीब अपना इलाज कहा कराएंगे? यह सवाल बेहद अहम है। हालांकि इस मामले पर एम्स प्रबंधन ने कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि ज्यादातर मरीज़ों का इलाज रेजिडेंट डॉक्टरों के भरोसे ही चल रहा हैै। ओपीडी में आने वाले 80 से 90% मरीज़ों का इलाज रेजिडेंट डॉक्टर कर रहे हैं। सीनियर और फैकल्टी डॉक्टर वीआईपी और सोर्सफुल मरीज़ों का इलाज कर रहे हैं।