झारखंड में भूख व गरीबी से हो रही मौत जारी है। 6 मार्च 2020 को जब झारखंड विधानसभा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन अपने मंत्रियों और महागठबंधन के विधायकों के साथ होली खेलने में व्यस्त थे, तो दूसरी तरफ झारखंड के बोकारो जिला के कसमार प्रखंड के सिंहपुर पंचायत के करमा (शंकरडीह) निवासी 42 वर्षीय भूखल घासी की मौत हो गई। दैनिक प्रभात खबर में यह खबर छपी है।
प्रकाशित खबर के मुताबिक ग्रामीणों व उनकी पत्नी का कहना है कि चार दिनों से उसके घर में चूल्हा नहीं जला था। वह काफी गरीब था, लेकिन किसी भी सरकारी योजना का लाभ उसे नहीं मिलता था। न तो उसके पास राशन कार्ड था, न आयुष्मान कार्ड और न ही उसे इंदिरा आवास का लाभ मिला था, लेकिन उसका नाम बीपीएल सूची में शामिल जरूर था, जिसकी संख्या 7449 है। भूखल घासी के चाचा मनबोध घासी का कहना है कि अगस्त 2019 में ही इन्होंने राशन कार्ड के लिए आवेदन दिया था, लेकिन वह आज तक नहीं बन पाया है।
भूखल घासी का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था और वह मिट्टी काटकर अपना परिवार चलाता था, लेकिन एक साल पहले से बीमार होने (शरीर में सूजन) के कारण काम नहीं कर पा रहा था। इस कारण इनका बेटा 14 वर्षीय नितेश घासी पेटरवार के एक होटल में कप-प्लेट धोकर परिवार का गुजारा करता था। इनकी पत्नी रेखा देवी का कहना है कि चार दिन से इनके घर में अनाज का एक दाना भी नहीं है, पड़ोसियों से कुछ खाना मिला था, उसी को खाकर सब जिन्दा हैं। परिवार में पत्नी रेखा देवी के अलावा तीन पुत्री और दो पुत्र हैं।
भूखल की मौत के बाद ग्रामीणों ने उच्चस्तरीय जांच की मांग करते हुए शव को जलाने से रोक दिया है। भूख व गरीबी से हुई मौत पर कसमार के बीडीओ का कहना है कि भूखल एक साल से बीमार था और वेल्लोर से उसका इलाज चल रहा था, जबकि ग्रामीणों व उनके परिजनों का कहना है कि वह इतना गरीब था कि इलाज के लिए कभी बोकारो भी नहीं जा पाया था। वेल्लोर में इलाज करना तो वह सपने में भी नहीं सोच सकता था।
झारखंड की पिछली भाजपा सरकार में भी भूख व गरीबी से कई मौतें हुई थीं। प्रत्येक बार सरकार और प्रशासनिक अधिकारी इसे झूठ बताते थे। आज झारखंड में झामुमो के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार है और इसमें भी प्रशासनिक अधिकारी भूख व गरीबी से हुई मौत को झूठ बता रहे हैं। सरकार बदल गई, लेकिन जनता के प्रति प्रशासनिक अधिकारियों की स्थिति जस की तस है।