अगर आप इस बात से परेशान हैं कि फ़ेसबुक जैसे अभिव्यक्ति के निष्पक्ष मंच पर तमाम दंगाई विचारों वाले अकाउंट क्यों फल-फूल रहे हैं और मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाने वाले बीस हज़ार फालोवर वाले अकाउंट की पहुँच दस-बीस लोगों तक क्यों हो जाती है तो अब एक और झटका झेलने के लिए तैयार हो जाइये। अमेरिका के मशहूर अख़बार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने रहस्योद्घाटन किया है कि फे़सबुक की इंडिया पालिसी हेड आँखी दास ने बाक़ायदा इसके लिए लिए लाबींग की है। उन्होंने तमाम हेट स्पीच पर जानबूझकर कोई कार्रवाई इसलिए नहीं होने दी क्योंकि इससे भारत में कंपनी के कारोबारी संभावनओं पर उल्टा असर पड़ सकता है। कांग्रेस ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए जेपीसी से जाँच कराने की माँग की है। राहुल गाँधी ने आरोप लगाया है कि फेसबुक और व्हाट्सऐप भारत में संघ और बीजेपी से नियंत्रित हो रहे हैं।
पर क्या मसला इतना ही है…? शायद नहीं…क्योंकि आँखी दास की बहन रश्मि दास जेएनयू में आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी की अध्यक्ष रही हैं और परिवार के संघ से रिश्ते बहुत घनिष्ठ रहे हैं। हेट स्पीच के खिलाफ फेसबुक की स्पष्ट नीति है। वह ऐसे तमाम अकाउंट को वह सस्पेंड कर देता है। फेक न्यूज़ फैलाने वालों पर भी रोक लगाता है। लेकिन यह आश्चर्य जनक है कि भारत के कट्टर हिंदुत्ववाद का प्रचार करने वाले, मुसलमानों के खिलाफ़ आग उगलने वालों पर फेसबुक जल्द कार्रवाी नहीं करता। न्यूली पनेल और जेफ़ हार्फिज़ की वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपी रिपोर्ट की मानें तो इसके पीछे आँखी दास हैं जो बीजपी के पक्ष में फेसबुक के अंदर सक्रिय हैं। वे मोदी की टीम मेंबर की तरह काम करती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के साथ आँखी दास (नीली साड़ी में)
अख़बार के मुताबिक आँखी दास ने, मुस्लिमों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने को प्ररित करने वाली तेलंगाना के बीजेपी विधायक टी.राजा सिंह की एक पोस्ट पर हेट स्पीच रूल लगाने से इंकार कर दिया। उन्होंने फेसबुक नियमों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने जा रहे फेसबुक के अधिकारियों को बताया कि भारत में कारोबार मुश्किल हो जाएगा। फेसबुक की ओर से उन पर भारत में सरकार से लाबींग करने की भी जिम्मेदारी है।
यही नहीं 2019 चुनाव के पहले कांग्रेस समर्थक माने जाने वाले तमाम फर्जी अकाउंट और पेज हटा दिये गये थे लेकिन बीजेपी समर्थक फर्जी पेज बने रहे। आँखीदास ने 2017 मं नरेंद्र मोदी के पक्ष में एक लेख भी लिखा था। फेसबुक के आधिकारिक प्रवक्ता एंडी स्टोन ने माना है कि आँखी ने राजनीतिक फायदे-नुकसान की बात कही थी, बीजेपी समर्थकों की हेट स्पीच पर कार्रवाई को लेकर।
ज़ाहिर है, फ़ेसबुक की निष्पक्षता का दावा इससे तार-तार हो रहा है। फ़ेसबुक को इंटरमीडियरी की हैसियत प्राप्त है, यानी फेसबुक पर छपने वाली चीजों के लिए उसे जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। लेकिन आंखी दास की हरक़तों के सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि वह संपादकीय विवेक का भी इस्तेमाल करता है। इस लिहाज से उस पर भी वैसी ही जिम्मेदारी बनती है जैसे कि किसी अख़बार के संपादक पर बनती है।
बहरहाल, अख़बार के इस रहस्योद्घाटन के बाद कांग्रेस भड़की हुई है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने वाल स्ट्रीट जर्नल की क्लिपिंग को ट्वीट करते हुए आरोप लगाया है कि भारत में फेसबुक, व्हाट्सऐप को आरएसएस और बीजेपी नियंत्रित कर रही है।
भाजपा-RSS भारत में फेसबुक और व्हाट्सएप का नियंत्रण करती हैं।
इस माध्यम से ये झूठी खबरें व नफ़रत फैलाकर वोटरों को फुसलाते हैं।
आख़िरकार, अमेरिकी मीडिया ने फेसबुक का सच सामने लाया है। pic.twitter.com/PAT6zRamEb
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 16, 2020
आरटीआई एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने ट्विटर पर बीजेपी और फेसबुक के इस गठजोड़ पर कई ट्वीट्स किये हैं।
Big reveal: The connections between Facebook’s Policy Head Ankhi Das & the BJP
Facebook’s Ankhi Das has been accused of allowing BJP’s hate speech against FB’s own guidelines. A shocking article in WSJ yesterday disclosed this.
But wait – here’s how she’s linked to the BJP
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— Saket Gokhale (@SaketGokhale) August 15, 2020
कुल मिलाकर फेसबुक की निष्पक्षता पर इस रहस्योद्घाटन से बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। कांग्रेस इस मुद्दे पर काफ़ी सक्रिय हो गयी है। पार्टी ने एक इस मामले में संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग की है। पार्टी ने यह भी पूछा है कि फेसबुक के वरिष्ठ अधिकारियों को जिस कारोबारी संभावना पर उल्टा प्रभाव पड़ने का डर दिखाकर बीजेपी समर्थकों की हेट स्पीच पर कार्रवाई से रोका गया, वह क्या है? सुना गया है कि फेसबुक भी पे वाल का लाइसेंस मांग रहा है। तो क्या सरकार और फेसबुक के बीच कुछ डील हो रही है?
जो भी हो, लोकतंत्र के प्रहरी बनकर दुनिया भर में खास जगह बनाने वाले फेसबुक की साख अब दाँव पर है। कंपनी को खुद आगे आकर लोगों को भरोसा देना चाहिए और रूल तोड़ने वालों पर कार्रवाई करनी चाहिए। करोड़ों लोगों का विश्वास तोड़ना उसके मूल संकल्पों को हास्यास्पद बना रहा है।