‘लोकतंत्र को पुलिस स्टेट न बनाएं’ – जिग्नेश मेवानी मामले में असम की अदालत की टिप्पणी

दिवाकर पाल दिवाकर पाल
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गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी को ज़मानत देते हुए असम के बारपेटा स्थित लोकल कोर्ट ने असम पुलिस को फटकार लगाते हुए, उसकी नीयत पर अपने फैसले में ऑन रेकॉर्ड सवाल उठा दिया है। अदालत ने कहा कि उनपर महिला कोंस्टेबल द्वारा लगाया छेड़छाड़ एवं मारपीट का आरोप प्रथम दृष्टया ही कृत्रिम और उन्हें जबरन लम्बे समय तक हिरासत में रखने की साज़िश के तहत प्रतीत होता है।

मामला क्या था?

ज्ञात हो कि 18 अप्रैल को मेवाणी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ़ ट्वीट करने के मामले में  असम के भाजपा नेता अरूप कुमार डे ने प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिस पर कार्रवाई करते हुए असम पुलिस ने मेवाणी को गुजरात से 20 अप्रैल को गिरफ़्तार किया था। इस मामले में उन्हें 25 अप्रैल, 2022 को असम की ही एक अन्य अदालत (कोकराझार) से ज़मानत मिल गई थी। लेकिन इसके बाद 21 अप्रैल को दर्ज प्राथमिकी में असम पुलिस की ही एक महिला कोंस्टेबल ने आरोप लगाया था कि गुवाहाटी हवाई अड्डे से कोकराझार लाते वक्त मेवाणी ने उनके साथ अभद्र भाषा का प्रयोग एवं अनुचित व्यवहार किया था। 25 अप्रैल को मिली ज़मानत के तुरंत बाद ही मेवाणी को दोबारा इस दूसरे मामले में गिरफ़्तार कर लिया गया था।

अदालत की तीख़ी टिप्पणी

बारपेटा की स्थानीय अदालत ने पुलिस को फटकार लगाते हुए यह साफ़-साफ़ शब्दों में कहा कि महिला पुलिसकर्मी का बयान उनके एफ़आईआर के अनुकूल नहीं है, और इस कारण इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। ऐसा लगता है, कि यह मामला आरोपी को लम्बे समय तक हिरासत में रखने की साज़िश है।

फाइल फोटो

पुलिस के इस प्रकार के व्यवहार पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा – अन्यथा, हमारा राज्य एक पुलिस स्टेट बन जाएगा जो समाज के लिए अच्छा नहीं।  दुनिया भर में जनता को अधिकतम मानवीय अधिकार देने की बातें चल रही हैं, और यहाँ एक बमुश्किल खड़ी लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुलिस स्टेट बनने देना सोच के परे है -और यदि असम पुलिस ऐसा सोचती है, तो यह सोच विकृत है। अदालत ने असम हाई कोर्ट के मुख्या न्यायाधीश से निवेदन भी किया कि राज्य में बढ़ रहे पुलिस अत्याचार के ख़िलाफ़ जनहित याचिका ली जाए। उन्होंने, पुलिस की कार्रवाई में ज़रूरी सुधारों, मसलन बॉडी-कैमरा के इस्तेमाल, और विडीओ रिकॉर्डिंग पर भी ज़ोर दिया ताकि इस तरह के अनुचित और कृत्रिम मामले ना बनाए जा सकें।”

रिहाई के बाद क्या बोले जिग्नेश?

बहरहाल इस फैसले से जिग्नेश मेवानी का जोश भी बढ़ा दिखा। रिहाई के बाद उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में केंद्र सरकार, भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “भाजपा मेरा उत्पीड़न करना चाहती थी, लेकिन मुझे इसका अहसास भी नहीं हुआ बल्कि देश को संदेश मिल गया कि भाजपा मुझ पर, संविधान में यक़ीन रखने के कारण निशाना साध रही है।”

फाइल फोटो

बहरहाल, जिग्नेश मेवाणी को एक हज़ार रुपए की व्यक्तिगत बॉंड पर ज़मानत दे दी गई है, पर सवाल यह रह जाता है कि क्या पुलिस सत्तारूढ़ दल की कठपुतली बनकर रहेगी, और विपक्ष के नेताओं को कभी भी पुलिस की कार्रवाई का शिकार बनना पड़ेगा? इस मामले में तो अदालत ने फ़ैसला मेवाणी के पक्ष में दिया है, पर जब एक विधायक को इस प्रकार यातना का शिकार बनना पड़े, तो आम इंसान अपनी आवाज़ कैसे उठा सकेगा? पुलिस का ऐसा पहरा हर तरह से लोकतंत्र पर सीधा वार है।