गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को धर्मांतरण विरोधी कानून की धारा 5 पर रोक के संबंध में हाल के अपने फैसले में संशोधन के लिए राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी है। इसके साथ ही धर्मांतरणरोधी कानून पर अपने आदेश में बदलाव करने से इनकार कर दिया है।
बता दें की, गुजरात हाईकोर्ट ने इससे पहले दिए अपने आदेश में गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021 के धारा पांच पर रोक लगा दी थी। जिसके बाद सरकार द्वारा अदालत के फैसले में संशोधन के लिए अर्जी दी गई थी, लेकिन गुरुवार की सुनवाई में अदालत ने अपने फैसले को बदलने से इनकार कर दिया। इसके बाद गुरुवार को ही कानून मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने कहा कि लव जिहाद कानून “हमारी बेटियों के साथ खिलवाड़ करने वाली जिहादी ताकतों को नष्ट करने के लिए हथियार के रूप में लाया गया था” इसी के साथ कानून मंत्री ने कहा कि गुजरात सरकार हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
क्या है धर्मांतरण विरोधी कानून?
गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम 2021 के सेक्शन पांच के अनुसार, जब कोई अपना धर्म परिवर्तन करे तो उसे इसकी जानकारी जिलाधिकारी को निर्धारित प्रारूप में देनी होगी। इसी के साथ अगर कोई अपना धर्म परिवर्तन करने किसी धर्मगुरु के पास आता है तो उस धर्मगुरु को व्यक्ति का धर्म परिवर्तन कराने से पहले जिला मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी।
कानून के खिलाफ दायर याचिका में कहा गया..
इस कानून के खिलाफ जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद गुजरात चैप्टर ने पिछले महीने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर धारा 5 समेत विभिन्न प्रावधानों को संविधान के खिलाफ बताया था। अब अदालत के फैसले के विरुद्ध कानून मंत्री प्रदीप सिंह जडेजा ने कहा की धारा 5 धर्मांतरण विरोधी कानून का मूल है और सरकार द्वारा हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
जडेजा का कहना है की यह कानून कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं है। यह सिर्फ लड़कियों की सुरक्षा के लिए राज्य सरकार द्वारा एक सिस्टम बनाने का नेक प्रयास है। लेकिन कुछ वरोधियों ने इसकी गलत व्याख्या की और हाईकोर्ट चले गए। हम हिंदुओं समेत सभी धर्मों की महिलाओं की रक्षा के लिए संकल्प के साथ आगे बढ़ रहे हैं। राज्य सरकार फर्जी हिंदू पहचान, प्रतीकों और प्रलोभनों को स्वीकार कर फर्जी शादियों को रोकने के नेक इरादे से गुजरात धर्म स्वतंत्रता कानून लायी है और सेक्शन 5 धर्मांतरण विरोधी कानून का मूल है।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा था..
आपको पता दें की हाईकोर्ट ने 19 अगस्त को दिए अपने आदेश में धर्मांतरण कानून की धारा पांच सहित कुल सात प्रावधानों के अनुपालन पर प्रतिबंध लगा दिया था। अदालत ने इस आदेश से पहले सुनवाई के दौरान कहा था की एक धर्म के व्यक्ति द्वारा दूसरे धर्म के व्यक्ति से बिना किसी जबरदस्ती, धोखे या लालच के विवाह को गैरकानूनी धर्मांतरण के लिए हुआ विवाह नहीं माना जा सकता।
गुरुवार की सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से गए सोलिसिटर जनरल वकील कमल त्रिवेदी ने मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति बीरेन वैष्णव की खंडपीठ से कहा कि गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की धारा पांच 2003 में बने मूल कानून में पहले से शामिल है। इसका विवाह के लिए होने वाले धर्म परिवर्तन से लेना-देना नहीं है। सोलिसिटर जनरल ने जजों को यह समझाने की कोशिश की कि धारा पांच पर रोक पूरे कानून के अमल पर ही रोक लगा देगी और कोई भी व्यक्ति जिलाधिकारी के पास धर्म परिवर्तन से पहले अनुमति लेने के लिए संपर्क नहीं करेगा।
अविवाहित को लेनी होगी अनुमति..
राज्य के सोलिसिटर जनरल कमल त्रिवेदी की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि हमें 19 अगस्त को हमारे द्वारा पारित आदेश में बदलाव करने की कोई वजह नज़र नहीं आ रही है। आप स्वयं आश्वस्त हैं कि न्यायालय ने सभी प्रकार के धर्म परिवर्तन की पूर्व अनुमति पर रोक लगा दी है, ऐसा नहीं है। अगर कोई अविवाहित व्यक्ति धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो उसे अनुमति लेनी होगी। हाईकोर्ट ने इस पर रोक नहीं लगाई है। अदालत ने सिर्फ विवाह के जरिए धर्म परिवर्तनों पर रोक लगाई है।