यूपी-बिहार को सांप्रदायिक आग में झोंकने चाहती है सामाजिक न्याय आंदोलन से डरी बीजेपी!



जाति जनगणना के ज़रिए सामाजिक न्याय आंदोलन का नया चरण शुरू होने के साथ ही 2024 के आम चुनाव को लेकर चिंतित बीजेपी ने सांप्रदायिकता की आग भड़काना शुरू कर दिया है। बिहार में सरकारी छुट्टियों और उत्तर प्रदेश में मांसाहार के सवाल को उसने राजनीतिक ध्रुवीकरण का ज़रिया बना लिया है और इस सिलसिले में उसे झूठ बोलने में भी कोई गुरेज़ नहीं है। उसकी एकमात्र कोशिश है कि कैसे वह मुसलमानों को निशाने पर लेकर वोटों का ध्रुवीकरण करे।

बीजेपी दक्षिण के राज्यो में पिट चुकी है। पाँच राज्यों के हालिया विधानसभा चुनाव में भी उसके लिए अच्छी खबर नहीं आ रही है। ऐसे में उसने यूपी और बिहार को खासतौर पर गरमाने का फैसला किया है। इन हिंदी भाषी राज्यों में 2019 में उसे खासी सफलता मिली थी। उसे डर है कि जाति जनगणना का सवाल या ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का राहुल गाँधी का नारा अगर काम कर गया तो वंचित और पिछड़ी जातियों की बड़ी तादाद उससे छिटक सकती है और उसे लोकसभा की कई सीटें गँवानी पड़ सकती हैं। ऐसे में इन राज्यों में वह सामाजिक न्याय के नैरिटिव को कमज़ोर करने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए मौके तलाश रही है।

बिहार में हाल ही में शिक्षा विभाग ने सामान्य स्कूलों और उर्दू स्कूलों के लिए अलग-अलग कैलेंडर जारी किये। दोनों कैलेंडरों में अलग-अलग छुट्टियों का प्रावधान है। कैलेंडर के मुताबिक गैर उर्दू स्कूलों में महाशिवरात्रि, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, जानकी नवमी की छुट्टी होगी, जबकि उर्दू स्कूलों में ये छुट्टियाँ नहीं होंगी। उर्दू स्कूलों में ईद की छुट्टी तीन दिनों की जबकि गैर उर्दू स्कूलों में एक दिन की छुट्टी की गई है। बकरीद पर उर्दू स्कूलों में तीन दिनों की जबकि गैर उर्दू स्कूलों में एक दिन की छुट्टी की गई है। उर्दू स्कूलों में रक्षाबंधन, तीज और जिउतिया की कोई छुट्टी नहीं होगी, जबकि गैर उर्दू स्कूलों में होगी। छठ पूजा पर दोनों कैलेंडर में तीन दिन की छुट्टी शामिल की गई है।

बीजेपी ने उर्दू कैलेंडर को प्रचारित करके यह झूठ बोलना शुरू कर दिया कि हिंदुओं के त्योहारों की छुट्टियाँ खत्म कर दी गयी हैं जबकि मुसलमानों के लिए छुट्टियाँ बढ़ा दी गयी हैं। बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने तो ‘गजवा-ए-हिंद का हिस्सा’ और ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ बिहार’ कहकर नीतीश सरकार की आलोचना की। उन्होंने ट्वीट कर कहा, ‘नीतीश और लालू सरकार ने स्कूलों में मुस्लिम पर्व की छुट्टी बढ़ाई, हिंदू त्योहारों में छुट्टी की ख़त्म।’

जबकि हकीकत ये है कि ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 220 दिनों तक पढ़ाई का प्रावधान है और 60 दिन अवकाश दिया जाता रहा है। पिछले 3 साल के दौरान इतनी ही छुट्टियां दी जा रही हैं। छुट्टियाँ न घटायी गयीं, न बढ़ायी गयीं। केवल समायोजन किया गया है। लेकिन बीजेपी के बड़े-बड़े नेता इसे नीतीश सरकार और इंडिया गठबंधन के हिंदू विरोधी चेहरे के रूप में पेश करने में जुट गये हैं। अफ़सोस कि कई टीवी चैनल भी इस झूठी खबर को हवा देने में जुटे रहे।

दूसरी ओर बीजेपी उत्तर प्रदेश में मांसाहार को मुद्दा बनाने में जुटी है। 2022 के विधानसभा चुनाव में यूपी के मुख्यमंत्री योगीआदित्यनाथ ने 80 और 20 फीसदी की लड़ाई बताकर सफलता पायी थी। ये यूपी में हिंदुओं और मुस्लिमों की आबादी का आंकड़ा है।  अब इसी का विस्तार हो रहा है। कुछ दिन पहले सरकार ने पहले ‘हलाल प्रमाणपत्र’ को अवैध ठहराकर ये बताने की कोशिश की कि जैसे हलाल मांस खाना कोई देशविरोधी काम है और अब बीजेपी कार्यकर्ता मांसाहार को हिंदू विरोधी बताने का अभियान चला रहे हैं। नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक यूपी में 55 फीसदी लोग मांख खाते हैं जिनमें हिंदूओं की तादाद भी कम नहीं है, लेकिन कई हिंदू त्योहारों पर मांस की बिक्री रोक दी जाती है।

इधर, एक और गंभीर घटन हुई है जो बताती है कि यूपी की गंगा-ज़मनी तहज़ीब को निशाना बनाने की किस कदर कोशिश हो रही है। डुमरियागंज की सपा विधायक सैयदा खातून को एक मंदिर में जाने को मुद्दा बनाते हुए मंदिर को गंगाजल से धोया गया। जबकि विधायक को मंदिर प्रबंधकों की ओर से आमंत्रित किया गया था। जनप्रतिनिधि किसी भी धर्म के हों, वह सभी धर्मों के पवित्रस्थानों पर जाते हैं, वहाँ के विकास में मदद करते हैं। लेकिन बीजेपी नेताओं ने कहा कि चूँकि सैयदा खातून मांसाहारी हैं इसलिए उनके आने से मंदिर अपवित्र हो गया।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या हिंदू मांस खाकर मंदिर नहीं जाते? हिंदू धर्म के कई संप्रदायों में बलि की परंपरा रही है। मिथिला से बंगाल तक मछली के बिना धार्मिक संस्कार तक संपन्न नहीं होते, लेकिन ऐसा लगता है कि योगी आदित्यनाथ के रामराज में हिंदू होने की शर्त शाकाहारी होना है। यह सब उस प्रदेश मे हो रहा है जहाँ बड़ी मुस्लिम नवाबों और बादशाहों की ओर से मंदिरों को बनवाने और दान देने की परंपरा रही है। राजधानी लखनऊ का सबसे प्रसिद्ध अलीगंज का हनुमान मंदिर भी नवाब शुजाउद्दौला की पत्नी आलिया बेगम ने बनवाया था। मंदिर के ऊपर चांद-तारा आज भी लगा है। वहीं अयोध्या की आलीशान हनुमानगढ़ी का निर्माण नवाब शुजाउद्दौला ने कराया था। नवाब वाजिद अली शाह ने बड़े मंगल पर भंडारे की परंपरा शुरू की थी जो आज भी धूमधाम से जारी है। रामलीलाओं में मुस्लिम पात्रों का होना सामान्य बात हुआ करती थी और देवाशरीफ समेत तमाम दरगाहों पर हिंदू और मुसलमान समान भाव से जाते रहे हैं। भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खँ की शहनाई से बनारस में मंदिर के कपाट खुलते थे और वहाँ के प्रसिद्ध संकटमोचन मंदिर में हर साल होने वाले संगीत समारोह में हर साल बड़े मुस्लिम कलाकारों को ससम्मान आमंत्रित किया जाता है।

यह मिली जुली संस्कृति बीजेपी की ध्रुवीकरण की राजनीति के आड़े आ रही है। जाहिर है, वह इस पर निशाना साथ रही है। वैसे हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों में मांसाहार की इजाजत है और बाकायदा बताया गया है कि कौन से जानवर का मांस खाया जा सकता है। मनुस्मृति कहती है- ‘खाने योग्य जानवरों का मांस खाना पाप नहीं है क्योंकि ब्रह्मा ने खाने वाले और खाने योग्य दोनों को बनाया है।’ मनुस्मृति मछली,हिरण, मृग, मुर्गी, बकरी, भेड़ और खरगोश के मांस को भोजन के रूप में मंजूरी देती है। तो क्या बीजेपी कोई नया हिंदू धर्म गढ़ रही है?

 

 


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