सोमवार 10 जून को आये कठुआ गैंगरेप मामले पर पठानकोट अदालत के फैसले में एक आरोपी विशाल को दोषमुक्त करने के मामले में जी न्यूज द्वारा प्रसारित एक CCTV फुटेज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. इसी आधार पर जी न्यूज कठुआ मामले पर की गई अपनी सम्पूर्ण कवरेज को पत्रकारिता का मानक सिद्ध करने में लगा हुआ है.
अपनी पीठ ठोंकते हुए इस बीच जी न्यूज खुद भूल जा रहा है कि ताल ठोंकने से लेकर DNA और स्पेशल रिपोर्ट तक जी न्यूज ने किस एक खास तरीके से इस मामले में एजेंडेबाज पत्रकारिता की है.
पहले उस मामले की बात करते हैं जिसके लिए कोर्ट ने जी न्यूज की कोर्ट ने तारीफ की है.
ये बात अप्रैल 2018 की है, जब जी न्यूज तमाम एजेंडाबाज न्यूज चैनलों और अखबारों के साथ मिलकर मामले का हिन्दू-मुस्लिम एंगल तलाशने में लगा था, बलात्कार के आरोपियों के समर्थन में आयोजित हुए तिरंगा मार्च से उपजे विवाद के बीच मामले को हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के रूप में परोसता जी न्यूज का DNA जारी था.
इसी बीच उसे एक ATM की CCTV फुटेज हाथ लगती है. CCTV फुटेज से साबित हो रहा था कि एक आरोपी विशाल जंगोत्रा वारदात के वक्त कठुआ की जगह मुजफ्फरनगर के मीरापुर में मौजूद था और वहां के एक एटीएम में पैसा निकाल रहा था.
ये CCTV फुटेज सही थी और इससे क्राइम ब्रांच द्वारा तैयार चार्जशीट की ये थ्योरी कि विशाल वारदात के वक्त कठुआ में मौजूद था, गलत साबित हो रही थी.
जी न्यूज की तरफ से होना क्या चाहिए था?
होना ये चाहिए था कि CCTV फुटेज को आधार बनाकर विवेक को आरोपी बनाने पर सवाल उठाया जाता. और ये जी न्यूज ने किया भी. इसकी वजह से विशाल आरोप मुक्त भी हुआ और इसके लिए जी न्यूज की तारीफ की जानी चाहिए.
लेकिन क्या जी न्यूज ने इतना ही प्रसारित किया था?
जी न्यूज इस एक CCTV फुटेज को लेकर खेल गया, वो दर्शकों को पूरा सच दिखाने के नाम पर चौबीसों घण्टे इसी CCTV फुटेज के हवाले से डिबेट शो आयोजित करने लगा.
एक सच के सहारे सैकड़ों झूठ पैदा करके परोस दिया गया.
चैनल देखकर ऐसा लगता था एक CCTV फुटेज के आधार पर जी न्यूज ये साबित करने में लगा है कि बाकी आरोपी भी निर्दोष हैं. वो तो हिन्दू होने के चलते उन्हें फंसाया जा रहा है.
दरअसल अपने प्रोग्राम्स के जरिए पूरी-पूरी चार्जशीट को ही गलत साबित करने की कोशिश की थी और इसके लिए एक फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट का भी सहारा लिया गया.
इससे पहले जी न्यूज के रिपोर्टर ने मंदिर के भीतर जाकर ग्राउंड रिपोर्ट की थी. वहां लोगों के हवाले से बातचीत करके और विजुअल के हवाले से ये गढ़ने की कोशिश की थी कि मंदिर परिसर में बलात्कार संभव ही नहीं है.
ग्राउंड रिपोर्टर ने मंदिर का चक्कर लगाकर ये दिखाने की कोशिश की कि यहां तो बच्ची को छुपा कर रख पाना ही सम्भव नहीं.
जी न्यूज की स्क्रीन पर इस तरह की लाइने लिखी जाती थीं-
– कठुआ के बहाने हिंदू आस्था पर ‘पत्थरबाजी’?
– हिन्दुओं को बदनाम करने के लिए मंदिर में रेप का झूठ?
– कोई बाप अपने बेटे और भांजे को बच्ची के रेप के लिए कैसे कह सकता है?
– जिस मंदिर में पूजा होती हो वहां लड़की को कैसे बंधक बनाकर रखा जा सकता है?
इस तरह जी न्यूज भी दबे स्वर से दैनिक जागरण जैसी थ्योरी ही दे रहा था.
लेकिन बार-बार जी न्यूज की तरफ से स्पष्टीकरण भी दे रहा जाता था कि “वो चाहते हैं कि आसिफा को न्याय मिले”
…………
अब जबकि ये फैसला आ चुका है और एक को छोड़ कर बाकी आरोपियों को सजा सुनाई जा चुकी है, तो कोर्ट की तरफ से ये भी माना गया होगा कि मंदिर परिसर में ही रेप हुआ था.
उन्हीं लोगों ने किया था जिन्हें बचाने के लिए तिरंगा यात्रा निकाली गई थी.
तो जी न्यूज की रिपोर्टिंग का असली सच सामने आ चुका है.
बार-बार हिन्दुओं को फंसाने की बात कहने वाले लोग कठुआ मामले पर जी न्यूज की रिपोर्टिंग की खूब तारीफ करते थे, ऐसा क्यों था?
कोर्ट के निर्णय को देखें तो जिनको सजा हुई है वो सब तो हिन्दू ही हैं.
तो अब तारीफ में पट्ठा ठोंकते जी न्यूज का हिंदू-मुस्लिम कहां चला गया?
इस मामले में फर्जी फंस रहे विशाल को लेकर जी न्यूज की तारीफ जरूर होनी चाहिए.
लेकिन कठुआ पर जी न्यूज की कवरेज पर जब भी बात की जाएगी मैं उसे हमेशा एजेंडाबाज, असंवेदनशील और ध्रुवीकरण पैदा करने वाली कहूंगा.