‘मन की बात’ करती सरकार और व्हाट्सऐप्प दुष्प्रचार– चुनाव इसी पर लड़े जाएंगे?

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


एंकरों के बहिष्कार से परेशान दुनिया 

अखबारों की खबरें निष्पक्ष नहीं होतीं और प्रचार की भरमार है सो अलग

आज के अखबारों की कुछ खबरों और उनकी प्रस्तुति से लगता है कि खबरों से संबंधित सवालों के जवाब ना मांगे जाते हैं और ना दिये जाते हैं। सरकार बस अपने “मन की बात” किये जा रही है। मीडिया में खबरें नहीं छपती हैं तो जनता को भी उनकी जानकारी नहीं है और सरकार के बारे में उसकी राय भी वैसी नहीं है जैसी होनी चाहिए। खबरें पूरी और ठीक नहीं होती हैं इसलिए लोग पढ़ते-देखते नहीं हैं सो अलग। दूसरी ओर चुनाव करीब हैं तो क्या वोट व्हाट्सऐप्प पर फैलाई जा रही सूचनाओं पर लड़े जाएंगे? कहने की कोई जरूरत नहीं है कि उसपर कोई नियंत्रण नहीं है और पूरी तरह झूठी, आधारहीन सूचनाएं फार्वार्ड होती रहती हैं। 

आपको याद होगा कि जब सोनिया गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं, चुनाव में सक्रिय थीं और लगभग प्रधानमंत्री बन चुकी थीं तब यह फैला दिया गया था कि उनके पास बहुत पैसा है और वे दुनिया की तीसरी अमीर महिला हैं आदि आदि। अब फैलाया जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे के पास बहुत पैसा है। और प्रधानमंत्री ने यह बात संसद में कही है। मुझे संसद में प्रधानमंत्री द्वारा वह सब कहे जाने जैसी कोई  खबर तो नहीं ही मिली, राज्यसभा चुनाव में मल्लिकार्जुन खडगे ने अपनी संपत्ति का जो विवरण दिया है वह इस सूची के मुकाबले कुछ नहीं है। जाहिर है, इसे रोका नहीं जाएगा और चुनाव तक यह अपना नुकसान करेगा पर मीडिया अगर सच नहीं बताये तो जनता सरकार के बारे में राय कैसे बनाएगी?   

दूसरी ओर सरकार की ओर से हेडलाइन मैनेजमेंट के प्रयास दिखते रहते हैं, प्रचार वाली खबरें छपती रहती हैं कश्मीर में वारदात के बाद आतंकवादियों के खिलाफ अभियान की खबरें छपने लगती हैं। आतंकवाद खत्म नहीं हो रहा है पर प्रचार पूरा होता है और सरकार जो दावे करती है वह अपनी जगह है ही। आज द हिन्दू में ऐसी एक खबर है पहले इंडियन एक्सप्रेस में थी। आज एक प्रचार परंपरागत शिल्पकारों की सहायता के लिए योजना की भी है। इसके तहत प्रशिक्षण, कर्जा आदि की सुविधा दिये जाने की घोषणा है लेकिन पिछली सरकार ने महिला बैंक बनाया था, जो महिलाओं को उनके विभिन्न कामों के लिए कर्ज देता था। इनमें शिल्प कार भी हो सकते थे। वह बंद हो चुका है। 

दूसरी बड़ी खबर द हिन्दू में है। इसके अनुसार केंद्र सरकार मणिपुर में तैनात आरएएफ को वापस बुलाने पर विचार कर रही है। केंद्र सरकार का मानना है कि आरएएफ ऐसी स्थितियों के लिए नहीं है। मैं नहीं जानता ऐसी स्थितियों के लिए भारत सरकार के पास कौन सा बल है या है भी कि नहीं। आप जानते हैं और यह तथ्य है कि इस साल के मई से मणिपुर जल रहा है और उसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। उसके अपने कारण हैं और उसपर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की टीम की रिपोर्ट भी है। इसके बावजूद इतने समय बाद अगर आरएएफ को वापस बुलाने की जरूरत लग रही है तो वहां होगा क्या और उसकी जगह किसे तैनात किया जाएगा – यह सब खबर में नहीं है। ना ही यह बताया गया है कि आरएएफ अगर ऐसे काम के लिए नहीं है तो उसे तैनात किया ही क्यों गया था। अभी तक ऐसे काम के लिए कोई और बल बनाने की बात सोची गई या नहीं।   

परेशान करने वाली खबरों में एक खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में भी है। छोटी सी छपी है। इसका विस्तार अंदर के पन्ने पर है। इस खबर के अनुसार भारत मंडपम और अब 5400 करोड़ रुपए की यशोभूमि के बाद भारत (दिल्ली) में कांफ्रेंस पर्यटन बढ़ेगा। अव्वल तो यह अपने आप नहीं बढ़ेगा और अगर सरकारी कोशिशों से बढ़ेगा तो क्या बार-बार वही किया जाएगा जो जी-20 के समय किया गया। मुझे तो लगता है कि सम्मेलन के दौरान जिस तरह से दिल्ली बंद थी और लोग खाली बैठे रहे उससे उम्मीद नहीं है कि दिल्ली में सम्मेलन हुआ तो बहुतों की दिलचस्पी दिल्ली आने में रहेगी क्योंकि उन्हें डर होगा कि सम्मेलन के दौरान दिल्ली बंद होगी तथा वे सम्मेलन के अलावा कुछ और नहीं कर पायेंगे। 

इन खबरों की चर्चा इसलिए जरूरी है कि विपक्ष का आरोप है कि कम से कम 14 टीवी एंकर का व्यवहार ऐसा नहीं होता है कि उनके कार्यक्रमों में वह अपने प्रतिनिधि भेजे। जो स्थिति है और जिस ढंग से ये एंकर व्यवहार कर रहे थे उसमें यह सामान्य सी बात थी और इसे इसी रूप में देखा जाना चाहिए था। बाद में कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा भी कि यह असहयोग आंदोलन है। लेकिन उससे भी बात नहीं बनी और बायकाट पर बवाल जारी है। इसी क्रम में लोक गायिका नेहा सिंह राठौड़ ने एक भद्दे गीत और उसके गायक पर टिप्पणी की तो एक जाने-माने पेशेवर समाचार चैनल की एंकर जो संयोग से बायकाट किये जाने वाले एंकरों में शामिल हैं का कहना था कि उन्हें लाखों वोट मिले हैं इसलिए उनकी आलोचना का कोई मतलब नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि संबंधित गायक भाजपा के सांसद हैं। 

बेशक एंकर ने जो कहा वह उनकी राय है लेकिन यह सबों पर समान रूप से लागू हो रहा होता तो कोई समस्या नहीं थी लेकिन आप जानते हैं कि विपक्ष के जिन नेताओं का विरोध किया जाता है या जिनकी आलोचना की जाती है उनमें भी कई लाखों वोट लेकर जीते हुए हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि जिन्हें लाखों वोट मिले हैं उनकी आलोचना नहीं हो तो बहुत कुछ करने की जरूरत ही नहीं है। सरकार यही कर रही है पर वह सिर्फ अपने समर्थकों के लिए है और इनमें सिर्फ नेता नहीं हैं उसके खास उद्यमी भी हैं। नेहा सिंह राठौड़ वाले कार्यक्रम में डिग्री का मामला भी आया। और एंकर ने यह कहने की बजाय कि अभी वह मुद्दा नहीं है, यह समझाने की कोशिश की कि जो चुनाव जीत गया उनकी डिग्री महत्वपूर्ण नहीं है। 

यहां यह स्पष्ट किया जाना चाहिए था कि प्रधानमंत्री की डिग्री का मामला उनकी शिक्षा से संबंधित नहीं है, केंद्रीय मंत्रियों द्वारा दिखाई गई डिग्री की सत्यता से संबंधित है। यही नहीं, दूसरे जनप्रतिनिधियों का मामला झूठे शपथपत्र का है। यह ठीक है कि चुनाव लड़ने के लिए डिग्री जरूरी नहीं है। लेकिन चुनाव लड़ने के लिए जो जानकारी दी जा रही है वह सही है – इसके लिए शपथ पत्र देना होता है। अगर झूठा शपथपत्र दिया जाये तो यह कानूनी मामला है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यही नहीं, आम आदमी पार्टी के एक विधायक की फर्जी डिग्री के मामले में उन्हें गिरफ्तार किया गया था और पुलिस ने उनके साथ जो सलूक किया वह किसी पत्रकार को मालूम नहीं हो और किसी फर्जी डिग्री या शपथपत्र वाले के बारे में वह कहे कि मुद्दा नहीं है तो पत्रकार और एंकर में अंतर करना होगा। यही नहीं, एक ही अपराध में अलग तरह की कार्रवाई भी मुद्दा है। 

दूसरी ओर, सरकार ईवेंट मैनेजमेंट की अपनी कोशिशें छोड़ नहीं रही है। बहुत संभावना है कि संसद का विशेष सत्र भी इन्हीं कोशिशों का हिस्सा है। देखता हूं उसके बारे में क्या खबरें छपती हैं, फिर उनकी चर्चा भी करूंगा। मैं प्रधानमंत्री को नहीं सुनता। आज टीवी चैनल सर्फ करते हुए सुनाई पड़ा की प्रधानमंत्री प्रेस को संबोधित कर रहे हैं तो मैं ठिठक गया। बाद में पता चला कि अचानक उन्होंने कहा, बहुत-बहुत धन्यवाद और चल दिये। मैं जो चैनल देख रहा था उसने दिखाया कि कैमरे भी उनकी तरफ चल दिये जबकि दिखाय उन्हें चाहिये था जो अचानक, ‘बहुत-बहुत धन्यवाद’ प्राप्त करके धन्य हो गये होंगे या नहीं हुए होंगे।  

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

         


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