मीडिया के एक तबके के खिलाफ लोगों में इतना गुस्सा क्यों है?

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बीते चार-पांच वर्षों में देश में मीडिया का एक ऐसा समूह खड़ा हो गया है जिसका काम मोदी सरकार की तारीफ करना और उसकी हर जन विरोधी नीति को देशहित और राष्ट्रवाद से जोड़कर प्रचार करना है और जो इन नीतियों के खिलाफ आवाज उठाये उन्हें राष्ट्र विरोधी, विकास विरोधी, टुकड़े-टुकड़े गैंग, अफ़जल प्रेमी गैंग, अर्बन नक्सल कह कर जनता को गुमराह करने का काम करना है। ऐसे में जमीन पर संघर्ष कर रहे लोगों का इन कॉर्पोरेट मीडिया घरानों के खिलाफ गुस्सा आना जायज है और अब यही होने लगा है।

आम जन की बुनियादी जरूरतों जैसे शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और जल जंगल जमीन के लिए संघर्ष कर रहे लोग इन मीडिया चैनलों और उनके कथित पत्रकारों के खिलाफ सड़क पर उतर आये हैं और उनका बहिष्कार कर रहे हैं।

जेएनयू विवाद हों चाहे कठुआ या अलीगढ़ रेप केस हों या मॉब लिंचिंग को लेकर प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र और पुलवामा से लेकर बालाकोट तक की एक-एक घटना पर इन कथित राष्ट्रीय चैनलों की ख़बरों को याद कीजिये। इन चैनलों ने सरकार की जवाबदेही पर कोई सवाल न उठाकर सरकार से सवाल करने वालों को देश विरोधी साबित करने की हर सम्भव प्रयास किया और अब भी लगातार कर रहे हैं।

आज जब किसान, मजदूर से लेकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित देश के तमाम विश्विद्यालय के छात्र फीस वृद्धि और केंद्र सरकार की तमाम जन और छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ सड़क से संसद तक संघर्ष कर रहे हैं और पुलिस की लाठियां खा रहे हैं ऐसे में इन मीडिया चैनल और उनके पत्रकारों के खिलाफ लोगों का गुस्सा अब फूट पड़ा है। परिणामस्वरूप इन कथित राष्ट्रीय मीडिया चैनलों के खिलाफ लोग सड़क पर निकल आये हैं और उनके खिलाफ नारेबाजी कर रहे हैं।

संसद में टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के भाषण को किस तरह से चोरी का बता कर प्रचार किया था एक चैनल के पत्रकार ने? वैज्ञानिक और ग़ज़लकार गौहर रज़ा को अफज़ल प्रेमी इसी चैनल के उसी पत्रकार ने कहा था। पर तमाम नोटिसों के बाद भी उस पत्रकार ने अपनी गलतियों के लिए माफ़ी नहीं मांगी।


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