दिल्ली के पुलिस प्रमुख के रूप में राकेश अस्थाना की नियुक्ति की दिल्ली विधानसभा में निन्दा की गई। आम आदमी पार्टी के विधायकों ने इस नियुक्ति को वापस लिए जाने की मांग की है। आज यह खबर सभी अखबारों में पहले पन्ने है। दो में सिंगल कॉलम, टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स में डबल कॉलम और द हिन्दू में पांच कॉलम में। दिल्ली के अखबारों में अकेले इंडियन एक्सप्रेस ने इसे सिंगल कॉलम में छापा है जबकि द हिन्दू में यह पांच कॉलम में है। अकेले टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर के साथ सरकारी पक्ष या स्पष्टीकरण अलग से लाल शीर्षक के तहत छापा है। शीर्षक है, “नियुक्ति पूरी तरह केंद्र का अधिकार है।”अव्वल तो केंद्र का अधिकार क्या है और उसे कौन चुनौती दे सकता है और केंद्र ने अपने अधिकार का कितना, कैसे उपयोग किया है और यह नियुक्ति कैसे अनुचित या उचित है इसपर लंबी बहस हो सकती है।
इसी तरह दिल्ली विधानसभा के अधिकारों या उसकी मांग के औचित्य पर भी बहस होती रह सकती है। लेकिन दिल्ली विधानसभा में जो हुआ उसकी खबर के साथ सूत्रों के हवाले से ऐसी सूचना निश्चित रूप से गैर जरूरी है। सत्तारूढ़ पार्टी के बड़बोले नेताओं ने कुछ कहा होता तो भी उसका मतलब था। उससे उनका परिचय भी मिलता था। मुझे लगता है कि अभी तक के उनके विरोध और विरोध के आधार या तर्कों की गुणवत्ता के आधार पर उन्हें इस (और उनके मूल) काम से हटा दिया गया है और अखबारों को यह जिम्मा सौंपा गया हो या नहीं वे यह काम स्वयं करते नजर आ रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया मेरे पांच अखबारों में सबसे आगे है। आज यह दूसरा मौका है। आइए देखें आज इस खबर का शीर्षक क्या है
1.टाइम्स ऑफ इंडिया
अस्थाना को पुलिस प्रमुख के पद से हटाया जाए : दिल्ली विधानसभा
2.हिन्दुस्तान टाइम्स
विधानसभा प्रस्ताव में आला पुलिस अधिकारी की नियुक्ति की निन्दा
3.इंडियन एक्सप्रेस
दिल्ली विधानसभा ने नए पुलिस प्रमुख को हटाने की मांग की : वे “आतंक के शासन” की शुरुआत करेंगे।
4.द हिन्दू
अस्थाना की तैनाती सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करती है : दिल्ली विधानसभा
5.द टेलीग्राफ
दिल्ली के पुलिस प्रमुख की विधानसभा में खिंचाई
शीर्षक से आप समझ सकते हैं कि मामला क्या है। मोटे तौर पर 1) सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ और 2) आतंक के शासन की शुरुआत करेंगे। और 3) विधानसभा में खिंचाई किसी मुद्दे पर ही हुई होगी (और वह आतंक के शासन की शुरुआत करने की आशंका और उसका आधार है) फिर भी टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर देखिए और खेल समझिए। शीर्षक, “अस्थाना को पुलिस प्रमुख के पद से हटाया जाए : दिल्ली विधानसभा” से लग रहा है कि मांग कर दी गई तो हटा ही दिया जाएगा और मांग बिना किसी आधार के है यह साबित करने या केंद्र सरकार की कार्रवाई को सही प्रचारित करने के लिए लाल स्याही वाला शीर्षक है, “नियुक्ति पूरी तरह केंद्र सरकार का अधिकार है”। लेकिन मेरा सवाल है कि क्या वह आरएसएस के प्रमुख या भाजपा अध्यक्ष को दिल्ली का पुलिस प्रमुख बना सकती है? फिर मेरे जैसे पाठक को यह ज्ञान किसलिए?
हालांकि, अखबार ने बताया है कि अंदर उसने एक और खबर छापी है, ‘योग्य नहीं, अगर ऐसा ही है तो केंद्र सरकार का अधिकार है बताने का क्या मतलब? वह भी तब जब आधे पन्ने पर विज्ञापन है और पहले पन्ने की कई खबरें वैसे ही छूट गई होंगी। दिलचस्प यह भी है कि नवभारत टाइम्स ने खबर दी है, दिल्ली विधानसभा में हंगामा, भाजपा विधायक विजेंद्र गुप्ता को मार्शल के जरिये बाहर निकाला गया। कहने का मतलब है कि पुलिस प्रमुख के खिलाफ लिखने में डर लग रहा हो तो समर्थन में भाजपा थी उसका बयान पूरी बेशर्मी से छापा जा सकता था। टाइम्स ऑफ इंडिया ने न जाने क्यों अनाम सूत्रों को भाव देने का नया काम हाथ में लिया है।
पेगासुस और संसदीय समति की बैठक
आज के अखबारों की एक और खास खबर है, संसद की स्थायी समिति की बैठक में तीन मंत्रालय के अधिकारियों का अनुपस्थित रहना और इस कारण बैठक नहीं हो पाना। यह मामला पुराना है और आप पहला पन्ना में यह सब पढ़ चुके हैं। आज की खबर यह है कि समिति के अध्यक्ष शशि थरूर ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को पत्र लिखकर मांग की है कि इस मामले को गंभीरता से लिया जाए। अधिकारियों के इस आचरण को उन्होंने अभूतपूर्व बताया है और कहा है कि यह संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन और सदन की मर्यादा की अवमानना है। सूचना तकनालाजी के इस पैनल में पेगासुस के मामले में चर्चा होनी है। बैठक में शामिल होने वाले भाजपा के 10 सांसदों से उपस्थिति पंजिका पर दस्तखत नहीं किए और इस तरह सुनिश्चित किया कि कोरम पूरा नहीं हो और बैठक नहीं हो पाए। यह खबर आज इंडियन एक्सप्रेस में प्रमुखता से छपी है।
पोर्टल को क्लीन चिट
इसी तरह, द टेलीग्राफ में एक खबर है जो बताती है कि एफडीआई प्राप्त करने में आपराधिक साजिश का मामला झेल रहे समाचार पोर्टल न्यूजक्लिक को क्लीन चिट मिल गई है। ईडी ने इसपर पोर्टल के दफ्तर और इसके संस्थापकों के घर पर पांच दिन की जांच की थी अब उसे अदालत ने फटकार भी लगाई है। दिल्ली के समाचार पोर्टल को परेशान किए जाने की यह खबर कोलकाता के अखबार में पहले पन्ने पर है लेकिन दिल्ली के मेरे चार अखबार (रों) में पहले पन्ने पर नहीं है। यह खबर हिन्दू में छोटी सी है।
जज की हत्या की खबर
धनबाद में जज की हत्या की खबर सभी अखबारों में पहले पन्ने पर फोटो के साथ है। लेकिन हिन्दुस्तान टाइम्स में फोटो तो नहीं ही है, मूल खबर की बजाय यह बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने दुर्घटना का संज्ञान लिया जिसमें मृत्यु हो गई। मुझे लगता है कि यह न सिर्फ सुबह वॉक पर निकलने वालों की हत्या के मॉडल का झारखंड पहुंचना है बल्कि जज को सजा देने का भी मामला है और देश में ऐसा मामले बहुत कम होते हैं इसलिए खबर पहले पन्ने की है। वैसे भी, जज की हत्या के एक मामले की जब कोशिश करके जांच नहीं होने दी गई और उसके लाभान्वित की स्थिति जगजाहिर है तो यह सामान्य मामला नहीं है। पर संपादकों का अपना विवेक। उसका मैं कुछ नहीं कर सकता।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।