सोशल मीडिया प्रोफाइल्स को आधार कार्ड से जोड़ने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार, ट्विटर, गूगल और यू-ट्यूब को नोटिस जारी किया है. सर्वोच्च न्यायालय का यह नोटिस फेसबुक की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया है जिसमें उसने तीन हाईकोर्ट में लंबित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की थी. यह याचिकाएं मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में लंबित है जिनमें आधार डाटाबेस को सोशल मीडिया के साथ इंटरलिंक करने की मांग की गई है.
Supreme Court issues notice in a plea to transfer proceedings from HCs to the SC. Issue in the proceedings relates to linking of Aadhaar with social media profiles and the SC has sought response from Centre as well as @YouTube, @GoogleIndia, and @TwitterIndia.
— Bar and Bench (@barandbench) August 20, 2019
बता दें कि सोमवार, 19 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सोशल मीडिया पर अपराध की निगरानी के लिए सोशल मीडिया प्रोफाइलों को आधार नम्बर से जोड़ने की ज़रूरत है.
फेसबुक और व्हाट्सएप को आधार से लिंक करने का मामले में कुल चार याचिकाएं दाखिल हैं. मद्रास में दो, ओडिशा और मुंबई में एक-एक याचिका दाखिल है. इस मामले की सुनवाई के दौरान फेसबुक और व्हाट्स-एप की तरफ से कहा गया कि हमें कई कानूनों को देखना पड़ता है, क्योंकि करोड़ों यूजर अपने-अपने हिसाब से इन प्लेटफॉर्म को यूज करते हैं. हाई कोर्ट में चल रही सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इंकार कर दिया है.
सुनवाई के दौरान तमिलनाडु राज्य के लिए अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने आतंकवाद और पोर्नोग्राफी सहित अपराध के मुद्दों का हवाला दिया. वहीं फेसबुक और व्हाट्सएप ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा कि क्या उन्हें आपराधिक जांच में मदद करने के लिए जांच एजेंसियों को डेटा और जानकारी साझा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है?
बता दें कि, फेक न्यूज पर रोक लगाने के लिए फेसबुक, ट्विटर और वे न्यूज पोर्टल समेत सोशल मीडिया को आधार से लिंक कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने अप्रैल में जनहित याचिका दायर किया था.
Facebook Seeks Transfer Of Cases Pending In HCs For Aadhaar-Social Media Linking To SC
Read more: https://t.co/HYDYm5ckPE pic.twitter.com/zIAt8TA3kF— Live Law (@LiveLawIndia) August 19, 2019
अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा, ”ऑनलाइन मीडिया में फर्जी समाचार, बदनाम करने वाले लेख, अश्लील सामग्री, देश-विरोधी और आतंकी सामग्री के प्रवाह को रोकने के लिए आधार संख्या के साथ उपयोगकर्ताओं के सोशल मीडिया प्रोफाइल को जोड़ने की जरूरत है.” उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी का दावा है कि दो लोगों के बीच होने वाले व्हाट्सएप संदेशों के आदान-प्रदान को कोई तीसरा नहीं पढ़ सकता है और न ही देख सकता है, लेकिन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के एक प्राध्यापक का कहना है कि संदेश को लिखने वाले का पता लगाया जा सकता है.
शीर्ष विधि अधिकारी ने फेसबुक की उस याचिका का विरोध किया, जिसमें मद्रास, बंबई और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालयों में लंबित उन मामलों को शीर्ष न्यायालय में भेजे जाने का अनुरोध किया गया था, जिसमें उपयोगकर्ताओं के सोशल मीडिया प्रोफाइल को आधार संख्या के साथ जोड़ने की मांग की गई है. फेसबुक इंक ने कहा कि वह तीसरे पक्ष के साथ आधार संख्या को साझा नहीं कर सकता है क्योंकि त्वरित मैसेजिंग एप व्हाट्सएप के संदेश को कोई और नहीं देख सकता है और यहां तक कि उनकी भी पहुंच नहीं है.
न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और अनिरूद्ध बोस की पीठ ने कहा था कि वह इस याचिका पर मंगलवार को सुनवाई करेगी क्योंकि इन्हें दस्तावेजों को देखने और मामले को स्थानांतरित करने के लिये दायर याचिका को देखने की आवश्यकता है. वेणुगोपाल ने कहा कि मद्रास उच्च न्यायालय में दायर दो मामलों की सुनवाई अग्रिम चरण में है और अबतक इस संबंध में 18 सुनवाई हो चुकी है. उन्होंने कहा, ”यह मामला 20 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया गया है. यह बेहतर होगा कि अदालत मामले की सुनवाई उच्च न्यायालय में होने की अनुमति दे. यह मामला जब अपील में उसके समक्ष आएगा तब मामले में इस अदालत को व्यापक फैसले का लाभ मिलेगा.”
अदालत में फेसबुक की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि यहां सवाल यह उठता है कि क्या आधार किसी निजी कंपनी के साथ साझा किया जा सकता है या नहीं. उन्होंने कहा कि एक अध्यादेश में कहा गया है कि आधार को एक निजी संस्था के साथ साझा किया जा सकता है, अगर इसमें कोई बड़ा जनहित शामिल हो. रोहतगी ने कहा, ”विभिन्न उच्च न्यायालय मामले में अलग-अलग टिप्पणी कर रहे हैं और बेहतर होगा कि इन सभी मामलों को उच्चतम न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया जाए, क्योंकि इन सभी जनहित याचिकाओं में कमोबेश एक ही अनुरोध किया गया है.” उन्होंने आगे कहा कि तमिलनाडु पुलिस कह रही है कि उपयोगकर्ताओं की प्रोफाइल से आधार को जोड़ा जाना चाहिए.
रोहतगी ने कहा, ”वे हमें यह नहीं बता सकते हैं कि हम अपने प्लेटफॉर्म (व्हाट्सएप) को कैसे चलायें. व्हाट्सएप पर भेजे जाने वाला संदेश दो लोगों के बीच ही रहता है और उसके सामग्री तक हमारी भी पहुंच नहीं है. हम उन्हें कैसे बता सकते हैं कि आधार नंबर क्या है. हमें उपयोगकर्ताओं की निजता का ख्याल करना होता है.”
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विचारक के एन गोविंदाचार्य की ओर से पेश हुए अधिवक्ता विराग गुप्ता ने कहा कि उन्होंने इस मामले में पक्षकार बनाये जाने के लिए एक अर्जी दाखिल की है.
पीठ ने कहा कि अदालत को पहले यह तय करना होगा कि मामले में उन्हें पक्षकार बनाने की अनुमति दी जानी चाहिए या नहीं. गुप्ता ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे से संबंधित कई निर्देश जारी किए हैं और वह इस मामले में अदालत को अवगत करा सकते हैं, जो सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं के सत्यापन से संबंधित है.
बता दें कि, 25 अप्रैल को जस्टिस एस मानिकुमार और सुब्रमोनियम प्रसाद की डिवीजन बेंच ने ऑनलाइन अपराधों का पता लगाने और साइबर दुरुपयोग और गलत सूचना पर नियंत्रण के साधनों पर चर्चा करने के लिए तमिलनाडु सरकार को कानून प्रवर्तन एजेंसियों और सोशल मीडिया बिचौलियों के बीच एक इंटरैक्टिव सत्र की व्यवस्था करने का निर्देश दिया था.