राहुल गांधी ने सभी विपक्षी नेताओं की एक बैठक सुबह के नाश्ते पर बुलाई है। द टेलीग्राफ में यह खबर लीड है। देश और राजनीति की मौजूदा हालत में यह एक बड़ी खबर है। लेकिन दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं मिली। खेल की बड़ी खबरों के बीच राजनीति की इस बड़ी खबर को कई अखबारों ने महत्व नहीं दिया है। असल में सरकार और सरकारी पार्टी ने यह प्रचार कर रखा है कि नरेन्द्र मोदी का कोई विकल्प है ही नहीं। ऐसे में वो पुराने विकल्पों को तो छोड़िए नए विकल्प भी नहीं उभरने दे रहे हैं। राहुल गांधी तो शुरू से निशाने पर रहे हैं। वैसे तो दूसरी व्यस्तताओं के कारण मैं तीन दिन पहला पन्ना नहीं लिख पाया लेकिन आज द टेलीग्राफ देखने के बाद रहा नहीं गया।
आज द टेलीग्राफ की दूसरी खबरें इस प्रकार हैं, लीड के साथ भारतीय महिला हॉकी टीम से संबंधित खबर फोटो कैप्शन के रूप में है और इसके साथ एक तस्वीर है। बंगाल चुनाव में जब भाजपा जीत का दावा कर रही थी तो एक नारा बहुत लोकप्रिय हुआ था। खेला होबे यानी खेल होगा और नतीजा अलग आएगा। वही हुआ भी। आज खेल की इस खबर के साथ राहुल गांधी की खबर संयोग हो सकती है लेकिन खबर जो है सो है। दूसरी खबर है, पेगासुस मालवेयर की जासूसी के शिकारों में एक, पत्रकार परंजय गुहा ठकुराता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। यह खबर और उनकी अपील भी महत्वपूर्ण है। अखबार ने इसे प्रमुखता से छापा है और परंजय ने अखबार से जिन निर्देशों की अपेक्षा की है उन्हें भी बिन्दुवार छापा है। इस तरह खबर छपने से आप उसकी खास बातों को आसानी से समझ सकते हैं पर अखबारों को मेहनत करनी पड़ती है। इसलिए पन्ना भरने का तरीका ज्यादा चलता है।
मुस्लिम महिला अधिकार दिवस
केंद्र सरकार ने एक अगस्त को मुस्लिम महिला अधिकार दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी। यह तिहरे तलाक से संबंधित कानून बनाने की दूसरी सालगिरह का मौका था। लेकिन 600 से ज्यादा नागरिकों ने केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को संबोधित एक बयान में इसपर सवाल उठाए हैं और कहा है, हम सरकार की कुटिल चालों को खारिज करते हैं और ‘आपके‘ मुस्लिम महिला अधिकार दिवस को नामंजूर करते हैं। इस बयान पर भिन्न जाति वर्ग के महिलाओं और पुरुषों के दस्तखत हैं। द टेलीग्राफ ने आज इस खबर को तीन कॉलम में एंकर बनाया है। इसके अलावा तृणमूल सांसद तथा महासचिव अभिषेक बनर्जी के काफिले पर त्रिपुरा में हमले की खबर सिंगल कॉलम में है। हमारे यहां के अखबार भाजपा नेताओं के काफिले पर हमले को ज्यादा महत्व देते हैं। अखबार में सिंगल कॉलम में ही एक और खबर है, जुलाई में टीके लगाने का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया। टीकों के इतने प्रचार और मुफ्त टीकों के लिए धन्यवाद ज्ञापन करने के बाद ये हाल है। आंकड़ों की बात करूं तो तथ्य यह है कि मैं गाजियाबाद में रहता हूं और दिल्ली जाकर टीका लगवा आया। वह ज्यादा सुविधाजनक रहा। ‘मुफ्त‘ तो था ही।
द टेलीग्राफ की इन खबरों के अलावा आज द हिन्दू में एक खबर फिर है, सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से 66ए के तहत मामलों पर सवाल किया। आप जानते हैं कि सूचना तकनालाजी कानून की इस धारा को वर्षों पहले खारिज किया जा चुका है पर राज्यों में इसके तहत मामले दर्ज किए जा रहे हैं। मना किए जाने और चेतावनियों के बावजूद। दि हिन्दू ने इसे पांच कॉलम में लीड बनाया है और मेरे पांच अखबारों में यह सिर्फ टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर दिखी। सरकारी और पुलिसिया मनमानी का यह मामला इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि सरकार सोशल मीडिया को कसने के लिए तो परेशान दिखती है लेकिन नागरिकों के खिलाफ ऐसे कानून के तहत कार्रवाई हो रही है जो रद्द किए जा चुके हैं। ऐसे में सरकार का क्या सम्मान रह जाएगा। पर सरकार है कि उसे परवाह ही नहीं है। द हिन्दू की खबर के अनुसार 2 अगस्त 2021 को इस कानून के तहत 1988 मामले दर्ज थे। इनमें 681 खारिज किए जाने से पहले से दर्ज थे और 1307 बाद में दर्ज हुए। किसी कानून की ऐसी धारा रद्द होने का मतलब हुआ कि जो अपराध हुआ बताया गया है वह अपराध नहीं है। इस लिहाज से मामले अपने आप खत्म हो जाने चाहिए पर खत्म होना तो दूर, रद्द धारा के तहत मामले दर्ज हुए जा रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट के कहने-चेतावनियों के बावजूद। इस सूचना को जनता तक पहुंचाने की जिम्मेदारी अखबारों की है तो वे इतना महत्व नहीं दे रहे हैं। इसीलिए यह स्थिति है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि अखबार जनता के साथ नहीं, सरकार के साथ हैं।
इसका पता पेगासुस मामले से संबंधित खबरों को नंजरअंदाज करने या कम महत्व देने से भी चलता है। परंजय गुहा ठकुराता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की इसकी खबर पत्रकारों को नहीं दी होगी तो शायद उन्हें न मिली हो पर नीतिश कुमार ने जो कहा उसे तो प्रचारित भी किया होगा। लेकिन इस खबर को भी वह महत्व नहीं मिला है जो द हिन्दू में है। पहले पन्ने पर चार कॉलम में छपी यह खबर दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं दिखी। इसका शीर्षक है, पेगासुस मामले की जांच हो, इसे सार्वजनिक किया जाए : नीतिश। इस जासूसी के मामले में रोज नए रहस्योद्घाटन हो रहे हैं लेकिन सरकार ना तो इसकी जांच करवा रही है और ना कुछ सीधे सवालों के जवाब दे रही है। ऐसे में यह आशंका मजबूत होती लग रही है कि सरकार ही अपने लोगों की जासूसी करवा रही थी। सत्ता पाने के लिए प्रधानसेवक और चौकीदार बनने का ढोंग और सत्ता मिलने पर अपने ही लोगों की जासूसी – बेहद घटिया हरकत है और सरकार यह कोशिश भी नहीं कर रही है कि उस पर यह दाग न लगे। दूसरी ओर अखबारों में इससे संबंधित खबरें कैसे छप रही हैं आप देख चुके हैं और यह आज भी जारी है। निजी व्यस्तताओं के कारण कभी-कभी लिखना रह जाता है पर कोशिश रहेगी कि अखबारों के सुधरने तक लिखता रहूं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।