पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ एमजे अकबर की अवमानना याचिका पर कल आए फैसले को सोशल मीडिया में ऐतिहासिक क्षण कहा जा रहा था और प्रिया रमानी तथा उनकी अधिवक्ता रेबेका जॉन को बधाइयों की बाढ़ आई हुई थी। ‘द हिन्दू’ में पहले पन्ने पर छपी एक खबर के अनुसार वरिष्ठ अधिवक्ता वृन्दा ग्रोवर ने कहा, “यह कार्यस्थल पर समानता के संघर्ष के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।” आज ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में यह खबर पहले पन्ने पर लीड है। टाइम्स का शीर्षक सीधा और स्पष्ट है, “प्रिया रमानी एमजे अकबर की अवमानना से मुक्त”।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी मुख्य और अन्य खबरों से यह बताने की कोशिश की है कि इस मामले में कानून के प्रति अदालत का नजरिया क्या रहा। एक खबर यह भी है कि फैसला विशाखा रुलिंग पर आधारित है और महिलाओं को एक नया कानूनी सुरक्षा कवच देता है। पूर्व मुख्य न्यायाधीश पर आरोप के मामले में जो-जैसे हुआ था उसके आलोक में यह ‘कवच’ कैसे है, कितने काम का है या है भी कि नहीं – यह भविष्य की चर्चा का विषय हो सकता है। हालांकि, अभी इससे लग रहा है कि प्रिया रमानी बच गईं (एमजे अकबर ने तो कुछ किया ही नहीं था)। भले ही यह कहा या लिखा नहीं गया है, इस शीर्षक का एक भाव मुझे ऐसा लग रहा है। अखबारों का काम अवधारणा बनाने का है और यह ऐसे ही बनता है। इरादतन हो या नहीं।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ का मुख्य शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होता, “महिला को यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाने के लिए सजा नहीं दी जा सकती है”। इसके साथ फ्लैग शीर्षक में वही कहा गया है जो दूसरे अखबारों में शीर्षक है, “एमजे अकबर अवमानना मामले में प्रिया रमानी बरी”। मुख्य शीर्षक से साफ है कि फैसला इस बात का नहीं हुआ है कि यौन शोषण हुआ कि नहीं। फैसला इस बात का हुआ है कि आरोप लगाया जा सकता है कि नहीं। और इससे भी बड़ी बात यह कि ऐसे आरोप लगाने के लिए सजा नहीं दी जा सकती है। कहने की जरूरत नहीं है कि इसमें आरोप क्या थे वह कम महत्वपूर्ण हो गया है। कानून के नजरिए से अलग या सामान्य समझ से देखें तो आरोप वही लगाएगा जिसका शोषण होगा और आरोप नहीं लगेगा तो जांच कैसे होगी। सत्य कैसे पता चलेगा। इसलिए यह मुद्दा ही नहीं है या होना चाहिए। और इससे लगता है कि अवमानना याचिका बेमतलब थी (कानून के दुरुपयोग का मामला कहा जाता है)।
शायद इसीलिए ‘द टेलीग्राफ’ का शीर्षक (सही अनुवाद जरा मुश्किल है, निकटतम अनुवाद) है, “अकबर की अवमानना याचिका कूड़ेदान में”। (अकबर्स डीफमेशन स्यूट इज टॉस्ड आउट)। भारत में महिलाओं की स्थिति और कार्यस्थल पर समानता का मामला पुराना और गंभीर है। इस दिशा में काफी कुछ हुआ है और अभी काफी कुछ होना बाकी है। इस दौरान इस मामले से संबंधित दो बड़ी घटनाएं भारतीय जनता पार्टी के शासन में हुईं। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा, यौन शोषण के आरोपी को संरक्षण और कार्यस्थल पर महिलाओं से व्यवहार का मुद्दा अलग नहीं हो सकता है। ऐसे में पत्रकार और कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत चुके, एमजे अकबर के खिलाफ मामले उठने शुरू हुए तो वे राज्यसभा में भाजपा के सदस्य थे और केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री भी। कई महिलाओं ने उनके अधीन भिन्न अखबारों में काम करने के दौरान यौन शोषण और दुर्व्यवहार के आरोप लगाये। दबाव में अकबर को इस्तीफा देना पड़ा और अकबर ने इन्हीं पत्रकारों में से एक, प्रिया रमानी पर मानहानि का मुकदमा दायर किया था।
कल आए फैसले की शुरुआती खबर यही थी कि अदालत ने एमजे अकबर की अपील खारिज की या स्वीकार नहीं की। आप समझ सकते हैं कि छोटी सी इस सूचना के क्या मायने हैं। खासकर तब जब ढेरों महिलाएं ऐसे आरोप लगा रही थीं और अवमानना के इस मुकदमे के कारण कइयों की हिम्मत नहीं रही होगी और कइयों को सामने आने में डर लगा होगा। वैसे तो इस मामले में सरकार या भारतीय जनता पार्टी की कोई भूमिका नहीं है पर महिलाओं को कार्यस्थल पर सुरक्षा देने की जरूरत, आरोपी के भाजपा सांसद होने और पूर्व मुख्य न्यायाधीश पर ऐसे ही आरोप लगने के बावजूद उन्हें राज्य सभा में मनोनीत किए जाने जैसे मामलों के मद्देनजर सरकार का रुख भी मुद्दा है।
कहने की जरूरत नहीं है कि कई मामलों में आजकल सरकार ना अपनी इच्छा बताती है ना जनता से पूछती है बल्कि ‘मन की बात’ थोपती है। मीडिया में कुछ लोग समझ जाते हैं, कुछ लोग सेवा में और बाकी डर कर या विज्ञापन के लिए वही करते और करते दिखना चाहते हैं जो सरकार को पसंद हो। ऐसे में अगर ऐसा नहीं भी हो तो कौन क्या कर रहा है यह दिलचस्पी का एक नया विषय है। वैसे भी, कोई खबर हर किसी के लिए समान महत्व की नहीं हो सकती है ना ही यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि सभी खबरें समान रूप से प्रस्तुत की जाएं। ऐसे में सिंगल कॉलम और चार कॉलम का अंतर बड़ा है और इसका कारण पत्रकारिता में दिलचस्पी रखने वालों को समझना चाहिए।
इस लिहाज से आज ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने पहले पन्ने पर इस खबर को सबसे ज्यादा महत्व दिया है और प्रस्तुति का अंदाज भी अलग है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की चर्चा के साथ आपको बता दूं कि ‘द हिन्दू’ में यह खबर टॉप पर तीन कॉलम के लीड के साथ ही चार कॉलम में है। शीर्षक का अनुवाद होगा, “प्रिया रमानी के खिलाफ केस खारिज”। इस खबर का इंट्रो है, “उन्होंने एमजे अकबर पर यौन शोषण का आरोप लगाया था”। ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में यह खबर पहले पन्ने पर (अधपन्ने के बाद) सिंगल कॉलम में है। शीर्षक है, अदालत ने प्रिया रमानी को एमजे अकबर द्वारा दाखिल अवमानना मामले में बरी किया।
संजय कुमार सिंह वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।